Assembly Elections: विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए बड़ी चुनौती

ऐसे में पार्टी ने कई राज्यों में समीक्षा बैठकें की हैं। बैठक में कार्यकर्ताओं सहित पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने भाग लिया और भाजपा की चुनावी रणनीति पर चर्चा की। कहने का मतलब अपनी कमजोरियों से भाजपा अवगत है।

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अमन दुबे

Assembly Elections: लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Elections 2024) के परिणामों में कुछ राज्यों में भाजपा (BJP) का प्रदर्शन उम्मीदों के विपरीत बेहद खराब रहा है, जिसमें उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा, महाराष्ट्र राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य शामिल हैं।

ऐसे में पार्टी ने कई राज्यों में समीक्षा बैठकें की हैं। बैठक में कार्यकर्ताओं सहित पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने भाग लिया और भाजपा की चुनावी रणनीति पर चर्चा की। कहने का मतलब अपनी कमजोरियों से भाजपा अवगत है।

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63 सीटों का नुकसान
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, भाजपा की समीक्षा बैठक में दूसरे दलों से आए नेताओं को अनुचित तरजीह देना और मूल कैडर की नाराजगी भी एक बड़ी वजह बनी है। ऐसे में संभावना है कि जल्द ही पार्टी के अंदर बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। बता दें कि इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा को 63 सीटों का नुकसान हुआ है।

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सीटों के नुकसान के कारण
राजनीतिक जानकारों का यह भी कहना है कि अभी कार्यकर्ताओं में शिथिलता हो सकती है। ऐसे में पार्टी जल्द से जल्द कमियों को दूर करने पर काम कर सकती है, अगर ऐसा नहीं हुआ तो आगामी विधानसभा चुनाव में काफी मुश्किल आ सकती है। यूपी की तरह हरियाणा, महाराष्ट्र और राजस्थान में भी समीक्षा रिपोर्ट भाजपा के लिए अच्छी नहीं रही है। पूर्वोत्तर में विभिन्न घटनाओं का ठीक से समाधान न कर पाने के कारण पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा है। पश्चिम बंगाल में टीएमसी से पीड़ित कार्यकर्ताओं की चिंता न करना भी भाजपा के लिए झटका साबित हुआ है। महाराष्ट्र में कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं और उससे पहले भाजपा और अजीत पवार की एनसीपी के बीच तनाव की खबरें एनडीए गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकती हैं।

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महाविकास आघाड़ी एकजुट
दूसरी ओर, कांग्रेस, शिवसेना (यूटीबी) और एनसीपी (शरद चंद्र पवार) ने साफ कर दिया है कि वे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ेंगे। उद्धव ठाकरे पहले ही इस बात से इनकार कर चुके हैं कि वे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ गए शिवसेना नेताओं को पार्टी में वापस लेंगे। महाविकास आघाड़ी में एकता भाजपा के लिए विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करना बड़ी चुनौती होगी।

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महाराष्ट्रः स्थिति प्रतिकूल
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में भाजपा ने महाराष्ट्र में सरकार बना ली, लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों में संकेत बिल्कुल भी अच्छे नहीं हैं। दिक्कत यह है कि भाजपा ने महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शिवसेना को सत्ता से हटा दिया, लेकिन जनता का मूड नहीं भांप सकी और शरद पवार की एनसीपी के मामले में भी यही फीडबैक मिला है। सुप्रिया सुले को हराने के लिए अजीत पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार को बारामती में उतारा गया, लेकिन शरद पवार का सिक्का चला। सुप्रिया सुले ने अपनी सीट बचा ली और अजीत पवार को महाराष्ट्र में भाजपा की मदद के लिए सिर्फ एक सीट मिली और इसी तरह एकनाथ शिंदे के रूप में असली शिवसेना के साथ होने का दावा करने वाली भाजपा महाराष्ट्र की 48 सीटों में से सिर्फ 9 सीटें ही हासिल कर सकी। प्रदेश की पार्टियों की स्थिति को देखते हुए यहां इसी साल होने वाले विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन के लिए भाजपा को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।

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288 विधानसभा सीटों पर चुनाव
महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों में से एनसीपी नेता छगन भुजबल पहले ही 90 सीटों पर दावा ठोक चुके हैं। इसके बाद शिंदे गुट के नेता रामदास ने 100 सीटों की मांग की है। ऐसे में मोदी के पास सिर्फ 98 सीटें बची हैं। इस तरह के दावे से निपटना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। लोकसभा में मन मुताबिक प्रदर्शन नहीं होने से उसके दावे कमजोर होने से उसकी मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।

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हरियाणाः सत्ता वापसी बड़ी चुनौती
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव भी भाजपा के लिए बड़ी मुसीबत लेकर आने वाले हैं। वैसे तो भाजपा 2014 से ही हरियाणा की सत्ता में है, लेकिन 2019 में बहुमत खोने के बाद उसे जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला के साथ गठबंधन सरकार बनानी पड़ी। राज्य में भाजपा ने नायब सैनी के रूप में मुख्यमंत्री तो बदल दिया है, लेकिन परेशानी यह है कि अब दुष्यंत चौटाला के साथ गठबंधन भी टूट चुका है। लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो भाजपा को 10 में से सिर्फ 5 सीटों पर ही जीत मिली है। आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर भाजपा ने केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को हरियाणा का प्रभारी नियुक्त किया है और उनके साथ त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब को सह-प्रभारी बनाया गया है।

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झारखंडः बदलनी होगी रणनीति
झारखंड में विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी बढ़ गई है। इंडी और एनडीए गठबंधन ने राजनीतिक बिसात पर चालें चलनी शुरू कर दी हैं। राजनीतिक जानकारों के अनुसार, विधानसभा चुनाव में भाजपा को बदलनी होगी रणनीति। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने आजसू पार्टी के साथ गठबंधन नहीं किया था। 2024 के चुनाव में आजसू पार्टी के साथ गठबंधन की स्थिति में भी भाजपा को जयराम महतो फैक्टर का सामना करना पड़ेगा। हालांकि, भाजपा अपनी पार्टी के कुर्मी नेताओं को भी आगे लाने की योजना बना रही है। चुनाव से पहले कुछ कुर्मी नेताओं को प्रदेश भाजपा में पद दिया जा सकता है। झारखंड में भाजपा-आजसू पार्टी गठबंधन के कारण यह उम्मीद की जा रही थी कि कुर्मी समुदाय के वोट भाजपा उम्मीदवारों को मिलेंगे, क्योंकि आजसू की इस समुदाय पर मजबूत पकड़ है।

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