Supreme Court: न्याय की देवी की आंखों से काली पट्टी हटाने का महत्वपूर्ण निर्णय मुख्य न्यायाधीश डी. वाई चंद्रचूड़ द्वार लिया गया है। साथ ही नई मूर्ति में न्याय की देवी के हाथ में तलवार की जगह संविधान है। पुरानी मूर्ति को बदलने का निर्णय लिया गया क्योंकि यह ब्रिटिश परंपरा में थी, जो ग्रीक देवी थेमिस पर आधारित थी। यह मूर्ति सर्वत्र न्याय की देवी का प्रतीक मानी जाती थी। लेकिन मुख्य न्यायाधीश द्वारा लिए गए फैसले के बाद इस मूर्ति को भारतीय न्याय की देवी का प्रतीक मानकर चर्चा हो रही है।
मूर्ति पर कोई आपत्ति नहीं
सुप्रीम कोर्ट के वकील सिद्धार्थ शिंदे द्वारा एक समाचार एजेंसी को दी गई जानकारी के मुताबिक, यह नई प्रतिमा जजों की लाइब्रेरी में स्थापित की गई है। हालांकि, इस मूर्ति को सभी अदालतों में लगाया जाएगा या नहीं, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। वहां ग्रीक देवता पर आधारित एक पुरानी मूर्ति थी। लेकिन आज आंखों से पट्टी हटाकर नई मूर्ति लगा दी गई है। वास्तव में आज आंखों से पट्टी हटाने की बहुत जरूरत थी। इस मूर्ति पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। ये पूरा फैसला मुख्य न्यायाधीश का होता है। इसमें तलवार की जगह संविधान होने में कोई बुराई नहीं है।
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वरिष्ठ वकील उज्जवल निकम ने किया स्वागत
एक समाचार एजेंसी को जानकारी देते हुए वरिष्ठ वकील उज्जवल निकम ने कहा कि कई मामलों में काम करते समय मैं कहता हूं कि न्याय की देवी की एक आंख खुली होनी चाहिए। आंख का मतलब है, सबूतों को कानून के मुताबिक परखना। साथ ही संविधान के आधार पर न्याय करना न्याय का मुख्य कर्तव्य है। इसलिए, मुख्य न्यायाधीश द्वारा प्रतिस्थापित की गई न्याय की देवी की मूर्ति का उद्देश्य, चाहे कोई भी पक्ष सामने आए, सही निर्णय देना था। हालांकि, यह सही है कि न्यायाधीश को किसी विशेष पक्ष को ध्यान में रखकर निर्णय नहीं देना चाहिए, लेकिन न्यायाधीश को नजर रखनी चाहिए। इसलिए हमें इस बदलाव का स्वागत करना चाहिए।