Lateral Entry: यूपीए राज में लेटरल एंट्री की बनाई गई अवधारणा, अब कांग्रेस क्यों कर रही है विरोध?

मोदी सरकार ने वर्ष 2018 में संयुक्त सचिवों, निदेशकों जैसे पदों के लिए विशेषज्ञों के आवेदन मांगे थे। ये पहली बार था कि निजी व सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों के पेशेवरों को मौका दिया गया।

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Lateral Entry: लेटरल एंट्री यानी निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सीधी भर्ती का कांग्रेस विरोध कर रही है। ताज्जुब की बात यह है कि केंद्र सरकार के मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के पदों की भर्ती निजी क्षेत्र के विशेषज्ञ लोगों से करने की अवधारणा कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के दौरान पेश की गई थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में बनी दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग एआरसी ने इसका समर्थन किया था।

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मोदी सरकार ने वर्ष 2018 में संयुक्त सचिवों, निदेशकों जैसे पदों के लिए विशेषज्ञों के आवेदन मांगे थे। ये पहली बार था कि निजी व सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों के पेशेवरों को मौका दिया गया।

प्रशासनिक सुधार आयोग ने दिए थे तर्क
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सरदार आर पी सिंह का कहना है कि लेटरल एंट्री का विरोध पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है।
कुछ सरकारी भूमिकाओं के लिए विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है, जो पारंपरिक सिविल सेवाओं के भीतर हमेशा उपलब्ध नहीं होता है, इसलिए विषय विशेषज्ञों को शामिल करना जरूरी है।

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एआरसी ने ये दिए थे तर्क
प्रशासनिक सुधार आयोग पहले ही सिफारिश कर चुका है कि विशेषज्ञों का एक पूल तैयार करना होगा ।यह विषय विशेषज्ञ अर्थशास्त्र, वित्त , प्रौद्योगिकी और सार्वजनिक नीति जैसे क्षेत्रों में नए दृष्टिकोण और विशेषज्ञता लाएंगे। लेटरल एंट्री का मौजूदा सिविल सेवाओं में इस तरह से एकीकृत किया जाए कि सिविल सेवा के अखंडता और लोकाचार को बनाए रखते हुए उनके विशेषज्ञ कौशल का लाभ उठाया जा सके।

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