Uttarakhand: संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत ने देश की प्रगति के लिए दिया यह मंत्र

संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि सेवा को धर्म कहा गया है। सेवा धर्मों परम गहनाे... धर्म वह है जो समाज को जोड़ता है, बांधता है, ऊपर उठाता है, उन्नत करता है, बिखरने नहीं देता। केवल संपर्क-नेटवर्किंग नहीं होता है, वो है- एक-दूसरे के मन को जानना। इसे संपर्क कहा गया है।

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Uttarakhand: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत 3 जुलाई को देवभूमि पर देश-दुनिया को धर्म, संस्कृति, सेवा, संवेदना, सद्भावना, बहुत कुछ सीखा गए और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का भी संदेश दे गए। दरअसल, पूरी दुनिया की निगाहें इस समय भारत की ओर है और भारत विश्व गुरु की ओर बढ़ चला है। इन दिनों चाहे विश्व स्तर पर चल रही युद्ध हो या भारत के संसद का माहौल हो, मोहन भावगत एक-एक करके सबको आइना दिखा गए।

बढ़ी है देश की प्रतिष्ठा
संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि आज भारत की विश्व में प्रतिष्ठा बढ़ी है। आज कोई भारत पर बुरी नजर रखता है तो उसे घर में घुसकर मारा जाता है। हम सबके भीतर हिंदुत्व है, बस उसको पहचानने की आवश्यकता है। यह भाव संस्कृति, संस्कार वेशभूषा या किसी भी रूप में हो सकता है। यदि हम इस भाव के साथ एकजुट हो जाएं तो राष्ट्र की प्रगति को कोई नहीं रोक सकता।

‘माधव सेवा विश्राम सदन’ का लोकार्पण
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत 3 जुलाई की शाम भाऊराव देवरस सेवा न्यास की ओर से निर्मित ‘माधव सेवा विश्राम सदन’ का लोकार्पण करने योग और अध्यात्म नगरी ऋषिकेश आए थे। सेवा परमो धर्म: को चरितार्थ करने वाला यह ‘माधव सेवा विश्राम सदन’ न केवल वास्तुशिल्प का एक उत्कृष्ट उदाहरण है बल्कि सेवा और सद्भावना का प्रतीक भी है। इस भव्य भवन का निर्माण पारंपरिक भारतीय स्थापत्य कला के अनुरूप किया गया है, जो इसकी विशेषता को और बढ़ाता है।

एकांत में आत्म साधना और लोकांत में परोपकार
आरएसएस प्रमुख भागवत ने कहा कि मार्ग दो बिंदुओं के बीच होता है। एक आदमी कहां है और वहां से उसने कहां जाना तय किया है, ये निश्चित होने के बाद ही मार्ग तय होता है। उन्होंने कहा कि ये सेवा कार्य है और सेवा कार्य इसलिए होता है क्योंकि हमारे यहां जीवन का दिखने वाला राज यही माना गया है। एकांत में आत्म साधना और लोकांत में परोपकार है। ये मनुष्य के जीवन की परिभाषा परंपरा से चलती आई है और जिसका जीवन ऐसा है, वो दिखने में कैसा भी हो उसके पास पैसा भी या नहीं हो, किसी पद को उसने प्राप्त किया या नहीं किया हो। हम अपने बच्चों को उसी की कहानियां बताते हैं। बहुत से लोग ऐसा होने का प्रयास करते हैं तो बहुत से लोग नहीं भी करते हैं, लेकिन सब लोग उन्हीं की कहानियां बताते हैं। जैसे स्वामी विवेकानंद के पास एक ढेला नहीं था। उन्होंने कमाया कुछ नहीं, घर में दारिद्र था, उस दारिद्रता की अवस्था में उनकी माता के लिए खेतड़ी के राजा साहब सौ रुपये मनीऑर्डर भेजते थे तब उनका और उनके भाइयों का निर्वाह चलता था। विवेकानंद ने कुछ नहीं कमाया। ग्राम पंचायत में भी चुनकर नहीं आए कभी। कोई सत्ता स्थान नहीं मिला। सर्वधर्म परिषद के लिए शिकागो गए तो उस वक्त पहुंचने के बाद कुछ नहीं था पास में तो जहाज में लोड होने के लिए खोखे पड़े थे लकड़ी के कारबोट के, उसमें एक रात उनको गुजारनी पड़ी। उस समय तो अप्रसिद्ध थे बिल्कुल और किसी ने देखा नहीं वो पीढ़ी चली गई। भ्रमण के दौरान तो वे ऋषिकेश आए थे, लेकिन पौने सात लाख स्थान भारत के माने जाते नगर ग्रामों को मिलाकर उसमें कितने जगह वे स्वयं गए थे मालूम नहीं। रिश्ते में हमारे कुछ लगते नहीं, लेकिन स्वामी विवेकानंद का नाम भारत ही नहीं, दुनिया भर के लोग जानते हैं।

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मनुष्य और पशुओं मे फर्क
मोहन भागवत ने कहा कि हम जब श्राद्ध करते हैं और करते समय ध्यान रखते हैं तो पिताजी के तरफ के तीन पूर्वज और माताजी के तरफ के तीन पूर्वज, इतने हमको प्रतिवर्ष सुनने के लिए मिलते हैं। वह हुए इसलिए हम हुए हैं, लेकिन हम उनके नाम को भूल गए और हमारा कोई संबंध नहीं है। ना हमारी पीढ़ी के हैं, न कुछ कमाया, न कहीं कुर्सी पर बैठे, लेकिन स्वामी विवेकानंद सबको पता है। देश भर में उनकी मूर्तियां लगी है, क्योंकि हमारी यह भावना है और ये हमारी केवल भावना नहीं, ये सत्य है कि मनुष्य जीवन के मनुष्यता की मनुष्य के भीतर धीरे-धीरे प्रस्फुटित होने वाली दिव्यता की व्यवहारिक अभिव्यक्ति सेवा है। मनुष्य और पशुओं में यही एक बात फर्क करती है। लोग कहते हैं, मनुष्य पशुओं से इसलिए अलग है कि उसके पास बुद्धि है। वो देखता है, समझता है, विचार करता है, निष्कर्ष निकालता है, उसके आधार पर आगे बढ़ता है, लेकिन अब ये केवल मनुष्य की विशेषता नहीं है। अब ये भी पता चला है कि ऐसा तो चिम्पांजी भी करता है। ऐसा तो व्हेल मछली भी करती है, डालफिन भी करते हैं। भाषा सहित कई बातें मनुष्य की जो विशेषताएं मानी जाती थी, वो कम अधिक प्रमाण में पशुओं में भी मिलती है तो मनुष्य की विशेषता क्या है? मनुष्य की विशेषता है संवेदना। वो केवल अपने दुख-दर्द और सुख का विचार नहीं करता, लेकिन अगर कोई दूसरा दुख में है तो अकेला मनुष्य सुखी नहीं होता।

ये संवेदना अस्तित्व की एकता के सत्य के कारण है, इसलिए अपने यहां दादी या नानी शिशु को समझाती है कि बेटा सूर्यास्त के बाद पेड़ों को हाथ न लगाना वे भी सोते हैं यानी उसका भी जीवन है, उसको भी सोना है, जीना है। ये सारी बातें मनुष्य भांप लेता है। ये हर एक मनुष्य में है। सिखाना नहीं पड़ता क्योंकि विश्व की एकता इसी धागे से जुड़ी है।

सब अलग-अलग दिखने वाला विविध प्रकार का प्राणी कितना भी अलग दिखता है, लेकिन वह अंदर से जुड़ा है। इस सत्य को हमारे पूर्वजों ने पहचाना। जो नित्य की अनुभूति मनुष्यों की है, उसके पीछे का रहस्य उन्होंने जाना। इसलिए एक विधा परंपरा के नाते अपने यहां जो चलती आ रही है वो यही है कि मनुष्य उस सत्य को पकड़े और ये प्रत्यक्ष अनुभव करे कि मेरे में भी वही है जो दूसरों में है। सबमें मैं हूं और मुझमें सब है।

भागवत ने कहा कि सेवा को धर्म कहा गया है। सेवा धर्मों परम गहनाे… धर्म वह है जो समाज को जोड़ता है, बांधता है, ऊपर उठाता है, उन्नत करता है, बिखरने नहीं देता। केवल संपर्क-नेटवर्किंग नहीं होता है, वो है- एक-दूसरे के मन को जानना। इसे संपर्क कहा गया है। भगवान भी कहते हैं कि लोक संग्रह की पहली सीढ़ी है लोक संपर्क। दूसरी सीढ़ी है लोक संस्कार और तीसरी सीढ़ी है लोक योजना। सेवा लोक संग्रह के लिए ही की जाती है। सेवा किसी पर उपकार नहीं है। जब कहते हैं कि सेवा पुण्य का काम है तो पुण्य करने से जीते जी जीवन पृथ्वी पर स्वर्ग बन जाता है। सेवा करने से सारे पाप स्खलित हो जाते हैं और लोगों में संपर्क स्थापित होता है। संपर्क नहीं है तो समस्या है।

आज दुनिया के सारे कलह देखिए आप। बहुत सारे युद्ध चल रहे हैं। थमने का नाम नहीं लेते। कारण है मन का मन से संपर्क टूट गया है। कभी यही सारे लोग इकठ्ठा रहते थे। आप इतिहास देख लीजिए परंतु धीरे-धीरे संपर्क विच्छेद हो गया। फिर एक की बात दूसरे को समझ में ना आवे और समझ न आवे तो झगड़े होवे। झगड़े से दूरियां बढ़ी और इस कगार पर आ गए कि दुनिया तबाह हो गई ताे परवाह नहीं, लेकिन उसको तो मार देंगे। मैं तबाह हो गया तो परवाह नहीं उसको तो नष्ट कर दूंगा।

इस दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र प्रचारक महेंद्र, सह क्षेत्र संपर्क प्रमुख डॉ. हरीश, उत्तराखंड के प्रांत प्रचारक डॉ. शैलेंद्र, प्रांत कार्यवाह दिनेश सेमवाल, परमार्थ निकेतन आश्रम के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती, प्रांत प्रचार प्रमुख संजय, पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी, हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत, प्रकल्प प्रमुख संजय गर्ग, सचिव राहुल सिंह, प्रकल्प प्रमुख संजय गर्ग, अनिल मित्तल, राकेश शर्मा, संदीप मल्होत्रा, अमित वत्स, सुदामा सिंघल, दीपक तायल आदि मौजूद थे।

एक सप्ताह के अंदर तीमारदारों के लिए शुरू होगा विश्राम सदन
भाऊराव देवरस सेवा न्यास के अध्यक्ष ओमप्रकाश गोयल ने बताय कि पांच मंजिला सदन एक सप्ताह के अंदर तीमारदारों के लिए शुरू कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि आवश्यकता पड़ने पर एक अलग विश्राम सदन का निर्माण किया जाएगा। एम्स ऋषिकेश की डायरेक्टर डॉ. मीनू सिंह ने आभार जताया। इससे पहले देशभक्ति एकल गीत से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ।

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