Unnao Incident: उन्नाव की घटना ने याद दिला दी वीर सावरकर की वो बात

111

-डॉ. मयंक चतुर्वेदी

Unnao Incident: भारत के किसी भी कोने में हिन्‍दुओं की जनसंख्‍या कम होती है और मुस्‍लिमों की बढ़ती है, तब वहां जो सबसे बड़ी समस्‍या शुरू होती है, वह है हिन्‍दू समाज को दबाने और भगाने की। कई बार अत्‍याचार का आलम यह हो जाता है कि मजबूर होकर लोग पलायन के लिए विवश हो उठते हैं और इसके साथ ही दर्द की अनेक कहानियां वक्‍त के साथ सिर्फ यादों में तब्‍दील हो जाती हैं, छूट जाते हैं, हमेशा-हमेशा के लिए वो घरौंदे, वे पूर्वजों की थाती और वो खेत-खलियान, शहर, जहां उनकी संपूर्ण यादें तरोताजा रहीं। कई बार इस सत्‍य को नकारने का प्रयत्‍न होता है कि ऐसा कुछ भी नहीं, ये तो कुछ हिन्‍दू विचार के लोगों द्वारा झूठ फैलाया जा रहा है। लेकिन देशभर में जिस तरह से एक के बाद एक ऐसे प्रकरण आ रहे हैं, वे भविष्‍य के भारत को लेकर बहुत डराते हैं। सवाल यह है कि क्‍या इस्‍लाम के होते हुए हुए समरस समाज की कल्‍पना संभव है ?

यह भी पढ़ें- Mann ki Baat: ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री मोदी ने दिया ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ से बचने का मंत्र

मुस्लिम महिलाओं ने रोका मंदिर निर्माण
ताजा प्रकरण उत्तर प्रदेश के उन्नाव के बीघापुर कोतवाली इलाके में घटा है, यहां पुरुष तो पुरुष, महिलाओं ने आगे आकर हिन्‍दुओं को प्रताड़‍ित करने का काम किया है। यहां पर रानीपुर एक मुस्लिम बाहुल्य गाँव है, जिसमें 130 मुस्लिम परिवार तथा सिर्फ 30 हिंदू परिवार रहते हैं। बहुसंख्यक मुस्लिम वर्ग की महिलाओं ने यहां निर्माणाधीन एक मंदिर के विरोध में ऐसा हल्‍ला बोला कि मंदिर का काम बीच में ही रोक देना पड़ा। इन इस्‍लामिक महिलाओं का कहना है “मंदिर की घंटियों से उन्हें समस्या होगी” इसलिए वे मंदिर बनने नहीं देंगी, चाहे कुछ भी हो जाए। इस गांव की मुस्लिम महिलाओं ने मंदिर निर्माण का खुला विरोध करते हुए भड़काऊ बयानबाजी तक की, जिनके वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहे हैं। यहां पहले ही कई हिन्‍दू परिवार मुस्‍लिम दबाव में आकर अपने खेत औने-पौने दामों पर बेचकर पलायन कर चुके हैं।

यह भी पढ़ें- NCPSP Candidate List: एनसीपी (शरद पवार) ने जारी की 9 उम्मीदवारों की सूची, पूरी लिस्ट यहां देखें

घंटी बजने से परेशानी
दरअसल, यहां गांव में एक शिव मंदिर है, जो 70 वर्ष से ज्यादा पुराना है। इस मंदिर के चबूतरे पर हिंदू परिवार अपने धार्मिक कार्य जैसे मुंडन, छेदन तथा शादी-विवाह संपन्न करते हैं। चबूतरे पर चारों ओर दीवारें और खंभे खड़े हैं, किन्तु छत अब तक नहीं डली थी। इसके लिए कुछ हिन्‍दू परिवार आगे आए और तय हुआ कि मंदिर पर छत होनी चाहिए, लेकिन जैसे ही इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ, यहां हिंदुओं की जमीन पर हिंदुओं को ही मंदिर निर्माण के काम को होने से रोका जाने लगा। अब सोचने वाली बात है कि हिन्‍दू अपनी भूमि पर भी अपने देवताओं की स्‍थापना एवं पूजा नहीं कर सकता तो कहां करेगा? मुसलमानों को अब घंटी की आवाज से भी दिक्‍कत है।

यह भी पढ़ें- CRPF School Blast: दिल्ली ब्लास्ट कहीं बड़ी साजिश का ट्रायल तो नहीं? यहां पढ़ें

अजान और नमाज में खलल
मुस्लिम महिलाओं का कहना है, मंदिर में भजन कीर्तन और घंटा बजने की आवाज से अजान और नमाज में खलल पड़ेगी, जो हम होने नहीं देंगे। यहां मुस्‍लिम औरतें समूह में बोल रही हैं, हिन्‍दू जबरन हमें सता रहे हैं, ये सब हमारे बाबा-दादा की जमीन है। जैसे अभी कुछ दिन पहले ही एक मौलाना ने दिल्‍ली की 80 प्रतिशत जमीन को वक्‍फ की जमीन करार दिया था, वैसे ही इस गांव की मुसलमान औरतें भी मानती हैं कि हिन्‍दुओं की जमीन भी उनकी अपनी हैं, जो थोड़े बहुत हिन्‍दू उनके गांव में रह रहे हैं वे भी जल्‍दी से सब कुछ छोड़कर भाग जाएं। दूसरी ओर यहां के हिंदुओं का पक्ष है, उनका कहना है कि उन्हें तो अजान से कोई दिक्कत नहीं होती है तो फिर मुसलमानों को भजन-कीर्तन से दिक्कत क्यों होनी चाहिए?

यह भी पढ़ें- Mann Ki Baat: मन की बात कार्यक्रम में पीएम मोदी ने किया आत्मनिर्भर भारत का जिक्र, कहा- देश हर क्षेत्र में कर रहा कमाल

सड़क पर करना पड़ रहा है भजन
यहां के हिन्‍दू अपना दर्द बता रहे हैं, उन्‍हें सड़क के क‍िनारे भजन करना पड़ रहा है, क्‍योंकि गांव के मुसलमानों ने संख्‍याबल के प्रभाव से उनकी जमीन हड़प ली है। कई परिवार अपने पूर्वजों की मिट्टी के लिए जब तीज त्योहार पर गांव आते हैं तो ये मुस्‍लिम लोग हमारे बच्चों को मारते हैं। अब आप ही बताओं, हम क्‍या अपने पूर्वजों के स्‍थान को यूं ही भूल जाएं?

यह भी पढ़ें- Accident: रांची से इलाहाबाद जा रही बस दुर्घटनाग्रस्त, औरंगाबाद में जीटी रोड पर हुआ हादसा

अत्‍याचारों में मुस्‍लिम स्‍त्रियों का प्रचंड योगदानः वीर सावरकर
फिलहाल योगी सरकार की पुलिस और तहसीलदार की सक्रियता से आखिरकार मंदिर बनने का रास्ता साफ हुआ है, लगभग 200 स्क्वायर फीट के इस छोटे से शिव मंदिर पर अब हिन्‍दू महिलाएं जलाभिषेक कर रही हैं। छत का काम भी कुछ दिन में पूरा हो जाएगा। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर उस अतीत की याद दिला दी है, जिसका कि जिक्र विनायक दामोदर सावरकर ने अपनी पुस्‍तक ‘छह स्‍वर्णिम पृष्‍ठ’ के भाग चार में किया है। पुस्‍तक में उन्‍होंने एक अध्‍याय ‘सद्गुण विकृति’ नाम से लिखा है। इसमें बहुत कुछ लिखा गया है, लेकिन यहां जिक्र उस पुराने काल की मुस्‍लिम महिलाओं का करेंगे, जिन्‍होंने हिन्‍दुओं के लिए अनेक संकट पैदा किए और हिन्‍दू समाज अपने विशाल हृदय के प्रभाव में हर बार इन्‍हें नजरअंदाज करता रहा और इनसे बार-बार छले जाने के बाद भी इन्‍हें माफ करता रहा। सावरकर ने इसमें एक चैप्‍टर इस शीर्षक के साथ लिखा-अत्‍याचारों में मुस्‍लिम स्‍त्रियों का प्रचंड योगदान, इसमें उन्‍होंने लिखा-‘‘हिन्‍दू-मुसलमान के कई शतकों तक चल रहे इस महायुद्ध में जिन लाखों हिन्‍दू स्‍त्रियों को मुसलमानों ने बलपूर्वक भ्रष्ट किया; उन पर घोर अत्याचार करने में मुस्लिम स्त्रियों ने बड़े उत्साह से प्रचंड योगदान किया। यह विधान वैयक्तिक रूप से नहीं, सामुदायिक रूप से सत्य है। तत्कालीन मुस्लिम स्त्रियों की इस राक्षसी क्रूरता का निर्भीक, स्पष्ट और विशेष उल्लेख किसी भी इतिहास-लेखक द्वारा किया हुआ हमने नहीं देखा, इसलिए उसे स्पष्ट रूप से और निर्भीकता से कहना हमारा कर्तव्य है।’’

यह भी पढ़ें- Mann ki Baat: ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री मोदी ने दिया ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ से बचने का मंत्र

धर्मांतरण में भी क्रूरतापूर्ण सहयोग
वे लिखते हैं, ‘‘हिंदू स्त्रियां अर्थात ‘काफिरों’ की स्त्रियां तो जन्मजात दासियां ही होती हैं, उन्हें बलपूर्वक मुस्लिम धर्म में लाकर उनका उद्धार (?) करने के कार्य में यथासंभव सहायता करना प्रत्येक मुस्लिम स्त्री का धार्मिक कर्तव्य है-ऐसी राक्षसी शिक्षा उस काल की मुस्लिम स्त्रियों को दी जाती थी। उन मुस्लिम स्त्रियों में बेगमों से लेकर भिखमंगिनों तक कोई भी स्त्री मुस्लिम पुरुषों द्वारा हिंदू स्त्रियों पर होनेवाले घोर अत्याचारों का विरोध तो कदापि करती ही नहीं थी, उलटे उन पुरुषों को ऐसे प्रकरणों में प्रोत्साहन देकर उनका सम्मान ही करती थी। वे स्वयं भी इन अभागी हिंदू स्त्रियों पर यथासंभव सारे अत्याचार करती थीं। मुसलमान सुलतानों के सिपाहियों, मुल्ला-मौलवियों और गांवों, नगरों में फैले हुए मुसलमान गुंडों के क्रूर हाथों में पड़ी हिंदू स्त्रियों को शाही जनानखानों से लेकर गांव की झोंपड़ियों तक विभिन्न स्थानों में छिपाकर उन्हें बलपूर्वक मुसलमान बनाना, उनसे दासी या नौकरानी जैसे काम करवाना, उन्हें मार-पीटकर मुस्लिम समाज में बंदिनी बनाकर रखना, उन्हें उनके परिवारों और बाल-बच्चों से निर्दयतापूर्वक दूर रखकर मुसलिम पुरुषों में बांट देना, इस प्रकार के अगले सारे क्रूर और दुष्ट कार्य करने में मुस्लिम स्त्रियां भी मुस्लिम पुरुषों का उत्साह से हाथ बंटाती थीं। हिंदू-मुस्लिम युद्धों के धूमधाम के अशांत समय में ही नहीं, अपितु मध्यांतर के शांति काल में भी हिंदू राज में रहकर भी, पास-पड़ोस की हिंदू बहू-बेटियों को बहला- फुसलाकर, भगाकर, अपने घरों में बलपूर्वक बंदी बनाकर अथवा गांव की मस्जिद के मुस्लिम अड्डे पर पहुंचाकर उन्हें मुस्लिम समाज में पचा लेना इस्लाम की धर्माज्ञा के अनुसार उनका नित्य कर्तव्य है, यह धारणा पूरे भारत में फैले हुए मुस्लिम स्त्री-समाज में व्याप्त थी।’’

यह भी पढ़ें- NCPSP Candidate List: एनसीपी (शरद पवार) ने जारी की 9 उम्मीदवारों की सूची, पूरी लिस्ट यहां देखें

स्त्री के साथ अत्याचार नहीं करने की हिंदू नीति
विनायक दामोदर सावरकर आगे लिखते हैं, ‘‘उनके इन अधम, राक्षसी कृत्यों के लिए कभी कोई हिंदू उनका सर्वनाश करेगा – ऐसा जरा भी भय उन मुस्लिम स्त्रियों को नहीं था। युद्धों में मुसलमान के विजयी होने के बाद जब उनका राज्य स्थापित होता था, तब हिंदू स्त्रियों को भ्रष्ट कर मुसलमान बनाने के इस धर्म-कार्य के लिए उन मुस्लिम स्त्रियों का सम्मान किया जाता। परंतु बीच-बीच में हिंदू सेनाओं की विजय होने पर जब हिंदू राज्य स्थापित होता था (ऐसा उस काल में अनेक बार हुआ था), तब भी अधिक से-अधिक मुस्लिम पुरुष-समाज का हिंदुओं से टकराव होता था। युद्धों में मुस्लिम पुरुषों का ही वध किया जाता है; परंतु हिंदुओं द्वारा विजित युद्धों में कोई हिंदू सेनापति, सैनिक अथवा नागरिक उन आततायी मुसलिम स्त्रियों का बाल भी बांका नहीं करेगा- इसकी पूर्ण आश्वस्ति उस मुस्लिम स्त्री-समाज को होती थी। कारण, भले ही वे शत्रु पक्ष की हों और आततायी हों, परंतु वे ‘स्त्रियां’ थीं, इसलिए युद्धों में विजित मुसलिम राजस्त्रियों और दासियों को उनके तत्कालीन हिंदू विजेताओं ने सुरक्षित उनके मुसलिम घरों में वापस भेज दिया- ऐसे उदाहरण उस काल में बार-बार घटित होते थे। और इन कृत्यों का सम्मान हमारा समस्त हिंदू समाज यह कहकर करता था कि ‘देखिए, यह है हमारा परस्त्री-दाक्षिण्य का सद्गुण ! यह है हमारे हिंदू धर्म की विशाल उदारता!’’

यह भी पढ़ें- Maharashtra Assembly Polls: विधानसभा चुनाव से पहले जयशंकर का बड़ा बयान, विकसित भारत’ के लिए विकसित महाराष्ट्र…’

सदियों तक चलता रहा दमन चक्र
वस्‍तुत: ‘‘हिंदुओं के उस काल के इस स्त्री-दाक्षिण्य के राष्ट्रघातक धर्मसूत्र के कारण ही मुस्लिम स्त्रियों द्वारा नित्यप्रति लाखों हिंदू स्त्रियों पर अनंत अत्याचार किर जाने के बावजूद उनका हिंदुओं से संरक्षण करने के लिए उनके ‘स्त्रीत्व’ की एक ही ढाल पर्याप्त सिद्ध हुई !..ऐसी परिस्थिति में कई शतकों तक हिंदू स्त्रियों पर घोर अत्याचार करने और उन्हें भ्रष्ट करने के घोर अपराधों का यथोचित दंड उस मुस्लिम स्त्री-समाज को कभी भी नहीं दिया गया। इसी कारण हिंदू स्त्रियों को छल-बलपूर्वक भ्रष्ट करने का मुस्लिम स्त्री-समाज का यह दुष्टतापूर्ण कार्य कई शतकों के उस प्रदीर्घ कालखंड में समस्त भारत में निर्बाध रूप से सतत चलता रहा; …जिन शत्रु- स्त्रियों ने हमारी मां-बहनों को बलपूर्वक भ्रष्ट कर उन्हें दासी बनाया, उनका राक्षसी स्त्रीत्व उनके इन आततायी कृत्यों से ही स्पष्ट होता है।’’

यह भी पढ़ें- CRPF School Blast: दिल्ली ब्लास्ट कहीं बड़ी साजिश का ट्रायल तो नहीं? यहां पढ़ें

वर्तमान में भी सावरकर का विचार सत्य
सावरकर आगे कई उदारहण देते हुए यह बताने का प्रयास करते हैं क‍ि हमारे पुराण आख्‍यान या प्राचीन भारत का इतिहास सिर्फ गर्व करने के लिए नहीं, उसका अनुसरण करने के लिए है। फिलहाल उत्तर प्रदेश के उन्नाव की यह घटना और मुस्‍लिम औरतों का हिन्‍दुओं पर अत्‍याचार यही बता रहा है कि सावरकर जो अपनी पुस्‍तक में वर्णन कर रहे हैं, वह सभी इतिहास का ही नहीं, वर्तमान का भी सत्‍य है, जिससे हिन्‍दू समाज को बाहर निकलना अति आवश्‍यक हो गया है ।

यह वीडियो भी देखें-

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.