Kerala : गॉड्स ओन कंट्री बना रहा अपनी कंट्री ?

केरल सरकार ने एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को "विदेश सहयोग से संबंधित मामलों" के प्रभारी सचिव के रूप में 'नियुक्त' किया है, जबकि राज्य का विदेशी मामलों से कोई लेना-देना नहीं है।

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Ms. K Vasuki
कोमल यादव
घर का भेदी लंका ढाए ! हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि केरल सरकार ने यह कमाल कर दिखाया है, जिसका मुद्दा लोकसभा तक पहुंच गया।
राजस्थान से भाजपा (BJP) सांसद पी पी चौधरी ने लोकसभा (Loksabha) में केरल सरकार (Kerala Government) द्वारा हाल ही में एक आईएएस अधिकारी (IAS Officer) को “विदेश सचिव” (Foreign Secretary) के रूप में नियुक्त करने के मामले को “असंवैधानिक” (Unconstitutional) बताया। उन्होंने कहा कि, “यह कदम “स्पष्ट दुष्प्रचार” का है। उन्होंने जानना चाहा कि क्या केरल सरकार खुद को “अलग राष्ट्र” मानती है ?

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क्या है पूरा मामला ?
एक अजीबोगरीब आदेश में, केरल सरकार (Kerala) ने एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को “विदेश सहयोग से संबंधित मामलों” के प्रभारी सचिव के रूप में ‘नियुक्त’ किया है, जबकि राज्य का विदेशी मामलों से कोई लेना-देना नहीं है। इस कदम को संविधान की संघ सूची में शामिल विषयों पर अतिक्रमण के रूप में देखा जा रहा है।
आदेश में है क्या?
केरल सरकार (Kerala) ने 13 जुलाई 2024 को एक आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि सचिव (श्रम और कौशल) के. वासुकी (K. Vasuki) “बाहरी सहयोग से जुड़े मामलों का अतिरिक्त प्रभार संभालेंगी। अधिकारी मौजूदा प्रभारों के अलावा इस संबंध में सभी मामलों और उससे संबंधित विषयों का समन्वय और पर्यवेक्षण करेंगी” । आदेश में कहा गया है कि सामान्य प्रशासन (राजनीतिक) विभाग बाहरी सहयोग से संबंधित विषयों से निपटेगा और वैकल्पिक व्यवस्था होने तक वासुकी की सहायता करेगा। नई दिल्ली में केरल हाउस के रेजिडेंट कमिश्नर को बाहरी सहयोग के मामलों में वासुकी की मदद करने और नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय (MEA) और विदेशों में भारतीय दूतावासों और मिशनों के साथ समन्वय करने के लिए कहा गया है।
Left Side- Kerala’s CM Pinarayi Vijayan and Right Side- Ms. K. Vasuki

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विदेश सचिव की नियुक्ति कौन करता है?
विदेश मंत्रालय भारत के विदेश सचिव की नियुक्ति करता है। वर्तमान में, विक्रम मिसरी ने 15 जुलाई 2024 को विदेश सचिव के रूप में कार्यभार संभाला है। विदेश सचिव सेवा का प्रमुख होता है।
क्या यह असंवैधानिक है?
हालांकि विदेश में केरलवासियों से संबंधित मामलों के सामने आने पर विदेश मंत्रालय के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए एक अधिकारी को नामित किया जा सकता है। यह आमतौर पर एक अनौपचारिक व्यवस्था होती है और यह या तो नोरका (गैर-निवासी केरलवासी मामले) के प्रभारी सचिव या मुख्यमंत्री के सचिव रैंक का अधिकारी होता है।

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2021 में भी किया गया था ऐसा :
2021 की शुरुआत में, एलडीएफ सरकार ने पूर्व आईएफएस अधिकारी वेणु राजमणि को मुख्य सचिव के पद पर नई दिल्ली में विशेष कार्य अधिकारी के रूप में नियुक्त किया था, ताकि विदेश मंत्रालय, भारतीय और विदेशी राजनयिक मिशनों के साथ संपर्क स्थापित किया जा सके और शिक्षा, संस्कृति, वित्त तथा निवेश के क्षेत्र में अन्य देशों के साथ सहयोग की संभावनाओं का पता लगाया जा सके। हालांकि, उनकी नियुक्ति अधिक राजनीतिक थी, ताकि विदेश मंत्रालय और भारतीय दूतावासों और मिशनों के साथ पर्याप्त संपर्क रखने वाले एक सेवानिवृत्त विदेश सेवा अधिकारी की सेवाओं का उपयोग किया जा सके।
विशेषज्ञों की राय :
इस बीच, पूर्व कैबिनेट सचिव के एम चंद्रशेखर ने नियुक्ति पर संदेह व्यक्त किया। उन्होंने कहा, “अंतर्राष्ट्रीय संबंध केंद्र के अधिकार क्षेत्र में हैं। यदि कोई राज्य विदेश से मदद चाहता है, तो वह विदेश मंत्रालय या भारतीय दूतावास से संपर्क कर सकता है। मुझे लगता है कि सरकार स्पष्ट करेगी कि विभाग सचिवों द्वारा पहले से किए जा रहे कामों के अलावा इस अधिकारी द्वारा क्या अतिरिक्त काम किया जाएगा।”

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विदेशी मामलों में इतनी दिलचस्पी क्यों?
वैश्विक मलयाली प्रवासियों की संख्या 5 मिलियन होने का अनुमान है, जबकि केरल के बाहर लेकिन भारत के भीतर मलयाली प्रवासियों की संख्या 3 मिलियन होने का अनुमान है। केरल में पांच में से दो घरों में गैर-निवासी केरलवासी पाए गए, जो अर्थव्यवस्था और समाज में प्रवास के अनुभवों की महत्वपूर्ण उपस्थिति को दर्शाता है।
केरल प्रवास सर्वेक्षण 2023 रिपोर्ट के अनुसार, महामारी के बाद केरल में कुल 154.9 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो 2018 में 85,092 करोड़ रुपये से 2023 में 2,16,893 करोड़ रुपये तक पहुंच गई । दुनिया के 195 देशों में से 182 देशों में केरलवासी काम कर रहे हैं।

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कांग्रेस ने किया समर्थन :
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व राजनयिक शशि थरूर (Shashi Tharoor) ने केरल सरकार (Kerala) द्वारा राज्य में विदेश सचिव नियुक्त करने के कदम को भले ही “काफी असामान्य” करार दिया हो लेकिन क्योंकि वे भाजपा के विपक्ष में हैं तो उन्होंने केरल सरकार को सही ठहराने से नहीं चूके। काले को सफेद कैसे कहना है कोई इनसे सीखे।
सबसे बड़ा सवाल 
अब सवाल यह उठता है कि जब भारत का ही कोई राज्य अपना एक अलग नियम और कानून बनाना शुरू कर दे तो क्या ये सही है ? क्या केरल सरकार द्वारा उठाये इस कदम का अन्य राज्यों में गलत संदेश नहीं पहुंचेगा ? या फिर केरल सरकार कोई बड़ी साज़िश का संकेत दे रही है ? केरल से केरलम बनने का मार्ग बना रही है ? इन सवालों का जवाब मिलना बाकी है।

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