देश में कोरोना की सुनामी आई हुई है। इस कारण केंद्र से लेकर सभी राज्य सरकारें परेशान हैं। इस बीच पश्चिम बंगाल में 8 चरणों में से तीन चरणों के बाकी मतदान के लिए सभी बड़ी पार्टियों ने कोरोना महामारी को देखते हुए बड़े निर्णय लिए हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जहां आगे के मतदान के लिए प्रचार नहीं करने की घोषणा की है, वहीं प्रदेश की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी ने भी बड़ी रैली न करने की बात कही है। इन पार्टियों के साथ ही देश की सबसे पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने भी अब राजनैतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर निर्णय लिया है। पार्टी ने अपनी रैली को 500 लोगों तक सीमित करने की घोषणा की है। लेकिन इस विकट परिस्थिति में भी केंद्र के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ चंद किसान संगठनों का प्रदर्शन जारी है। वे अपनी मांगों से किसी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं हैं।
किसानों का यह प्रदर्शन 2020 के 26 नवंबर से लगातार जारी है। भले ही यह प्रदर्शन दिल्ली की गाजीपुर,सिंघु,टिकरी आदि चंद सीमाओं तक सीमित हो, लेकिन किसान नेता अपने आंदेलन को बड़ा बताने में कोई कमी नहीं कर रहे हैं।
टिकैत ने की टिके रहने की घोषणा
13 अप्रैल को एक बार फिर किसान आंदोलन को लेकर भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने अपने बयान दिए हैं। उन्होंने कहा है कि पांच राज्यों में चुनाव के परिणाम आने के बाद किसान आंदोलन फिर से तेज किया जाएगा। उन्होंने किसी भी हालत में अपने आंदोलन को कमजोर नहीं होने देने का दावा किया है। टिकैत ने कहा कि कोरोना आए या कोरोना के सारे रिश्तेदार आ जाएं, हम अपना आंदोलन जारी रखेंगे।
दिशानिर्देशों का करेंगे पालन
टिकैत ने कोरोना के दिशानिर्देशों का पालन करने की बात कही है। इसके साथ ही उन्होंने कोरोना का टीका भी लगवा लिया है। उनका कहना है कि हमारी लड़ाई तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने के साथ ही फसलों की एमएसपी के लिए कानून बनाए जाने तक जारी रहेगी।
सर्वोच्च न्यायालय ने लगाई है फटकार
हम बता दें कि इस प्रदर्शन को लेकर सर्वोच्च न्यायालय कई बार किसानों को फटकार लगा चुका है। न्यायालय ने कई बार उन्हें कहा है कि आपको आंदोलन करना है तो करिए, लेकिन दूसरों की परेशानी मत बढ़ाइए। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि सड़कों पर लोगों और वाहनों को बिना किसी रुकावट के प्रवाहित होना चाहिए, लेकिन आपके आंदोलन की वजह से ऐसा नहीं हो पा रहा है। लेकिन टिकैत न सरकार की सुनने को तैयार हैं और न न्यायालय की। वे चंद किसानों को बहकाकर अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए आंदोलन जारी रखने पर अमादा हैं।
19 अप्रैल को न्यायालय ने कही ये बात
19 अप्रैल को एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय ने किसानों को फटकार लगाई और कहा कि आपको गांव बसाना है, तो बसाइए लेकिन दूसरों की जिंदगी बाधित न करें। न्यायालय ने कहा कि आप अपनी जगह ठीक हो सकते हैं लेकिन लोगों का रास्ता रोकने की प्रवृत्ति ठीक नहीं है। ये टिप्पणी जस्टिस किशन कॉल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने नोएडा निवासी मोनिका अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई के दौरान की। मोनिका ने अपनी याचिका में नोएडा से दिल्ली जाने में 20 मिनट की जगह दो घंटे लगने की बात कही है। उन्होंने अपनी याचिका में ये भी कहा है कि न्यायालय के कई बार आदेश दिए जाने के बावजूद रास्ते नहीं खुले हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने दी थी चेतावनी
बता दें कि इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने किसान आंदोलन की तुलना तब्लीगी जमात के निजामुद्दीन में आयोजित प्रोग्राम से की थी। करीब तीन माह पहले न्यायालय ने कहा था कि मरकज मामले से क्या सबक लिया, किसान आंदोलन भी कहीं तब्लीगी जमात न बन जाए। चीफ जस्टिस एसए बोबडे की बेंच ने यह बात कही थी। न्यायालय ने सरकार को आंदोलनकारी किसानोे के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का भी निर्देश दिया था।
ये था मामला
दरअस्ल जम्मू की एक वकील सुप्रिया ने न्यायालय में याचिका दायर की थी। उनका आरोप था कि दिल्ली पुलिस निजामुद्दीन मरकज के मौलाना साद को गिरफ्तार नहीं कर पाई। कोरोना काल में साद ने जमात को कार्यक्रम करने की इजाजत दी। इससे देश भर में कोरोना बढ़ा। सुप्रिया की याचिका पर न्यायालय ने दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था। उस दौरान न्यायालय ने आंदोलनकारी किसानों के साथ ही सरकार को भी चेताया था।
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एम्स के निदेशक डॉ. गुलेरिया ने बताया सुपरस्प्रेडर
एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने भी देश में कोरोना संक्रमण बढ़ाने में शादी और चुनाव के साथ ही किसान आंदोलन को भी जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा है कि दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे ये किसान पंजाब और हरियाणा में आ-जाकर कोरोना फैला रहे हैं।
टेंशन में हरियाणा सरकार
दिल्ली की की जिन सीमाओं पर किसानों का प्रदर्शन चल रहा है, वहां की सरकरों की टेंशन बढ़ रही है। हरियाणा की खट्टर सरकार भी इन किसानो के आंदोलन से पहले से ही परेशान है, अब कोरोना फैलने की वजह से उसकी टेंशन और बढ़ गई है। प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज ने इनके आंदोलन को लेकर गंभीर चिंता जताई है। विज ने 20 अप्रैल को कहा है कि हरियाणा में सभी लोगों की चिंता करना मेरा कर्तव्य है। किसान बड़ी संख्या में यहां विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। हमने उन्हें कोरोना का टीका लगाने और टेस्ट करने का निर्णय लिया है।
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पंजाब सरकार की दोगली नीति
इस किसान आंदोलन की सबसे बड़ी समर्थक पंजाब की कांग्रेस सरकार है। लेकिन उसी पंजाब से कई बार किसानों की सकार के खिलाफ शिकायतें मिलती रही हैं। अभी चंद दिन पहले ही सुखदेव सिंह नामक एक किसान ने ट्वीट कर पंजाब सरकार की शिकायत करते हुए कहा था कि उनकी फसल खुले में रखी हुई है और उसे खरीदने में सरकार देर कर रही है। अगर बारिश हो गई तो उनकी फसल बर्बाद हो जाएगी।
नैतिकता का सवाल
इस हालत में आंदोलन जारी रखने की चंद किसान संगठनों की जिद समाज और देश को भारी पड़ सकता है। यह जिद बिलकुल गैर जिम्मेदाराना है। इसलिए परिस्थिति को देखते हुए उन्हें देश के जिम्मेदार नागरिक की तरह नैतिकता के आधार पर आंदोलन वापस ले लेना चाहिए।