हल्ला नहीं दवाई चाहिये!

राजनीति और जनता ये दो धुरी हैं। इसमें यदि राजनीति जनतान्मुख हो तो स्वीकार्य होती है लेकिन यदि वह विमुख होती है तो उसकी उपयोगिता स्वार्थ सिद्धि पर आकर टिक जाती है। महाराष्ट्र वर्तमान दर्द से कराह रहा है, भविष्य कोरोना से दम तोड़ रहा है। ऐसे में राजनीतिक दांवपेंच पूर्ववत जारी है।

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एक व्यक्ति बड़ी देर से मुंह खोले बैठा था, देखनेवाले अचंभे में कि, क्यों यह ऐसे किये बैठा है? इसके कारण लोगों में भय था कि क्या हो गया है, इस व्यक्ति को? लोगों ने पूछा कि भाई, ऐसे क्यों बैठे हो तो उसने उत्तर दिया कि, खांसी आने जैसा लग रहा था, इसलिए पहले से ही मुंह खोलकर बैठ गया।

बस, यही हाल अपने महाराष्ट्र का भी है। जनता परेशान है, रेलवे से प्राणवायु पहुंचेगी, लेकिन कोरोना की संजीवनी का क्या? इसका उत्तर मिलता है, पर दवा नहीं मिलती। महाविकास आघाड़ी सरकार पर इन सभी का उत्तरदायित्व है। वह इस कार्य में लगी हुई भी है लेकिन, सत्ता के तीनों चाक या तो एक साथ गतिशील नहीं हैं या कोई और कारण, जिसके कारण कोरोना प्रबल हो गया और संसाधन, मानव बल और दवाई सबके सब व्यवस्था बौनी प्रतीत हो रही है।

विपक्ष की भी भूमिका महत्वपूर्ण
इसमें विपक्ष की भी भूमिका महत्वपूर्ण है। वो टिप्पणी करता है, कागज दिखा रहा है लेकिन संजीवनी अब तक दिला नहीं पाया है। दिल्ली से रेल में प्राण वायु भेजे जाने का समाचार मिला है। सांसों को प्राण वायु मिल जाएगी, लेकिन फेफड़ों में जमे संक्रमण की निवारक के लिए लोग अब भी परेशान हैं।

यहां भी राजनीति
इन सभी कोलाहलों में राजनीति मुंह बाए बैठी है। विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी एक उद्योगपति को आतंकियों की भांति घर से उठा लाने को सरकार की सीनाजोरी करार दे रही है। वैसे सीनाजोरी न भी हो तो भी गलत तो है ही। पूछताछ के लिए बुलाना और उठा लाने में अंतर होता है। लेकिन इसको लेकर भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री और दो नेता प्रतिपक्ष का रात में पुलिस थाने जाना कितना योग्य था, यह भी विचार की विषय है। कागज जब प्राप्त हो गए थे तो एक-दो नेता भी लेकर जा सकते थे। अब जब पुलिस थाने पर पहुंच ही गए हैं तो सवाल तो होगा ही।

आत्मावलोकन की आवश्यकता
इस बीच बेलगाव से लौटे एक शीर्ष शिवसेना नेता ने कोविड 19 के संक्रमण से परिस्थिति बिगड़ने पर संसद का आपात सत्र बुलाने की मांग की है। जिसमें कोरोना के बढ़ते संक्रमण पर चर्चा हो और उसकी उपाय योजनाओं पर कार्य हो सके। इस बीच राज्य में संक्रमितों की मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है। क्रमवार बढ़ोतरी से घरों में विलाप है। लेकिन, राजनीति मुंह बाए सियासी गुट्टियां उगल रही है मानो, संसद का सत्र बुलाने भर से ही दवाइयां और स्वास्थ्य संसाधन पूर्ण हो जाएंगे। शिवसेना 30 वर्षों से मुंबई महानगर पालिका में सत्ता है, अब राज्य की बागडोर भी हाथ  में है, फिर भी केंद्र सरकार यहां का दायित्व संभाले, यह अपेक्षा तार्किक रूप से कितनी खरी है, इसका आत्मावलोकन करने की आवश्यकता है।

महामहिम और सरकार का मनोमिलन विपक्ष को पसंद नहीं
इस बीच समाचार है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी और ठाकरे सरकार के मध्य विवाद मिट गया है। यह सुबह का अच्छा संकेत है लेकिन सायंकाल को भारतीय जनता पार्टी का प्रतिनिधिमंडल महामहिम से मिलने जा रहा है। यानी जैसे तैसे मनोमिलन की स्थिति बनी तो भाजपा को वह अस्वीकार है। राजनीति बहुत कुछ करा रही है लेकिन दवाई नहीं दिला पा रही है। लोग दर्द में हैं, माना कि लोगों ने भी पहली लहर और दूसरी लहर के बीच कोरोना की अनदेखी की और अभी भी करने से पीछे नहीं हैं लेकिन, सरकार तो माईबाप है। उसे भी तो जनता को दर्द से बचाने के लिए प्रिंसिपल की भूमिका निभानी चाहिए थी। आखिर राज्य प्रमुख ने ही अपने पहले के संवादों में कहा था कि इलाज से अच्छा बचाव होता है…

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