Fake News: डिजिटल युग में टेंशन बढ़ा रही है फेक न्यूज, यहां जानें कैसे

आजकल फर्जी खबरें समाचार उद्योग के साथ-साथ समाज के लिए भी बड़ी चुनौती बन गई हैं।

54
  • प्रियंका सौरभ

Fake News: डिजिटल युग (Digital age) में फर्जी खबरें (Fake news) बड़ी चुनौती बनकर उभरी हैं, जिसमें जनता को गुमराह करने और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं (Democratic processes) को बाधित करने की क्षमता है। हालांकि, गलत सूचना को संबोधित करने में, भारतीय संविधान (Indian Constitution) के अनुच्छेद 19(1)(a) Article 19(1)(a) के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of expression guaranteed) के मौलिक अधिकार (Fundamental rights) को संतुलित करना आवश्यक है। चुनौती नागरिकों के असहमति व्यक्त करने या राय व्यक्त करने के अधिकार का उल्लंघन किए बिना गलत सूचना का मुकाबला करने में है।

यह पवित्रता ही है, जो समाचार को समाज में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करती है। लेकिन फर्जी खबरों की परिघटना समाचार के मूल मूल्यों को निशाना बनाती है, जो असामाजिक तत्वों, अफवाह फैलाने वालों या उन उच्च और शक्तिशाली लोगों के निजी हितों को पोषित करती है, जो समाचार की आड़ में अपना निजी एजेंडा आगे बढ़ाते हैं। जब फर्जी खबरों को डिजिटल पंख लग जाते हैं, तो यह वायरल पत्रकारिता में बदल जाती है। यदि इसका दुरुपयोग किया जाता है, तो यह हिंसा और घृणा फैला सकती है, तबाही मचा सकती है और नागरिक समाज के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है।

यह भी पढ़ें- Jammu and Kashmir: चुनाव नतीजों से पहले जम्मू-कश्मीर में आतंकी साजिश नाकाम, भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक बरामद

रोकना बड़ी चुनौती
आजकल फर्जी खबरें समाचार उद्योग के साथ-साथ समाज के लिए भी बड़ी चुनौती बन गई हैं। इंटरनेट क्रांति ने फर्जी खबरों को फैलाने के लिए एक नरम आधार प्रदान किया है और यह गलत सूचना, समाचार में अशुद्धि, भ्रामक समाचारों, अर्धसत्य और कभी-कभी अत्यधिक सनसनीखेज रिपोर्टिंग का प्राथमिक कारण बन गया है, जो जनता का ध्यान खींचने और उन्हें गुमराह करने के लिए किया जाता है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सूचना इतनी तेज गति से फैलती है कि विकृत, गलत या झूठी सूचना वास्तविक दुनिया में कुछ ही मिनटों में लाखों उपयोगकर्ताओं के लिए प्रभाव पैदा करने की जबरदस्त क्षमता रखती है।

यह भी पढ़ें- Uttar Pradesh: बलिया में शादी का झांसा देकर नाबालिग किशोरी से दुष्कर्म, मामला दर्ज

फेसबुक, एक्स और वाट्स्एप बड़े प्लेटफॉर्म
फेसबुक और एक्स जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स और व्हाट्सएप जैसे मैसेजिंग ऐप फ़र्जी ख़बरें फैलाने के लिए उपजाऊ प्लेटफ़ॉर्म बन गए हैं। इस पृष्ठभूमि में यह पेपर फ़र्जी ख़बरों की चुनौतियों, समाज पर इसके प्रभाव, फ़र्जी ख़बरों को फैलाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म को विनियमित करने में सरकार की भूमिका, सोशल मीडिया के स्व-नियमन और सबसे बढ़कर नागरिकों और युवाओं की ज़िम्मेदारी का मूल्यांकन करने का इरादा रखता है, जो देश का भविष्य हैं।

यह भी पढ़ें- J&K Election 2024: जम्मू-कश्मीर में शांति का सबूत बना विधानसभा चुनाव!

संतुलन करना काफी मुश्किल
गलत सूचना की समस्या का मुकाबला करने और वाक् स्वतंत्रता की सुरक्षा के बीच संतुलन हासिल करने में कई दिक्कतें हैं। “फर्जी समाचार” या “भ्रामक सूचना” जैसे शब्दों के लिए स्पष्ट परिभाषाओं का अभाव कानूनी अस्पष्टता उत्पन्न करता है, जिससे वाक् स्वतंत्रता संबंधी अधिकारों का उल्लंघन किए बिना सामग्री को विनियमित करना मुश्किल हो जाता है। गलत सूचना से निपटने के उद्देश्य से किए गए विनियामक उपाय अक्सर सरकारी अतिक्रमण का कारण बन जाते हैं, जहां अधिकारी फर्जी खबरों (फेक न्यूज) पर अंकुश लगाने के परिप्रेक्ष्य में असहमति की मुद्दों को दबा सकते हैं।

यह भी पढ़ें- Maharashtra: लातूर के छात्रावास में बच्चे फूड प्वाइजनिंग का शिकार, हॉस्पिटल में कराना पड़ा भर्ती

कानून का डर जरुरी
अस्पष्ट विनियमन और कानूनी कार्रवाई के डर से व्यक्तियों में स्व-सेंसरशिप की प्रवृत्ति उत्पन्न हो सकती है, विशेष रूप से मीडिया, राजनीतिक व्यंग्य या सक्रियता में, जिससे रचनात्मकता और खुले विचार-विमर्श पर असर पड़ता है। उदाहरण के लिए: व्यंग्यकार और हास्य कलाकार अस्पष्ट कानूनों के तहत नतीजों के डर से सरकारी नीतियों पर टिप्पणी करने से बच सकते हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कानूनी समस्याओं से बचने के लिए पहले से ही सामग्री हटाने का दबाव हो सकता है, भले ही सामग्री किसी कानून का उल्लंघन न करती हो, जिससे ऑनलाइन उपलब्ध राय की विविधता प्रभावित हो सकती है। ट्विटर और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म अपनी ‘सेफ हॉर्बर’ सुरक्षा खो सकते हैं , जो उन्हें उपयोगकर्ता-जनित सामग्री के प्रति उत्तरदायित्व से बचाती है।

यह भी पढ़ें- West Bengal: कोलकाता में जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल जारी, 10 मांगों के समर्थन में डटे

राष्ट्रीय हितों के लिए खतरनाक
वाक्‌ स्वतंत्रता, व्यक्तियों को राय व्यक्त करने की अनुमति प्रदान करती है, जो सदैव सत्यापित तथ्यों के साथ संरेखित नहीं हो सकता है, जिससे गलत सूचना और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है। गलत सूचना पर नियामक नियंत्रण ,अनजाने में खोजी पत्रकारिता को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है, जिसमें अक्सर शक्तिशाली संस्थाओं के संबंध में असुविधाजनक सच्चाइयों को उजागर करना शामिल होता है। हालांकि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े खतरों को रोकने के लिए फर्जी खबरों (फेक न्यूज) पर अंकुश लगाना आवश्यक है परंतु अति उत्साही दृष्टिकोण वाक् स्वतंत्रता सहित नागरिक स्वतंत्रता को कमजोर कर सकता है।

यह भी पढ़ें- UP News: उत्तर प्रदेश में 8 नवंबर तक पुलिसकर्मियों की छुट्टियां रद्द, आदेश जारी

कानून में स्पष्ट परिभाषा जरुरी
कानून में स्पष्ट और विशिष्ट परिभाषाएं होनी चाहिए कि फर्जी ख़बरें क्या होती हैं जो जानबूझकर फैलाई गई गलत सूचना और वैध राय के बीच अंतर स्पष्ट करना। उदाहरण के लिए: भारत यूरोपीय संघ के डिजिटल सेवा अधिनियम के समान एक रूपरेखा अपना सकता है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन किये बिना स्पष्ट रूप से अवैध सामग्री को रेखांकित करता है। सामग्री की तथ्य-जांच के लिए स्वतंत्र, गैर-सरकारी निकायों की स्थापना से सरकारी पूर्वाग्रह का जोखिम कम हो सकता है और पारदर्शिता सुनिश्चित हो सकती है।

यह भी पढ़ें- Prayagraj Maha Kumbh 2025: सीएम योगी ने किया महाकुंभ के लोगो का अनावरण, तैयारियों का लिया जायजा

जवाबदेही और स्वतंत्रता में संतुलन जरुरी
जवाबदेही और स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। सामग्री हटाने के अनुरोधों के लिए न्यायिक निगरानी सुनिश्चित करने से मनमाने निर्णयों को रोकने में मदद मिलती है और व्यक्तियों के स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकारों की रक्षा होती है। गलत सूचना का दीर्घकालिक समाधान मीडिया साक्षरता में सुधार करने में निहित है, जिससे जनता को स्वतंत्र रूप से समाचार स्रोतों और सूचना का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने में सक्षम बनाया जा सके। डिजिटल इंडिया जैसे सरकारी कार्यक्रमों को मीडिया साक्षरता अभियान में शामिल किया जा सकता है, जिससे नागरिकों को फर्जी खबरों (फेक न्यूज) की पहचान करने और उनसे बचने का तरीका सिखाया जा सके। प्लेटफार्मों और नियामक निकायों को इस संदर्भ में पारदर्शी होना चाहिए कि सामग्री को क्यों चिह्नित या हटाया गया है तथा जनता का विश्वास बनाने के लिए स्पष्ट कारण बताए जाने चाहिए।

यह भी पढ़ें- Haryana Exit Polls: एग्जिट पोल पर भाजपा नेता अनिल विज का बड़ा बयान, जानें क्या कहा

संतुलित दृष्टिकोण जरुरी
कानून को हानिकारक गलत सूचना (जैसे, फर्जी चिकित्सा सलाह) पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जबकि हानिरहित झूठ या राय को वाक् स्वतंत्रता के तहत संरक्षित रहने की अनुमति दी जानी चाहिए। फ़र्जी खबरों (फेक न्यूज़) के खिलाफ लड़ाई में, गलत सूचना की समस्या का मुकाबला करना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की रक्षा के बीच संतुलन हासिल करना, लोकतांत्रिक मूल्यों को संरक्षित करने के लिए आवश्यक है। पारदर्शी तथा सुपरिभाषित नियम जो सरकारी अतिक्रमण का कारण न बनें, मीडिया साक्षरता और न्यायिक निगरानी के साथ मिलकर राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रता दोनों की रक्षा कर सकते हैं । यह संतुलित दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करेगा कि गलत सूचना की समस्या का मुकाबला करने के साथ-साथ भारत के डिजिटल युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी बनी रहे।

यह वीडियो भी देखें-

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.