Delhi Liquor Scam Case: यू टर्न नेता केजरीवाल का खेल होगा खत्म?

दिल्ली में आए दिन पीने के पानी की समस्या, जल भराव की समस्या और बिजली की दरों में बढ़ोतरी जैसे अनेक मामले सामने आ रहे हैं।

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एन वत्स

Delhi Liquor Scam Case: दिल्ली के मुख्यमंत्री (Delhi Chief Minister) अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) राजनीति (Politics) में अपनी विश्वसनीयता को लेकर एक बार फिर चर्चा में है। दिल्ली शराब घोटाला मामला (Delhi Liquor Scam Case) में केजरीवाल पर ईडी (ED) और सीबीआई (CBI) का शिकंजा पूरी तरह से कस चुका है। लेकिन केजरीवाल अपनी पार्टी और स्वयं को कट्टर ईमानदार बताने से नहीं चूक रही है। सर्वोच्च न्यायालय के दो जजों ने केजरीवाल को ईडी के मामले में अंतरिम जमानत देते हुए कई कड़ी शर्तें लगाई हैं। इससे उनकी ईमानदार बनने का ढोंग लोगों के सामने आ गया है।

दिल्ली में आए दिन पीने के पानी की समस्या, जल भराव की समस्या और बिजली की दरों में बढ़ोतरी जैसे अनेक मामले सामने आ रहे हैं। इन कारणों से केजरीवाल की सरकार पर सवाल उठ रहे हैं। लेकिन केजरीवाल अपनी कुर्सी को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। 12 साल पहले राजनीति में ईमानदारी लाने का दम भरने वाले केजरीवाल देश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री बन गए हैं, जो शराब नाति घोटाले में जेल जाने के बाद भी अपनी कुर्सी नहीं छोड़ने को तैयार नहीं हैं।

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दावों का सच
केजरीवाल देश के सबसे बड़े यू टर्न नेता बन गए हैं। उनकी राजनीति भी दिल्ली में वाहनों के संचालन की बारी-बारी की नीति के आधार पर चलती है। केजरीवाल की मोहल्ला क्लीनिक, बेहतर स्कूल व स्वच्छ राजनीति का सच उजागर हो चुका है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का वह बयान, जिसमें उन्होंने दिल्ली को लंदन बना देने का वादा किया था। लंदन जैसी साफ-सफाई दिल्ली वालों के लिए करने की बात कही थी। लेकिन बाद में वह अपने बयान से पलट गए और कहा कि हमारी सरकार केवल यहां साफ-सफाई और व्यवस्था को विश्व स्तर का बनाएगी। लेकिन सच सबके सामने है। दिल्ली में कूड़े के पहाड़ों के ढेर बढ़ रहे हैं।

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सरकारी गाड़ी पर यू टर्न
अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगते रहते हैं कि वह यू टर्न लेने का काम करते हैं। असल में अरविंद केजरीवाल को लेकर विपक्षी दल आरोप लगाते रहते हैं कि उन्होंने यू टर्न लेने का काम किया है। पहले वह कहा करते थे कि उन्हे सिक्योरिटी की कोई जरूरत नहीं है। उन्हें सरकारी आवास भीनहीं चाहिए। लेकिन अब उनके पास घर की जगह शीश महल है। सिक्योरिटी भी है और सरकारी गाड़ी भी। इस पर केजरीवाल का कहना है कि उनकी बातों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया।

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पैसे लेकर वोट देने की राजनीति
अरविंद केजरीवाल बार-बार कहते थे कि कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों से रुपए लेकर वोट आप पार्टी को दीजिए।‌ इस पर भी केजरीवाल ने यू टर्न लेते हुए कहा कि उन्होंने तो यह कहा था कि शराब और रुपए देकर लोगों के वोट खरीदना सही नहीं है और स्वस्थ चुनाव के लिए इसे रोका जाना चाहिए।

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दिलचस्प राजनीतिक सफर
केजरीवाल राजस्व सेवा के अधिकारी और आईआईटी के छात्र रहे हैं। उन्होंने अपनी राजनीतिक जमीन 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में तैयार की थी। साल 2002 के शुरुआती महीनों में केजरीवाल भारतीय राजस्व सेवा से छुट्टी लेकर दिल्ली के सुंदर नगरी इलाके में एक्टिविज्म करने लगे। उन्होंने गैर सरकारी संगठन स्थापित किया, जिसे परिवर्तन नाम दिया गया। उन्हें पहली बार बड़ी पहचान साल 2006 में मिली, जब उभरते नेतृत्व के लिए उन्हें रेमन मैगसेसे अवार्ड दिया गया।

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अन्ना के आंदोलन से मिली पहचान
साल 2010 में दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन में हुए घोटाले की खबरें मीडिया में आने के बाद लोगों में भ्रष्टाचार के खिलाफ गुस्सा बढ़ रहा था। सोशल मीडिया पर इंडिया अगेंस्ट करप्शन मुहिम शुरू हुई और केजरीवाल इसका चेहरा बन गए। केजरीवाल ने अपना पहला बड़ा धरना जुलाई 2012 में अन्ना हजारे के मार्गदर्शन में जंतर मंतर पर शुरू किया। 26 नवंबर 2012 को केजरीवाल ने अपनी पार्टी के विधिवत्त गठन की घोषणा की। केजरीवाल ने कहा कि उनकी पार्टी में कोई हाई कमान नहीं होगा और वह जनता के मुद्दों पर जनता के पैसों से चुनाव लड़ेंगे।

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कथनी और करनी में बड़ा अंतर
केजरीवाल ने कॉमनवेल्थ खेलों में भ्रष्टाचार के मुद्दे को खूब उछाला और तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भ्रष्टाचार का प्रतीक तक बताया। 2013 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ा और शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया। इस चुनाव में केजरीवाल की पार्टी ने 28 सीटें जीतीं। स्वयं केजरीवाल ने नई दिल्ली सीट से तत्कालीन सीएम शीला दीक्षित को 25 हजार से अधिक वोटों से हराया। लेकिन उन्हें सरकार इन्हीं शीला दीक्षित की कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर बनानी पड़ी।

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चला बड़ा दांव
केजरीवाल जल्द से जल्द जन लोकपाल बिल पारित करना चाहते थे लेकिन गठबंधन सरकार में साझेदार कांग्रेस तैयार नहीं थी। अंतत 14 फरवरी 2014 को केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और फिर सड़क पर आ गए। कुछ महीने बाद ही लोकसभा चुनाव होने थे। केजरीवाल बनारस पहुंच गए लेकिन बनारस में केजरीवाल हार गए। लेकिन इसके अगले साल दिल्ली के लिए हुए विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीट जीत कर केजरीवाल ने इतिहास बनाया और 14 फरवरी 2015 को फिर से दिल्ली के मुख्यमंत्री की शपथ ली।

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बच्चों की झूठी कसम
केजरीवाल ने बच्चों की कसम खाई थी कि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। लेकिन इस पर भी यू टर्न ले लिए। लोकसभा चुनाव में उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस से सीट शेयरिंग की। यह बात अलग है कि दिल्लीवालों ने आम आदमी पार्टी के साथ ही कांग्रेस को भी दिन में तारे दिखा दिए और सभी सातों सीटें भारतीय जनता पार्टी की झोली में डाल दी।

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