Assembly election results: जम्मू में कांग्रेस के सफाये का क्या है कारण? जानिये

विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का जिस प्रकार का प्रदर्शन रहा है, निश्चित रूप से इस पर कांग्रेस को मंथन करने की जरूरत है।

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Assembly election results: विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का जिस प्रकार का प्रदर्शन रहा है, निश्चित रूप से इस पर कांग्रेस को मंथन करने की जरूरत है क्योंकि कांग्रेस की हार के एक नहीं कई फैक्टर हैं, जिसमें सबसे बड़ा फैक्टर कांग्रेसी नेता मीडिया से दूर रहे और खुद भी जनता तक पहुंच नहीं बना पाये। अगर कहीं पहुंचे भी तो जनता के मन में वो खुद के लिए वो पुराना विश्वास नहीं जगा पाये, क्योंकि करीब 10 साल बाद जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए और इस दौरान कांग्रेस के नेताओं व जनता के बीच दूरी इतनी बढ़ गई थी कांग्रेस के नेता उसे भर नहीं पाये।

प्रत्याशियों के चयन में गड़बड़ी
कांग्रेस की हार का दूसरा फैक्टर प्रत्याशियों को चयन भी रहा। शायद कहीं न कहीं आलाकमान सही प्रकार से नहीं कर पाई, जबकि कांग्रेस को सबसे अधिक नुकसान एनसी के साथ गठबंधन करने के लिए जम्मू संभाग से उठाना पड़ा। क्योंकि जिस प्रकार कश्मीर में एक तरफा भाजपा के खिलाफ एनसी की लहर चली, वहीं दूसरी तरफ जम्मू में एक तरफा एनसी के खिलाफ लोगों ने भाजपा को वोट दे दिया। यानि न कश्मीरियों ने न भाजपा को पसंद किया और न जम्मू ने कश्मीरी लीडरशिप के साथ जाने वाले नेताओं को ही पसंद किया।

दिग्गज नेताओं के भविष्य पर सवाल
कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा दिक्कत तो इस बात की रही कि इनके दिग्गज नेताओं का राजनीतिक भविष्य भी अब दांव पर लग गया है। कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रमण भल्ला को तो इस हार के साथ चौथी हार का सामना करना पड़ा। जबकि पूर्व सांसद चौधरी लाल सिंह तीसरी बार हारे हैं तो पूर्व डिप्टी सीएम तारा चंद को दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही अगर कांग्रेस के अन्य नेताओं की बात करें तो डा. मनोहर लाल शर्मा कांग्रेस की टिकट पर दो बार हारे हैं। वहीं, मूला राम भी दूसरी बार हारे। ऐसे में इन नेताओं का राजनीतिक भविष्य आगे क्या होगा, क्या पार्टी इन्हें फिर से चुनाव लड़ने का मौका देगी या फिर इन्हें अब संगठन में जिम्मेदारी निभाने की भूमिका दी जाएगी। यह सवाल अहम है।

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हार पर मंथन जरुरी
कांग्रेस जिस प्रकार से जम्मू से गायब हुई, उसे इस पर विचार जरूर करना चाहिए क्योंकि जम्मू में कांग्रेस का सफाया होना निश्चित रूप में नेताओं की लापरवाही का ही परिणाम है। जिनके कंधों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों को जिताने की जिम्मेदारी थी, उन्हें भी इमानदारी से अपनी जिम्मेदारी में हुई कोताही को स्वीकार करते हुए आगे की रणनीति बनाने पर विचार करना चाहिए।

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