Delhi: केजरीवाल के इस्तीफे के दावे पर सियासी भूचाल, यहां पढ़ें

कांग्रेस के पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने केजरीवाल को लेकर कहा कि उनमें नैतिकता नाम की चीज नहीं बची है।

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Delhi: अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने अपने 12 साल के राजनीतिक सफर (political journey) में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। लेकिन इस समय वह एक कठिन दौर से गुजर रहे हैं। अपनी खोई हुई साख को दोबारा हासिल करने के लिए मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा (resignation from the post of Chief Minister) देने का दांव चला है। लेकिन केजरीवाल की नैतिकता (Kejriwal’s morality) को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं।

कांग्रेस और बीजेपी के बड़े नेता केजरीवाल की नैतिकता पर हमला कर रहे हैं। ‌कांग्रेस के पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने केजरीवाल को लेकर कहा कि उनमें नैतिकता नाम की चीज नहीं बची है।

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केजरीवाल का भ्रष्टाचार के खिलाफ नारा टांय -टांय‌ फिस
अरविंद केजरीवाल ने 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े हुए अन्ना आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । इस आंदोलन के बाद उन्होंने 2012 में आम आदमी पार्टी का गठन किया और 2013 में पहला चुनाव लड़ा। कई धुरंधरों को हराते हुए दिल्ली विधानसभा में 70 में से 28 सीटें जीती। कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। लेकिन 49 दिनों में इस्तीफा दे दिया। 2015 का विधानसभा चुनाव प्रचंड बहुमत से जीता आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटें जीती। इसके बाद 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में 117 सीटों में से 92 सीटें जीतकर सरकार बनाई। ‌ लेकिन एक दिलचस्प तथ्य यह भी है की दिल्ली में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने के बावजूद अपनी सरकार के कार्यकाल में हुए तीन लोकसभा चुनाव में आप पार्टी ने एक भी सीट लोकसभा की नहीं जीती।

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सहयोगियों को किया किनारे
अरविंद केजरीवाल ने अप्रैल 2015 में पार्टी के संस्थापक सदस्य योगेंद्र यादव ,प्रशांत भूषण और प्रोफेसर आनंद कुमार को आप से निष्कासित कर दिया । बड़े नेताओं में पार्टी छोड़ने वालों में आशीष खेतान शामिल है ।इससे कुछ समय पहले ही आशुतोष और कुमार विश्वास ने भी पार्टी छोड़ दी।

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त्यागपत्र देने के पीछे केजरीवाल की मंशा
अप्रत्याशित फैसला लेने के लिए चर्चित दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा और फिर आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में जनता की सहानुभूति लेने के लिए इस्तीफा देने का दांव चला है। यह समय ही बताया कि उन्हें सहानुभूति का लाभ प्राप्त करने में सफलता मिलती है या नहीं लेकिन इस से इनकार नहीं किया जा सकता कि उन्होंने अपने अब तक के राजनीतिक जीवन में जिस तरह कई बार अपने ही कहे को नकारकर फैसले लिए हैं। उससे उनकी वह छवि नहीं रह गई जो पहले थी।

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