मदरसा (Madrasas) उचित शिक्षा (Proper Education) प्राप्त करने के लिए उचित स्थान नहीं है। यह तालिबान (Taliban) जैसे चरमपंथी समूहों (Extremist Groups) से प्रभावित है। यह बात राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights) ने सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में कही। मदरसे संवैधानिक आदेश, शिक्षा का अधिकार अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम 2015 का उल्लंघन कर रहे हैं। मदरसा शिक्षा बोर्ड को शैक्षिक प्राधिकरण नहीं माना जाना चाहिए। वह बोर्ड केवल जांच करने वाली संस्था है और उसकी क्षमता भी उतनी ही है।
एनसीपीसीआर ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि उत्तर प्रदेश के देवबंद में स्थापित दारुल उलूम देवबंद मदरसा तालिबान जैसे चरमपंथी समूहों की विचारधाराओं से प्रभावित है। इसलिए मदरसों में पढ़ने वाले छात्र शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में साफ कहा है कि उन्हें उचित शिक्षा नहीं मिल रही है।
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मदरसे छात्रों को शिक्षा के अधिकार से वंचित करते हैं
अंजुम कादरी ने उत्तर प्रदेश के मदरसों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में केस दायर किया था। 22 मार्च, 2024 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 के प्रावधानों को निरस्त करने का आदेश दिया। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से लिखित बयान देने को कहा था। तदनुसार, आयोग ने मदरसों में शिक्षा के संबंध में एक लिखित बयान प्रस्तुत किया है।
शिक्षा के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन
इस समय, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने कहा कि मदरसे बच्चों के शिक्षा के मौलिक संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं। वहां केवल धार्मिक शिक्षा दी जाती है मदरसे शिक्षा के मौलिक अधिकार 2009 या किसी अन्य लागू कानून की आवश्यकताओं और प्रावधानों का पालन नहीं करते हैं। मदरसे उचित शिक्षा पाने की गलत जगह हैं। वे शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 19, 21, 22, 23, 24, 25 और 29 का उल्लंघन करके छात्रों को उनके अधिकारों से वंचित करते हैं। मदरसे शिक्षा का एक असंतोषजनक और अपर्याप्त मॉडल हैं। उनके पास उचित पाठ्यक्रम और कार्यप्रणाली का अभाव है।
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