महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) के डिप्टी स्पीकर (Deputy Speaker) और राकांपा अजित पवार गुट के विधायक नरहरि जिरवाल (MLA Narhari Zirwal) ने मंत्रालय (Ministry) की तीसरी मंजिल से छलांग लगा दी। हालांकि, वह जाल में फंस गए। जिससे उनकी जान बच गई। बता दें कि वह एसटी कोटे (ST Quota) से धनगर समुदाय को आरक्षण दिए जाने का विरोध कर रहे थे। जिसके बाद उन्होंने तीसरी मंजिल से छलांग लगा दी। उनका कहना है कि उनकी मांग पर सुनवाई नहीं हो रही है। इसलिए उन्होंने मंत्रालय की छत से कूदने का फैसला किया।
भारती और धनगर समाज को आदिवासी वर्ग से आरक्षण न दिया जाए इसकी मुख्य मांग को लेकर सत्ता में बैठे आदिवासी विधायकों ने मंत्रालय के सुरक्षा घेरे को लांघकर विरोध जताया है। आदिवासी विधायक नरहरि जिरवाल, हिरामन खोसकर, किरण लाहमाते और भाजपा सांसद हेमंत सावरा सुरक्षात्मक जाल में उतरकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने कुछ दस्तावेज भी फेंक दिये हैं। इस बीच, शुक्रवार को आदिवासी समुदाय के विधायक मंत्रालय के सुरक्षा घेरे में आ गए और उन्होंने यह कहते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ बातचीत निरर्थक थी।
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मुख्यमंत्री ने धनगर समुदाय को आदिवासी समुदाय में शामिल करने के लिए एक समिति का गठन किया है। इस संबंध में एक मसौदा कानून भी तैयार किया जा रहा है। आदिवासी धनगरों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का विरोध कर रहे हैं। इसे लेकर आदिवासी समुदाय में काफी आक्रोश है। इसी पृष्ठभूमि में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और नरहरि जिरवाल के बीच चर्चा हुई। इस मौके पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने नरहरि जिरवाल को आश्वासन दिया कि हम आपके मुद्दे पर सकारात्मक हैं। लेकिन कोई निर्णय नहीं होने पर आदिवासी विधायकों ने आक्रामक रुख अपना लिया है।
‘इन’ विधायकों ने लिया हिस्सा
धनगर समुदाय को अनुसूचित जनजाति से आरक्षण नहीं दिए जाने की आक्रामक मांग कर रहे आदिवासी समुदाय के विधायक शुक्रवार दोपहर मंत्रालय के सुरक्षा जाल में कूद पड़े। इसमें 7-8 विधायक हैं और विधानसभा उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल, हीरामन खोसेकर, सुनील भुसारा शामिल हैं। बताया जा रहा है कि यह प्रदर्शन अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए किया गया और कहा गया कि मुख्यमंत्री आदिवासी समुदाय को न्याय नहीं दे रहे हैं। विरोध कर रहे विधायकों को सुरक्षा घेरे में फंसा दिया गया, उन्हें बाहर निकाला गया और उन्होंने मंत्रालय में ही धरना दे दिया।
इस बीच, आदिवासी विकास मंत्री डाॅ. विजयकुमार गावित के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री शिंदे से मुलाकात की। उस वक्त शिंदे ने 15 सितंबर तक पेसा कानून के तहत भर्ती शुरू करने का वादा किया था। हालांकि, नरहरि जिरवाल ने आरोप लगाया कि ये वादे अभी तक पूरे नहीं हुए हैं। ऐसे में आम चुनाव के मद्देनजर मराठा और ओबीसी आंदोलन के बाद सत्ताधारी दल के आदिवासी विधायकों के आंदोलन से महागठबंधन सरकार का सिरदर्द बढ़ने की आशंका है।
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