- ललित मोहन बंसल
Israel-Iran War: वैश्विक तनाव, रूस-यूक्रेन (Russia-Ukraine), इजराइल-हमास (Israel-Hamas), सूडान गृहयुद्ध (Sudan civil war), दो अरब की भुखमरी और पर्यावरण असंतुलन की मार से संयुक्त राष्ट्रसंघ (United Nations) इन दिनों कैमरे में बंद है, इसके संरक्षक, मुखिया और चाहने वाले हाल-बेहाल हैं। ‘यूक्रेन-रूस’ युद्ध पर पश्चिमी तंज पर रूस के राष्ट्रपति (Russian President) व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) इतने क्रुद्ध हैं।
उनके राजनयिक प्रतिनिधि ने सुरक्षा परिषद में धमकी दे डाली कि ‘इस परम्परागत युद्ध में एक ने भी लंबी दूरी के प्रेक्षापास्त्र का प्रयोग किया तो उसके परिणाम घातक होंगे।‘ इधर इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहु ने संयुक्त राष्ट्र में कड़े तेवर अपनाते हुए युद्ध विराम को नकारा और अपने कमांडरों का आह्वान किया कि युद्ध की गति को बढ़ा दें।
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इजराइल पर दबाव बनाने की पहल
इसके एक दिन पहले संयुक्त राष्ट्र में इस्लामिक देशों ने दो तिहाई देशों के साथ मिलकर इजराइल पर दबाव बनाने की पहल की थी। इसका त्वरित असर यह हुआ कि इजराइली वायुसेना ने चंद घंटों बाद लेबनान के दक्षिण में ईरान के ‘छद्म फ़्रंट’ हेज़्बुल्लाह ठिकानों को निशाना बना कर पाँच सौ से अधिक फ्रंट समर्थकों को ढेर कर दिया और हजारों को घायल कर दिया। इसके चंद दिन पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संयुक्त राष्ट्र में ‘युद्ध नहीं, शांति’ और विश्व बंधुत्व के संदेश की अनसुनी कर डाली।
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भारत का ‘दो राष्ट्र सिद्धांत’ को प्रश्रय
इज़राइल और फ़िलिस्तीन के दशकों से चले आ रहे ख़ूनी संघर्ष में भारत ‘दो राष्ट्र सिद्धांत’ को प्रश्रय देता आया है। इसके बावजूद अमेरिकी कंधे पर सवार इजराइल के कमांडो ने घने अंधेरे में हेलीकॉप्टर से उड़ान भरते हुए शुक्रवार को सीरिया के उत्तर पश्चिम में आधुनिकतम प्रेक्षापास्त्र शोध केंद्र’ को ध्वस्त किया है, एक चौंकाने वाली घटना है। यही नहीं, शनिवार रात इजराइल ने हिज्बुल्लाह के मुखिया हसन नसरुल्लाह को मार गिराने में बड़ी सफलता हासिल की है। हेज्बुल्लाह के बड़े कमांडरों में अब गिनती के कमांडर रह गये हैं।
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इजरायल और ईरान की स्थिति
ग्लोबल फ़ायरपावर इंडेक्स की माने तो इजराइल और ईरान असल में बराबरी की टक्कर में हैं। ईरान 14वें नंबर पर है तो इजराइल 17वें पायदान पर है। ईरान के पास 551 तो इजराइल के पास 612 विमान हैं। ईरान के पास 186 लड़ाकू विमान हैं तो इजराइल के पास 241 लड़ाकू विमान हैं। टैंकों की स्थिति में ईरान आगे है।
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हमास का हमसफ़र हिज्बुल्लाह
इजराइल का लक्ष्य ईरान क्यों है?: न्यूयॉर्क टाइम्स की मानें तो यह सीरियाई केंद्र ईरान की मदद से हिज्बुल्लाह संचालित कर रहा था। रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि इजराइल का लक्ष्य सीधे-सीधे ईरान को युद्ध में लपेटना है। ऐसा अगले चंद दिनों में संभव है। यहां हमास के हमसफ़र हिज्बुल्लाह ने इजराइल के उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्र में एक साथ सैकड़ों रॉकेट लांचर से हमला किया, इजराइली आयरन डोम से हमला विफल हो गया, प्रशासन को आनन-फानन में अपने करीब पच्चास हजार यहूदियों को सुरक्षित क्षेत्र में पुनर्वासित करना पड़ा। अब इजराइली पैदल सेना गाजा पट्टी की तरह लेबनान में घुसेगी और भयंकर तबाही मचेगी तो यह युद्ध विकराल रूप लेता हुआ दिनों नहीं, महीनों और वर्षों तक चलेगा।
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हिजबुल्लाह का अपने दम पर टक्कर संभव नहीं
अमेरिकी मीडिया की रिपोर्ट है कि ईरान के राष्ट्रपति डाक्टर मसूद पेजेशकियन ने संयुक्त राष्ट्र में अपने उद्बोधन में पश्चमी देशों के प्रतिबंधों से मुक्ति और मित्रता का हाथ बढ़ाए जाने की घोषणा जरूर की है, उसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि ईरान के साये में पल रहे हिज्बुल्लाह, हमास और हैती संगठनों से निजात पाना संभव नहीं है। गत जुलाई में सत्तारूढ़ डॉक्टर पेजेशकियन ने यह भी कहा है, ‘हिज्बुल्लाह अकेले दम इजराइल से टक्कर लेने की स्थिति में नहीं है।‘
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अमेरिका में यहूदियों की स्थिति
यह भी एक सच्चाई है, अमेरिका में लाखों यहूदी (12 प्रतिशत) व्यवसायी हैं, टेक्नोक्रेट और अधिकारी हैं। इन दिनों चुनाव का माहौल गरमाया हुआ है, डेमोक्रेट जो बाइडन हों या रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप, यहूदियों की अनदेखी नहीं कर पा रहे हैं। एक दिन पहले ही राष्ट्रपति बाइडन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के शुभारंभ पर अपने अंतिम संबोधन में दलील दी थी, ‘हमास सभी बंधक छोड़े फिर गाजा पट्टी से मुँह मोड़ कर चल दे, इससे युद्ध विराम और शांति का मार्ग प्रशस्त होगा।‘ ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप चुनाव में विजयी होते हैं तो निःसंदेह खाड़ी में युद्ध विकराल रूप लेगा।
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यूक्रेन का संकट
पुतिन और उनके हमसफर चीन के राष्ट्रपति शी चिन्फ़िंग तो न्यूयॉर्क पहुंचे नहीं, नाटो के द्वार पर रूसी दुंदुभि से हताश निराश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के क़द्दावर, स्थायी सदस्य इंग्लैंड और फ़्रांस भी व्लोडोमीयर जेलेंस्की के स्वर में स्वर मिला रहे हैं, लेकिन जेलेंस्की के इस प्रस्ताव पर सहमत नहीं हैं कि उन्हें रूस के अंदरूनी हिस्सों में मार करने के लिए लंबी दूरी के प्रेक्षापास्त्र दिये जाएं। यहां इंग्लैंड की नई सरकार के तेवर, ख़ासकर उसके विदेश मंत्री ने यूक्रेन-रूस युद्ध में पुतिन की हठधर्मिता को कोसते हुए माफिया कह डाला। जेलेंस्की लगे रहे कि रूस पर युद्ध विराम और शांति के लिए विवश किया जाए। वह न्यूयॉर्क स्थित ट्रंप टावर में डोनाल्ड ट्रंप से मिले। ट्रंप भी उन्हें पुतिन से अपनी दोस्ती और एक दिन में युद्ध समाप्ति किए जाने की घुट्टी पिलाते रहे। इस ऊहापोह में संयुक्त राष्ट्र भले 190 देशों और पंद्रह सदस्यीय सुरक्षा परिषद की सीमाओं में बंधा हुआ है, सुरक्षा परिषद के विस्तार में अमेरिकी प्रस्ताव पर इंग्लैंड, फ़्रांस सहित अन्यान्य देश भारत, जर्मनी और ब्राज़ील सहित एक अफ़्रीकी देश को जोड़ने के लिए आगे आए हैं, लेकिन क्या इस प्रस्ताव को चीन स्वीकार करेगा?
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भारत का शांति मार्ग
नरेन्द्र मोदी के शांति मार्ग के भी बहुत दीवाने हैं। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र मंच से मोदी जब कहते हैं, ‘’युद्ध नहीं, शांति ही एकमात्र विकल्प है तो यूरोपीय देशों के साथ-साथ एशियाई और अफ्रीकी देश भी भारतीय दर्शन ‘विश्व बंधुत्व’ के तर्क से सम्मोहित हैं। संयुक्त राष्ट्र एक प्लेटफार्म है, साल में एक बार राष्ट्र नेता विश्व मंच पर अपनी-अपनी बात कहने न्यूयॉर्क आते हैं, दो विश्वयुद्ध की विभीषका के बाद 79 वर्ष पूर्व गठित इस साझा मंच पर अपनी व्यथा दोहराते हैं और फिर संयुक्त राष्ट्र की परिसीमाओं पर रोना रोकर चले जाते हैं।
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भारत के लिए अच्छी बात
भारतीय दृष्टि से एक अच्छी बात यह कही जा सकती है कि यूक्रेन के युवा राष्ट्रपति ने मोदी को, जो पुतिन और बाइडन दोनों के मित्र भी हैं, स्वत: एक शांति दूत माना और साथ में आशीर्वाद भी लिया। मोदी दो महीने में दूसरी बार जेलेंस्की से मिले हैं, उन्होंने अपने रूस दौरे में दया अथवा दबाव में पुतिन को ‘अनुज’ रूप में यही संदेश दिया था, ‘युद्ध नहीं, शांति’ एकमात्र विकल्प है। उन्होंने यही संदेश संयुक्त राष्ट्र पहुँचे फ़िलिस्तीन के राष्ट्रपति को भी देते हुए कहा, ‘विश्व एक परिवार है, विश्व बंधुत्व भारतीय पहचान है।
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पश्चिमी देशों से मित्रता का स्वागत
ईरानी राजनीति में ‘कठमुल्लेपन’ से हटकर राष्ट्रपति डाक्टर मसूद पेजेशकियन ने कहा, ‘वह पश्चिम से मित्रता का हाथ बढ़ाना चाहते हैं,’ उनके इस कथन का देश में ईरानी युवाओं ने जमकर स्वागत किया, पर देश की मिलिट्री पर कुंडली जमाए धर्मगुरु अयातुल्ला खुमाइनी ने सहज लिया होगा, जो पहले से आणविक शक्ति बनने के स्वप्न देख रहे हैं?
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