न दोहराया जाए गलतियों का इतिहास तो सावरकर को पढ़ना होगा – रणजीत सावरकर

स्वातंत्र्यवीर सावरकर और उनके बंधु बाबाराव सावरकर को 2 मई, 1920 को अंदमान के कालापानी से मुक्ति मिली थी। इसके पश्चात दोनों भाइयों को यद्यपि भारत लाया गया लेकिन, उनकी सजा समाप्त नहीं हुई थी। उनकी यातनाएं समाप्त नहीं हुईं। लेकिन इन कष्टों के बाद भी राष्ट्र कर्म, मानव धर्म के प्रति उनके कार्य निरंतर चलते रहे।

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स्वातंत्रवीर सावरकर ने सेना में मुसलमानों की बढ़ती संख्या को लेकर बहुत काल पहले ही कहा दिया था कि भारत की स्वतंत्रता में ये हिंदुओं के लिए घातक होगा। लेकिन, उनकी बातों पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितना दिया जाना था। परंतु, सावरकर की उस बात के मर्म को उस काल की युवा पीढ़ी ने आत्मसात कर लिया और सेना में भर्ती होने लगे। इसका लाभ स्वतंत्र भारत की सेना को मिला। लेकिन इस स्वतंत्रता काल तक देश की जनसंख्या में मुस्लिमों का प्रतिशत 35 तक पहुंच गया था और इसकी परिणति ये हुई कि उन्होंने लड़कर पाकिस्तान ले लिया। यानी जो कार्य संख्या में कम मुस्लिम सैनिकों से न हुआ वो जनसंख्या में अधिक हुए मुसलमानों ने कर दिया।

इतिहास अपने आपको दोहराता है, 1919 में स्पैनिश फ्लू के संक्रमण ने देश की कुल जनसंख्या के पांच प्रतिशत लोगों को मौत की खंदक में धकेल दिया। 2019 से हम कोरोना का कहर झेल रहे हैं। ये इतिहास के दोहराने का क्रम है। यदि यही क्रम रहा तो 2047 में मुस्लिम फिर एक बार देश का एक टुकड़ा अलग कर सकते हैं। आज मुस्लिम लगभग 22 प्रतिशत हैं, लेकिन उनकी जनसंख्या लगातार वृद्धि की ओर है। यह गति 2047 में संभावित खतरे की ओर आगाह करने के लिए बहुत है। उस काल में मुस्लिमों ने एक आंदोलन चलाया ‘खिलाफत आंदोलन’। यह मुस्लिमों पर ब्रिटिशों द्वारा किये जा रहे अन्याय के विरोध में था। इसका उस काल में समर्थन गांधी ने किया था। उस आंदोलन में जलियावाला बाग की घटना को जोड़ दिया गया जिससे हिंदू इस आंदोलन से जुड़ गया। ऐसा ही एक आंदोलन आज सौ साल बाद चला ‘सीएए विरोध’ का। जैसे खिलाफत आंदोलन के समर्थन में उस काल में गांधी खड़े थे, वैसे ही सीएए विरोधी आंदोलन के समर्थन में अब सोनिया गांधी और राहुल गांधी खड़े हैं।

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दिल्ली में मोपला दंगों की झलक
केरल में मोपला मुसलमानों ने दंगे कर दिये। इसमें बड़ी संख्या में हिंदुओं को निशाना बनाया गया। उनकी हत्याएं की गईं, महिलाओं के साथ जघन्य अपराध किये गये। उस काल के विषय में कहा जाता है कि केरल में जितने भी कुंए और तालाब थे वह सभी हिंदुओं से पट गए थे। उन्हें घायल करके फेंक दिया गया था, कई तो जब बाहर निकाले गए तो वे घायलावस्था में जीवित थे। इस दंगे को ब्रिटिशों ने सेना के बल से दबा दिया। तब गांधी ने उन मोपला मुसलमानों का समर्थन करते हुए कहा ‘माय मोपला ब्रदर्स’। उस दंगे की एक छोटी पुनरावृत्ति थी दिल्ली दंगों के रूप में हो चुकी है। जहां हिंदुओं को मारा गाया, उनकी संपत्ति को जलाया गया। यही है हिस्ट्री रिपीट्स।

हिंदू संगठन की आवश्यकता
स्वातंत्र्यवीर सावरकर के भारत आने से पहले ही सांस्कृतिक रूप से हिंदू संगठन की शुरुआत हो गई थी, लेकिन हिंदुओं के राजनीतिक संगठन की शुरुआत वीर सावरकर के आने के बाद हिंदू महासभा के रूप में हुई। यह आवश्यकता क्यों लगी इसका भी कारण था। 1875 के आसपास सर सैयद अहमद खान ने मदरसतुलउलूम नाम से एक मुस्लिम शैक्षणिक संस्थान शुरू किया जो बाद में विश्वविद्यालय में बदल गया। इसका नाम पड़ा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी। इसके पीछे कारण था कि सर सैयद अहमद खान ने ये देखा की मुसलमान उस काल में मात्र बीस प्रतिशत थे। ऐसे में यदि ब्रिटिश भारत से चले जाते तो मुस्लिमों की क्या स्थिति होगी इसे भांपते हुए उन्होंने मुसलमानों को शिक्षित करके ब्रिटिशों के समर्थन में मोड़ा। वीर सावरकर की ग्रंथ संपदा को यदि पढ़ा जाए तो उसमें इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि यहीं से भारत में टू नेशन थ्योरी का जन्म हुआ। इसके पश्चात 1908-09 में मुस्लिमों के लिए अलग संविधान ने इसे और बल दे दिया। इन सबको वीर सावरकर ने बहुत पहले ही भांप लिया था। इसीलिए उन्होंने हिंदुओं के राजनीतिक दल के गठन पर बल दिया।

यह ऐतिहासिक प्रमाण रहा है कि वीर सावरकर ने कोल्हू पेरते हुए ही देश में उद्भव लेनेवाली जिन परिस्थितियों का आंकलन बहुत पहले ही कर लिया था, उन परिस्थितियों की ओर कांग्रेस ने कभी विचार ही नहीं किया।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर के प्रखर विचारों को आत्मसात करके अपने आपको सचेत और तैयार करने की आवश्यकता है। इसलिए वीर सावरकर और उनके बंधु बाबाराव सावरकर की कालापानी से मुक्ति यात्रा का यह शतकोत्सव एक कार्यक्रम से अधिक एक सामाजिक प्रबोधन का अवसर है।

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इस अवसर को जन-जन तक पहुंचाने के लिए कालापानी मुक्ति शताब्दी यात्रा का आयोजन किया गया था। लेकिन देश में कोविड 19 के भयंकर संक्रमण के कारण इसे स्थगित कर दिया गया और दूरदृष्टि के माध्यम से एक व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इस व्याख्यानमाला का संचालन कार्य स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक की कोषाध्यक्ष मंजिरी मराठे कर रही हैं, जिसका उद्घाटन संबोधन रणजीत सावरकर द्वारा हुआ, इसमें ‘सावरकर और हिंदू संगठन’ विषय पर उन्होंने इतिहास की तथ्यात्मक सच्चाइयों के माध्यम से प्रबोधन किया।

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