Assembly elections: अब हरियाणा में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस आमने-सामने, आखिर क्यों नहीं बनी बात?

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Assembly elections: आम आदमी पार्टी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए अपनी पहली सूची जारी कर दी है। इस सूची में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ 11 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित किए हैं। यह सीटें हैं, महेंद्रगढ़, बादली, बेरी, उचाना कलां,मेहम, बादशाहपुर नारायणगढ़ , समालखा,डबवाली रोहतक और बहादुरगढ़।
हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन टूट गया है। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ने का बिगुल बजा दिया है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन होने की बात बनते- बनते बिगड़ गई।

 किसको होगा नुकसान?
आम आदमी पार्टी की पहली सूची जारी होते ही आधिकारिक तौर पर कहा जा सकता है कि गठबंधन की उम्मीद टूट गई है। लेकिन इसका फायदा किसको होगा, यह सबसे बड़ा सवाल है। हरियाणा में इस बार लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई है। ‌ राजनीति के जानकारी का कहना है कि आम आदमी पार्टी से समझौता करना कांग्रेस के लिए फायदे में रहता। इसकी वजह है कि कई सीटों पर शहरी आबादी ज्यादा है और शहरी मतदाताओं में आम आदमी पार्टी की अपील का प्रभाव अधिक है। पंजाब से सटे हुए इलाकों में आम आदमी पार्टी अपना प्रभाव छोड़ सकती है। ‌

इस कारण टूटा गठबंधन
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन न होने की एक वजह यह भी बताई जा रही है कि हरियाणा कांग्रेस के नेताओं ने पार्टी आलाकमान को यह समझा दिया कि आम आदमी पार्टी को गठबंधन के बहाने हरियाणा में पैर जमाने का मौका मिल सकता है। हरियाणा दिल्ली और पंजाब के बीच की कड़ी है और दिल्ली पंजाब दोनों राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार है।

कैसे बिगड़ गई बात?
सूत्रों का कहना है कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन न होने की एक वजह यह भी है कि आम आदमी पार्टी कुछ सीटों पर अपने खास उम्मीदवारों को उतारना चाहती थी। इसमें एक सीट पत्रकार से नेता बने हरियाणा आम आदमी पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष अनुराग डांडा का नाम भी शामिल है। लेकिन कांग्रेस इस सीट को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुई। आम आदमी पार्टी कांग्रेस से 20 सीटें मांग रही थी। कांग्रेस ने 5 से भी कम सीटें देने का ऑफर रख दिया।

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भाजपा को हो सकता है लाभ
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में अलग-अलग चुनाव लड़ने से भाजपा को लाभ हो सकता है। क्योंकि कई सीटों पर दोनों के आमने-सामने होने से वोटों का बंटवारा होगा, जबकि भाजपा को वोट बैंक बरकरार रहने से उसे लाभ हो सकता है।

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