Budget 2024-25: बजट 2024-25 से आर्थिक मामलों में राहत की चाहत

अब केंद्र सरकार में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण शीघ्र ही केंद्रीय बजट पेश करने जा रही हैं।

215

नरेश वत्स

Budget 2024-25: देशवासियों को बजट 2024-25 (Budget 2024-25) की बेसब्री से प्रतीक्षा है। उनकी टैक्स सहित अन्य क्षेत्रों में भी राहत की चाहत है। लेकिन उनकी यह चाहत किस हद तक पूरी हो पाएगी, यह वक्त बताएगा। फिलहाल जुलाई 2024 माह में शीघ्र ही केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए पूर्णकालिक बजट पेश किया जाने वाला है।

हाल ही में लोक सभा के लिए चुनाव भी सम्पन्न हुए हैं एवं भारतीय नागरिकों ने लगातार तीसरी बार एनडीए की अगुवाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता की चाबी आगामी पांच वर्षों के लिए इस उम्मीद के साथ पुनः सौंप दी है कि आगे आने वाले पांच वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा देश में आर्थिक विकास को और अधिक गति देने के प्रयास जारी रखे जाएंगे। अब केंद्र सरकार में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण शीघ्र ही केंद्रीय बजट पेश करने जा रही हैं।

यह भी पढ़ें- UP BJP Meeting: लखनऊ में भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक शुरू, कई बड़े नेता मौजूद

पूंजीगत खर्चों पर सरकार का विशेष ध्यान
पिछले लगातार दो वर्षों के बजट में पूंजीगत खर्चों की ओर इस सरकार का विशेष ध्यान रहा है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में 7.50 लाख करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान पूंजीगत खर्चों के लिए किया गया था और वित्तीय वर्ष 2023-24 में इस राशि में 33 प्रतिशत की राशि की भारी भरकम वृद्धि करते हुए 10 लाख करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान पूंजीगत खर्चों के लिए किया गया था। हालांकि, वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए भी 11.11 लाख करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान किया गया है जो पिछले वर्ष की तुलना में केवल 11 प्रतिशत ही अधिक है। इस राशि को यदि 33 प्रतिशत तक नहीं बढ़ाया जा सकता है तो इसे कम से कम 25 प्रतिशत की वृद्धि के साथ आगे बढ़ाने के प्रयास होना चाहिए अर्थात वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 11.11 लाख करोड़ रुपए की राशि के स्थान पर 12.5 लाख करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान पूंजीगत खर्चों के लिए किया जाना चाहिए।

यह भी पढ़ें- Anant-Radhika Wedding Return Gift: अनंत अंबानी ने अपने दोस्तों को रिटर्न गिफ्ट में दी करोड़ों की घड़ी, कीमत जानकर चौंक जाएंगे आप

8 प्रतिशत से अधिक की आर्थिक विकास दर
किसी भी देश की आर्थिक प्रगति को गति देने के लिए पूंजीगत खर्चों में वृद्धि होना बहुत आवश्यक है और फिर भारत ने तो वित्तीय वर्ष 2023-24 में 8 प्रतिशत से अधिक की आर्थिक विकास दर की रफ्तार को पकड़ा ही है। आर्थिक विकास की इस वृद्धि दर को बनाए रखने एवं इसे और अधिक आगे बढ़ाने के लिए पूंजीगत खर्चों में वृद्धि करना ही चाहिए। आर्थिक विकास दर में तेजी के चलते देश में रोजगार के नए अवसर भी अधिक मात्रा में विकसित होते हैं। जिसकी वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारत को बहुत अधिक आवश्यकता भी है।

यह भी पढ़ें- BSF: भारत-बांग्लादेश सीमा पर BSF की बड़ी कार्रवाई, घुसपैठ करते तीन बांग्लादेशी नागरिकों को पकड़ा

बजटीय घाटे में कमी
कुल मिलाकर इस आमूल चूल परिवर्तन से केंद्र सरकार के बजटीय घाटे में भारी कमी दृष्टिगोचर हुई है। केंद्र सरकार का बजटीय घाटा कोविड महामारी के दौरान 8 प्रतिशत से अधिक हो गया था, जो अब वित्तीय वर्ष 2024-25 में घटकर 5.1 प्रतिशत तक नीचे आने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इस प्रकार, अब यह सिद्ध हो रहा है कि केंद्र सरकार ने न केवल अपने वित्तीय संसाधनों में वृद्धि करने में सफलता अर्जित की है बल्कि अपने खर्चों को भी नियंत्रित करने में सफलता पाई है।

यह भी पढ़ें- Maharashtra News: पुणे पुलिस ने IAS पूजा खेडकर की मां को भेजा कारण बताओ नोटिस, रद्द हो सकता है पिस्तौल का लाइसेंस

सरकार से उम्मीद
पूंजीगत खर्चों में वृद्धि के साथ ही, केंद्र सरकार द्वारा अपने बजट में मध्यवर्गीय नागरिकों को आय कर की राशि में छूट देने का प्रयास भी वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट में किया जाना चाहिए। क्योंकि, प्रत्यक्ष कर संग्रहण में हो रही भारी भरकम 25 प्रतिशत की वृद्धि इसी वर्ग के प्रयासों के चलते सम्भव हो पा रही है। वैसे, भारतीय आर्थिक दर्शन के अनुसार भी नागरिकों/करदाताओं पर करों का बोझ केवल उतना ही होना चाहिए, जितना एक मधुमक्खी किसी फूल से शहद लेती है। मध्यवर्गीय नागरिकों के हाथों में अधिक राशि पहुंचने का सीधा सीधा फायदा अर्थव्यवस्था को ही होता है। मध्यवर्गीय नागरिकों के हाथों में यदि खर्च करने के लिए अधिक राशि पहुंचती है तो वह विभिन्न उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देता है इससे इन उत्पादों की मांग में वृद्धि दर्ज होती है और इन उत्पादों का उत्पादन बढ़ता है।

यह भी पढ़ें- Bihar Accident: बिहार में राष्ट्रीय राजमार्ग पर दो वाहनों की टक्कर, पांच लोगों की मौत और कई घायल

आय कर में कमी
उत्पादन बढ़ने से रोजगार के नए अवसर अर्थव्यवस्था में निर्मित होते हैं एवं कम्पनियों द्वारा विनिर्माण इकाईयों का विस्तार किया जाता है तथा निजी क्षेत्र में भी पूंजीगत निवेश बढ़ता है। कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था के चक्र को बढ़ावा मिलता है,जो अंततः देश के कर संग्रहण में भी वृद्धि करने में सहायक होता है। मध्यवर्गीय परिवार के आय कर में कमी करने से बहुत सम्भव है कि भारत में औपचारिक अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिले। क्योंकि कई देशों में यह सिद्ध हो चुका है कि कर की राशि को कम रखने से औपचारिक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है इससे कर की दर को कम करने के उपरांत भी कर संग्रहण में वृद्धि होते हुए देखी गई है।

यह भी पढ़ें- UP Flood News: ग्राउंड जीरो पर पहुंचे सीएम योगी, बाढ़ प्रभावित इलाकों का किया हवाई सर्वेक्षण

आर्थिक व्यवहारों में डिजिटलीकरण का लाभ
ऐसा कहा जाता है कि भारत में अभी भी अनऔपचारिक अर्थव्यवस्था औपचारिक अर्थव्यवस्था के करीब करीब बराबरी पर ही चलती हुए दिखाई देती है। हालांकि केंद्र सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था में आर्थिक व्यवहारों के भारी मात्रा में डिजिटलीकरण करने के उपरांत भारत की अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने में बहुत मदद मिली है और इसी के चलते ही वस्तु एवं सेवा कर का संग्रहण लगभग 1.80 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि प्रतिमाह के स्तर पर पहुंच सका है। अतः कुल मिलाकर देश में मध्यवर्गीय परिवारों की संख्या जितनी तेज गति से आगे बढ़ेगी देश का आर्थिक विकास भी उतनी ही तेज गति से आगे बढ़ता हुआ दिखाई देगा।

यह वीडियो भी देखें-

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.