Delhi Politics: केजरीवाल के हठ से समस्याओं की राजधानी बनी दिल्ली! जानें कैसे

सरकारी फाइलों में तो नालों की सफाई दिखाते हैं, लेकिन असल में यह नाले अधिकारियों के भ्रष्टाचार का सच्चाई बता रहे हैं।

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  • नरेश वत्स

Delhi Politics: देश की राजधानी दिल्ली, जिसे बेहतर नागरिक सुविधाओं की दृष्टि से दूसरे राज्यों के सामने उदाहरण पेश करना चाहिए, वह खुद बदहाली की कहानी बयां कर रही है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में समस्याओं का अंबार लगा हुआ है।

कहीं नाले में गिरकर मौत हो रही है तो कहीं जल भराव के कारण करंट लगने से लोगों की जान जा रही है। दिल्ली की ऐसी दुर्दशा के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने दिल्ली नगर निगम के अधिकारियों को ही दोषी माना है। इस सारी व्यवस्था की जड़ में वो अधिकारी हैं, जो सरकारी फाइलों में तो नालों की सफाई दिखाते हैं, लेकिन असल में यह नाले अधिकारियों के भ्रष्टाचार का सच्चाई बता रहे हैं।

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न्यायालय की तीखी टिप्पणी
दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तो तब हो जाती है, जब अदालत को यहां तक कहना पड़ता है कि दिल्ली की सड़कों को नाली की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। सवाल खड़ा हो रहा है कि दिल्ली का लोक निर्माण विभाग, दिल्ली नगर निगम और दिल्ली विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने यह भी देखने की जरूरत नहीं समझी कि दिल्ली के नाले वास्तव में साफ हुए या नहीं। ऐसे भ्रष्ट अधिकारियो के कारण राजधानी का ड्रेनेज सिस्टम दम तोड़ रहा है। बारिश के मौसम में हालत खराब हो जाने के बाद इसकी चर्चा खूब होती है लेकिन स्थिति सामान्य होते ही सब भूल जाते हैं।

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सरकारी एजेंसियां पूरी तरह फेल
दिल्ली में जल भराव की समस्या जारी है। लेकिन इसके समाधान की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सबसे बड़ी वजह है दिल्ली का मास्टर प्लान। बढ़ती आबादी के लिहाज से दिल्ली का दायरा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक फैल गया। किसी भी शहर की बसावट में ड्रेनेज सिस्टम का बहुत बड़ा योगदान होता है।

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बेहतर ड्रेनेज सिस्टम जरुरी
1911 में दिल्ली में लागू पहले मास्टर प्लान में ड्रेनेज पर ही फोकस किया गया था। ड्रेनेज की व्यवस्था बेहतर रहे, इसे देखते हुए नई दिल्ली को रायसीना हिल और इसके आसपास बसाया गया। उसके बाद 1976 में अलग से दिल्ली के लिए ड्रेनेज मास्टर प्लान लागू किया गया। हर सरकार ने इस पर काम किया और आगे भी बढ़ाया। किसी भी शहर के लिए ड्रेनेज मास्टर प्लान उसे बसाए जाने से पहले ही तैयार किया जाता है। दिल्ली की स्थिति ऐसी नहीं है। दिल्ली अधिकतर गैर नियोजित ही बसी है। अलग-अलग कॉलोनियों के लिए अलग-अलग प्लान बनाए गए हैं ।दिल्ली बसती गई और उसके लिए प्लान बनते गए।

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महत्वपूर्ण बात
यह बात बहुत महत्व रखती है कि शहर की बसावट हो जाने के बाद उसके लिए ड्रेनेज मास्टर प्लान लागू करना जटिल प्रक्रिया है। दिल्ली की समस्याओं के लिए सरकारी एजेंसियां एक दूसरे पर आरोप लगाती रहती हैं। मतलब अगर दिल्ली नगर निगम के नल ठीक से साफ नहीं हुए तो उसकी गाद लोक निर्माण विभाग के नालों में जाएगी या सीधे सिंचाई एवं वार्ड नियंत्रण विभाग के नालों में जाएगी? बस एक दूसरे पर यह कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है कि उसका नाला साफ नहीं हुआ, मेरा तो साफ है।

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अवैध कॉलोनियों की बाढ़
दिल्ली में राजनीतिक दलों ने वोट बैंक के चलते अवैध कॉलोनी को बढ़ावा दिया है। दिल्ली में ऐसी कॉलोनियों की संख्या 1800 की संख्या पार‌ कर गई है। इनमें से 1700 कॉलोनी को नियमित किए जाने वाली सूची में शामिल किया गया है। मगर यह अवैध कालोनी काटने का धंधा बेरोकटोक चल रहा है। खेती की जमीन पर अवैध कॉलोनी को बसाने में अधिकारियों के मिलीभगत है। बिल्डर खेत खरीद रहे हैं और खुलेआम उन पर प्लाट काट रहे हैं ।नरेला के रामपुर बख्तावरपुर, मुखमलपुर क्षेत्र में कृषि भूमि पर अवैध निर्माण थम नहीं रहा है। दिल्ली में वर्ष 2000 से पहले 900 के लगभग ही अवैध कॉलोनी थी। उस समय दिल्ली की आबादी भी एक करोड़ के करीब थी। मगर अवैध कॉलोनी में इस शहर की शक्ल बदल दी है।

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भीषण ट्रैफिक समस्या
दिल्ली में सड़कों के किनारे और फ्लाईओवर के पास विशेष रूप से बसों की अवैध पार्किंग धड़ल्ले से चल रही है। इसमें यात्रियों को असुविधा होती है। यही नहीं, इससे सड़क सुरक्षा खतरे में पड़ने साथ ही प्रदूषण भी फैलता है। दिल्ली में पंजीकरण के बिना सड़कों पर अवैध ई- रिक्शा चल रही है । अवैध ई रिक्शा के कारण यात्रियों को परेशानी होती है। रिंग रोड ,एयरपोर्ट रोड और राष्ट्रीय राजमार्ग पर विशेष रूप से अवैध ई रिक्शा चलने से परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

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