- डॉ. सत्यवान सौरभ
Haryana Assembly Polls: हरियाणा विधानसभा का चुनावी (Haryana Assembly Polls) रण इस समय मतदाताओं के चरण और मरण के कोण पर टिका है। हर चुनाव में मतदाताओं की भूमिका सर्वोपरि होती है। उनके चरण जिस पार्टी की तरफ बढ़ते हैं, उसे विजयश्री मिलती है।
बाकी को बेरुखी के चरण का खामियाजा भुगतना पड़ता है। उनके सामने पांच साल तक इंतजार करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता।
सत्ता की लड़ाई बेहद दिलचस्प
पिछले 10 साल से प्रदेश की सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तीसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही है। हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार सत्ता की लड़ाई बेहद दिलचस्प । सवाल यह भी है कि क्या भाजपा इस बार भी रण फतेह करेगी। भाजपा के चुनाव प्रचार अभियान का प्रमुख चेहरा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही हैं। मोदी अपने चुनावी अभियानों में भ्रष्टाचार, विकास कार्यों, और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को जोर-शोर से उठाते हैं। भाजपा नेता प्रचार में भ्रष्टाचार विरोधी मुद्दों को लगातार उठा रहे हैं। पार्टी मोदी की लोकप्रियता पर भरोसा कर रही है। इसलिए राज्य में पार्टी बिना किसी सीएम फेस के उतरी है। भाजपा बेहतर आर्थिक विकास, रोजगार के अवसर और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर जोर दे रही है। इसके अलावा भाजपा जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की भी कोशिश में लगी है। अगर भाजपा के बड़े नेता किसानों के मुद्दों पर कुछ अहम घोषणा करते हैं तो आंदोलन के कारण उपजे असंतोष को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
किसान आंदोलन ने पहुंचाया नुकसान
इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार और किसानों के बीच टकराव ने भाजपा की छवि को नुकसान पहुंचाया। इसका सीधा असर ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी के वोट बैंक पर पड़ सकता है। पार्टी को इस असंतोष से निपटने के लिए प्रभावी रणनीति पर चलना होगा। इसके साथ ही खिलाड़ियों के मसले पर कुछ बड़ी घोषणा करनी पड़ेगी। हरियाणा में खेल और खिलाड़ी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। महिला पहलवानों के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शनों, जो यौन उत्पीड़न के आरोपों और न्याय की मांग पर केंद्रित थे, राज्य में भाजपा की छवि को झटका दिया है। भाजपा को इससे उबरने के लिए भी कुछ न कुछ करना होगा।
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जातीय समीकरण का बड़ा महत्व
विपक्षी पार्टियां भाजपा के खिलाफ अपने-अपने तरीके से गठजोड़ बनाने की कोशिश कर रही हैं। यदि इन विपक्षी दलों के एकजुट होने का असर जमीन पर दिखता है तो भाजपा के लिए चुनावी जीत की राह और कठिन हो सकती है। विपक्ष ने जातिगत समीकरणों को साधने की रणनीति तैयार की है। हरियाणा की राजनीति में जातीय समीकरण का बड़ा महत्व है। एक समुदाय, जो राज्य की राजनीति में एक प्रमुख भूमिका निभाता है, उसका एक बड़ा हिस्सा भाजपा से नाराज चल रहा है। पार्टी को अन्य मतदाताओं पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ रहा है। भाजपा के सामने इस बार जातीय संतुलन साधने और सभी वर्गों को साथ लाने की बड़ी जिम्मेदारी है। भाजपा को अपने दम पर अन्य ग्रामीण वोटों को आकर्षित करना होगा। 10 साल की सत्ता के बाद भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का बड़ा खतरा है। वैसे भी सत्ता में रहते हुए किसी भी पार्टी को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ता है।
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घटती गईं भाजपा की सीटें
खासकर, लोकसभा चुनाव में भाजपा को हरियाणा की 10 में से सिर्फ पांच सीट मिलीं। विधानसभा चुनाव के इतने नजदीक मनोहर लाल की जगह नए चेहरे नायब सिंह सैनी को सत्ता सौंपी गई। यह फैसला विधानसभा चुनाव में क्या कमाल करेगा, यह मतगणना के दिन ही पता चलेगा। हरियाणा में 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 47 सीटें मिली थीं। पार्टी ने स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाई। 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन उतना प्रभावशाली नहीं रहा और उसे सिर्फ 40 सीटें मिलीं, जो बहुमत से कम थीं। इसके बाद जेजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई गई। इस बार यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी का विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन कैसा रहता है।
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सभी जातियों को साधने की कोशिश
इस विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सभी समुदायों के नेतृत्व पर जोर दिया है, जबकि विपक्ष ने विशेष जाति कार्ड का खुलकर उपयोग किया है। भाजपा ने विभिन्न जातियों को टिकट देने की कोशिश की है। हरियाणा में भाजपा ने दस साल की सत्ता के साथ विधानसभा चुनावों में सत्ता विरोधी माहौल की काट के लिए इस बार सामाजिक समीकरणों का गणित तो बिठाया है, लेकिन इसकी केमिस्ट्री किस करवट बैठेगी इसे लेकर कुछ भी पक्का नहीं ।
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