Haryana Assembly Polls: हार पर मंथन; कांग्रेस की बढ़ी टेंशन, यहां पढ़ें

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  • महेश सिंह

Haryana Assembly Polls: हरियाणा (Haryana) में सत्ता से वंचित रह जाना और जम्मू-कश्मीर चुनाव (Jammu and Kashmir elections) में बेहद लचर प्रदर्शन कांग्रेस (Congress) के लिए किसी सदमे से कम नहीं है।

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections) में 99 सीटों पर जीत क्या मिली, कांग्रेस आसमान में ही उड़ने लगी। उसे लगने लगा था कि अब दिल्ली दूर नहीं है, लेकिन क्षण-क्षण बदलते मतदाताओं के मन का शायद उसे भान नहीं था।

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गलत नैरेटिव सेट कर जीतीं 99 सीटें
दरअसल लोकसभा में कांग्रेस की 99 सीटों पर जीत भी मतदाताओं को धोखे में रहकर हासिल की गई थी। कांग्रेस मोदी सरकार द्वारा संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने जैसे खतरनाक नैरेटिव सेट करने में सफल रही। इसके साथ ही मतगणना के दिन 4 जून को शेयर मार्केट में भारी गिरावट पर भी राहुल गांधी ने तंज कसते हुए प्रधानमंत्री और अडानी के बीच कनेक्शन होने का आरोप लगाया था।

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‘मोदी जी गए तो अडानी गए’
4 जून को चुनावी परिणाम के बाद राहुल गांधी ने अडानी ग्रुप के शेयरों में आई भारी गिरावट का जिक्र किया था। राहुल गांधी ने कहा था कि ये बेहद दिलचस्प बात है कि जनता मोदी जी को अडानी जी से सीधा कनेक्ट करती है। उन्होंने कहा, “मोदी जी की हार होती है तो स्टॉक मार्केट कहता है कि मोदी जी गए तो अडानी गए।”

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हर महीने 8,500 रुपए देने का वादा
इसके साथ ही देश के सभी परिवार की एक महिला के बैंक में हर महीने 8,500 रुपए खटाखट खटाखट खटाखट आने का वादा कर भी उन्होंने मतदाताओं को भ्रम में डालने का काम किया था। महिलाओं को उनकी बातों से तब भरोसा उठ  गया, जब कर्नाटक और अन्य कई स्थानों पर वे बैंक में ये चेक करने पहुंच गईं, कि उनके खाते में पैसे आए कि नहीं।

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झूठे नैरेटिव की बदौलत जीत का सपना
राहुल गांधी उन्हीं झूठे नैरेटिव की बदौलत हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में जीत प्राप्त करने का सपना देख रहे थे, लेकिन जनता समझदार है। उसे जल्दी ही समझ में आ गया कि कांग्रेस की बातों में दम नहीं है, मोदी सरकार न संविधान बदलने जा रही है और न आरक्षण खत्म करने वाली है।

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नीतीश कुमार ने दिया था इशारा
सात जून 2024 को एनडीए संसदीय दल की बैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पीएम मोदी के पक्ष में अपनी पार्टी का समर्थन जताते हुए कहा था कि 10 साल से ये प्रधानमंत्री हैं और इन्होंने देश की खूब सेवा की है। विपक्षी दलों ने आज तक देश के लिए कुछ नहीं किया। मैं तो चाहता हूं, आज ही शपथ ग्रहण कर काम शुरू कर दीजिए। इस बार तो कुछ इधर-उधर लोग जीत गए हैं, लेकिन अगली बार जब आप आइएगा तो ये सभी हार जाएंगे।

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नीतीश की भविष्यवाणी पर मुहर
नीतीश कुमार की ये बातें कांग्रेस और विपक्ष के लिए सच साबित होने लगी है। मजाकिया लहजे में कही गई उनकी बातों में दम है। आम चुनाव से लेकर हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव तक में राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं के भाषण और बयानों को अध्ययन करने पर एक भी बातें ऐसी नहीं दिखतीं, जिनसे देश को मजबूती मिले और भविष्य में उसके लिए महाशक्ति बनने की राह आसान हो। गलत नैरेटिव सेट कर जनता को भ्रम में रखने की उसकी रणनीति हर जगह स्पष्ट दिखती है।

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पाकिस्तान और पन्नू का समर्थन
कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण उसे पाकिस्तान जैसे भारत के दुश्मन देश और खालिस्तानी नेता गुरुपतवंत सिंह पन्नू जैसे आतंकवादियों का समर्थन मिलना भी रहा। जनता समझदार है। उसे यह बात समझ में आ गई कि कांग्रेस का सत्ता में आना देश हित में नहीं है। इससे देश की सुरक्षा को खतरा है। इसलिए समय रहते जनता राजा ने उसे जमीन दिखा दी। कांग्रेस और विपक्ष को अपनी हैसियत को लेकर अब कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए।

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एग्जिट पोल भी फेल
हरियाणा के विधानसभा चुनाव परिणाम और रुझानों ने एक बार फिर एग्जिट पोल को झूठा साबित कर दिया । यहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। हरियाणा को लेकर जारी एग्जिट पोल पर खुशी मनाते कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए मतगणना का दिन अच्छा नहीं रहा। जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणाम भी कांग्रेस के लिए बहुत ज्यादा खुशी लेकर नहीं आए। नेशनल कॉन्फ्रेंस बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हो रही है। उमर अब्दुल्ला का मुख्यमंत्री बनना तय है।

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हार के अन्य कारण
हार के अन्य कारणों को गिने तो 10 साल से सत्ता से बाहर रही कांग्रेस के कार्यकर्ता कुछ शिथिल पड़ गए हैं। पार्टी चुनाव के लिए देर से कमर कसती है। 10 साल में राज्य में कांग्रेस, भाजपा सरकार की कमी और लोगों के मुद्दों को जोरदार ढंग से उठा नहीं पाई। लोकसभा चुनाव में हालांकि कांग्रेस ने बेहतर परिणाम दिए थे और हरियाणा की 10 में से पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी।

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अंदरुनी कलह और गुटबाजी
कांग्रेस के भीतर गुटबाजी ने कार्यकर्ताओं तक को एक-दूसरे से दूर रखा । इस गुटबाजी को साफ तौर पर देखा भी गया। भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला के समर्थकों में एक राय न होना भी हार की एक वजह है। साथ ही इस पराजय की बड़ी वजह इन तीनों ही नेताओं के कार्यकर्ताओं को अपने-अपने नेताओं को सीएम पद की दौड़ में सबसे आगे देखने की होड़ भी है। सब कह रहे हैं कि यही कांग्रेस की लुटिया डूबने की वजह है। रणदीप सुरजेवाला की ओर से भले ही कोई बयान न आया हो, लेकिन हरियाणा कांग्रेस की राजनीति में वह भी एक धुरी बन गए थे।

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सीएम पद के चेहरे का एलान न करना
हुड्डा और सैलजा के बीच की कड़वाहट सार्वजनिक मंचों पर देखने को मिली। दोनों ही नेताओं की सीएम बनने की इच्छा उनके ही बयानों से सामने आ रही थी। हालांकि दोनों ही नेता पार्टी आलाकमान पर नेता चुनने की बात कह रहे थे लेकिन अपनी बात भी स्पष्ट रख रहे थे। कांग्रेस का सीएम पद का ऐलान न करना भी नुकसानदेह रहा। यदि पार्टी पहले से ही सीएम पद का ऐलान कर देती तो संभवतः यह गुटबाजी देखने को नहीं मिलती। कार्यकर्ताओं में जोश बराबर रहता और सभी एक नेता के नाम के साथ जनता के बीच जा सकते थे। जनता के मन में भी किसी प्रकार का कोई संशय नहीं होता।लेकिन कांग्रेस आलाकमान अपने नेताओं की अंतर्कलह को अंत तक सुलझाने में कामयाब नहीं हो पाए।

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मुख्यमंत्री कुर्सी के लिए होड़
हालात कितने खराब थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता एग्जिट पोल के बाद से ही अपनी-अपनी दावेदारी प्रस्तुत करने में लगे रहे, यहां तक की मतगणना के दिन भी मीडिया को दिए बयानों में कांग्रेस के सीएम पद के दावेदार अपनी कुर्सी पक्की मानकर चल रहे थे। हुड्डा तो दिल्ली का दौरा भी कर गए। दलित समाज के वोटों का सरकना भी कांग्रेस की हार का एक कारण रहा। लोकसभा चुनाव में जाट और दलित वोटों ने कांग्रेस का बेड़ा पार किया था, लेकिन अब कहा जा रहा है कि पिछले कुछ महीनों में दलित वोट एक बार फिर छिटक कर भाजपा के पाले में चला गया। राज्य में जाटों का वोट प्रतिशत करीब 22 प्रतिशत है, जबकि 20 प्रतिशत दलित वोट है।

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दलित भी हो गए नाराज
दलितों का वोट पार्टी से जाना कांग्रेस के लिए एक सदमा दे गया। राज्य में ओबीसी वोट और दलित वोट इस बार फिर भाजपा के पक्ष में गया। वैसे भी कांग्रेस का पूरा जोर जाट वोटों पर था, जिसका खामियाजा पार्टी अब हार के रूप में भुगत रही है। राज्य में इंडी अलायंस न बन पाने के कारण इसके दो घटक कांग्रेस से नाराज हो गए। राज्य में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस से 90 सीटों में से 10 सीटों की मांग कर रही थी, जबकि समाजवादी पार्टी भी राज्य में दो सीट चाह रही थी। अंतिम समय तक इन दलों में सहमति नहीं बन पाई।

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दोस्ती में कुश्ती
आम आदमी पार्टी ने नाराजगी में अपने 29 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी ,हालांकि उसे भी शून्य पर सिमटना पड़ा है। हालांकि आम आदमी पार्टी केवल चार सीटों पर कुछ असर डाल रही थी, लेकिन कांग्रेस का कहना है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस की अच्छे परफॉर्मेंस वाली सीटों की मांग कर रही थी। ऐसे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रणदीप सुरजेवाला ने गठबंधन के विरोध में अपनी राय व्यक्त की। पार्टी की ओर इस कार्य के लिए तैनात किए गए अजय माकन ने दोनों की बात को स्वीकारा और अंतत: गठबंधन नहीं हो पाया। इस कारण आम आदमी पार्टी का दो प्रतिशत वोट कांग्रेस के हाथ से फिसल गया।

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भाजपा की वापसी के कारण
पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, हालांकि किसान विरोध और कानून व्यवस्था के मुद्दों से निपटने के लिए आलोचना के शिकार हुए, लेकिन साथ ही वे एक गैर-भ्रष्ट, सुलभ नेता की छवि बनाए रखने में कामयाब रहे। गैर-जाट समुदायों से उनकी अपील ने भाजपा को वोटों का एक बड़ा हिस्सा बनाए रखने में मदद की। इसके अलावा, भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और राष्ट्रवादी अपील का प्रभावी ढंग से लाभ उठाया। एक मजबूत नेता के रूप में मोदी की छवि, राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास के भाजपा के आख्यान के साथ मिलकर, शहरी और अर्ध-शहरी मतदाताओं के बीच गूंजती रही, जो स्थानीय मुद्दों से कम और राष्ट्रीय चिंताओं से अधिक प्रभावित थे। दूसरी ओर, कांग्रेस, मोदी की अपील का मुकाबला करने के लिए एक समान एकीकृत आख्यान पेश करने में असमर्थ रही। जिन कांग्रेस नेताओं को फील्ड में भेजा गया, उनमें ज्यादातर सिफारिशी थे और प्रभावहीन भी, जो कांग्रेस को हार की तरफ खींच ले गए।

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