ट्रेन (Train) भारत (India) में परिवहन (Travel) का एक ऐसा साधन है जिसके जरिए एक शहर से दूसरे शहर और एक राज्य से दूसरे राज्य जाना बहुत आसान है। ट्रेन से यात्रा करना सस्ता और सुरक्षित भी है। इसीलिए भारतीय रेल (Indian Railways) को देश की जान माना जाता है।
हम सभी जानते हैं कि भारत में रेल की शुरुआत ब्रिटिश काल में हुई थी। ब्रिटिश काल (British Era) में भारत में कुछ खास जगहों पर ही रेलगाड़ियाँ (Trains) चलती थीं और धीरे-धीरे देश के लगभग हर हिस्से में रेलगाड़ियाँ चलने लगीं।
आज देश के लगभग हर कोने में रेल नेटवर्क मौजूद है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आजादी के 76 साल बाद भी भारत के एक रेलवे ट्रैक पर अंग्रेजों का राज जारी है।
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मालिकाना हक एक अंग्रेजी कंपनी के पास
महाराष्ट्र (Maharashtra) में एक छोटी रेलवे लाइन है जिस पर शकुंतला एक्सप्रेस (Shakuntala Express) नाम की ट्रेन चलती थी। इसे शकुंतला रेलवे ट्रैक के नाम से जाना जाता है। इस रेल ट्रैक का मालिकाना हक भारत सरकार के पास नहीं है। इसके अधिकार ब्रिटेन की एक निजी कंपनी के पास हैं। ब्रिटिश काल में बना शकुंतला रेलवे ट्रैक महाराष्ट्र के अमरावती से मुर्तजापुर तक करीब 190 किलोमीटर में फैला हुआ है। शकुंतला रेलवे ट्रैक बनाने का काम आजादी से पहले यानी साल 1903 में एक अंग्रेजी कंपनी (क्लिक निक्सन एंड कंपनी) ने शुरू किया था, जो साल 1916 में बनकर तैयार हुआ।
ब्रिटेन को कैसे मिला ट्रैक का स्वामित्व?
1947 में जैसे ही भारत स्वतंत्र हुआ, अंग्रेजों से सब कुछ वापस ले लिया गया। लेकिन आजादी के बाद भारतीय रेलवे ने एक समझौता किया जिसके अनुसार वे सीपीआरसी को रॉयल्टी देने के लिए सहमत हुए। शकुंतला रेलवे ट्रैक के लिए किए गए समझौते के अनुसार इस ब्रिटिश कंपनी को हर साल 1 करोड़ 20 लाख रुपये की रॉयल्टी देना तय हुआ। ट्रैक के रखरखाव की जिम्मेदारी कंपनी को दी गई। लेकिन लगातार उपेक्षा के कारण ट्रैक जर्जर हो गया। ऐसा नहीं है कि भारत सरकार ने ब्रिटिश कंपनी से इस रेलवे ट्रैक का स्वामित्व वापस लेने की कोशिश नहीं की, लेकिन कोई समाधान नहीं निकल सका।
शकुंतला एक्सप्रेस अमरावती से मुर्तजापुर तक चलती थी
शकुंतला एक्सप्रेस अमरावती से मुर्तजापुर तक 190 किलोमीटर का यह सफर 6-7 घंटे में पूरा करती है। इस सफर के दौरान इस ट्रैक पर कुल 17 स्टेशन आते हैं। इस ट्रेन का स्टीम इंजन ब्रिटेन के मैनचेस्टर में तैयार किया गया था, जो उस समय पांच कोच खींचता था, लेकिन साल 1994 में इसमें डीजल इंजन लगाया गया और कोच की संख्या बढ़ाकर सात कर दी गई। सफर के दौरान रेलवे ट्रैक के पास लगाए गए सिग्नल आज भी अंग्रेजों के जमाने के हैं। शकुंतला एक्सप्रेस में हर दिन करीब एक हजार लोग सफर करते थे।
2020 से बंद है शकुंतला एक्सप्रेस
शकुंतला रेलवे ट्रैक काफी पुराना होने के कारण जर्जर हो चुका है। भारत सरकार इस ट्रैक के लिए कंपनी को रॉयल्टी तो देती है, लेकिन फिर भी कंपनी ने पिछले 60 सालों से इस ट्रैक की मरम्मत का काम नहीं करवाया है। इसी वजह से इस ट्रैक पर शकुंतला पैसेंजर की स्पीड भी 20 किलोमीटर प्रति घंटा थी। यही वजह है कि 2020 से इस ट्रेन का संचालन बंद है। हालांकि इलाके में रहने वाले लोगों की मांग है कि इस ट्रेन को फिर से शुरू किया जाए।
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