UP Bypolls: इंडी की चिंदी ,मतलब की यारी? जानने के लिए पढ़ें

राजनीतिक गलियारों में यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि क्या अखिलेश यादव को कांग्रेस की लोकप्रियता से खतरा महसूस हो रहा है?

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-नरेश वत्स

UP Bypolls: हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Assembly Elections) में कांग्रेस की हार (Congress defeat) के बाद इंडी गठबंधन (Indi Alliance) में कांग्रेस के सहयोगी दलों ने आंखें दिखाना शुरू कर दिया है। महाराष्ट्र (Maharashtra) में महाविकास अघाड़ी गठबंधन (Mahavikas Aghadi Alliance) में कांग्रेस को सीटों को लेकर भारी नुकसान उठाना पड़ा, वहीं उत्तर प्रदेश विधानसभा के उपचुनावों की 9 सीटों में से अखिलेश यादव ने कांग्रेस को एक सीट भी नहीं दी। ‌समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने ऐसी राजनीतिक चाल चली कि कांग्रेस के पीछे हटने के अलावा कोई चारा नहीं रहा। ‌

कांग्रेस ने यह कहकर अपना बचाव किया कि राहुल गांधी के संविधान बचाने की लड़ाई को मजबूत करने के लिए कांग्रेस ने उपचुनाव में किसी भी सीट पर नहीं लड़ने का निर्णय लिया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक हैसियत का पता चल गया है? क्या समाजवादी पार्टी ने ही कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में खत्म करने की रणनीति बना ली है। राजनीतिक गलियारों में यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि क्या अखिलेश यादव को कांग्रेस की लोकप्रियता से खतरा महसूस हो रहा है?

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दोस्त या दुश्मन?
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच लोकसभा चुनाव में गठबंधन हुआ था लेकिन हरियाणा ,जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के रिश्तों की परतें खुलने लगी है। ऐसे में दोनों पार्टी के नेता दबी जुबान में एक दूसरे को खुद के लिए सियासी तौर पर खतरा बताने में पीछे नहीं रहते हैं।

जानकारों का कहना है कि कांग्रेस अपने पुनर्जन्म के लिए संघर्ष कर रही है। कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश विधानसभा 2027 का चुनाव बड़ा मौका है। लेकिन सच्चाई यह है कि कांग्रेस के लिए समाजवादी पार्टी ही काल बन गई है । दरअसल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों के वोट बैंक एक ही है। ‌ मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने के लिए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एक दूसरे को पीछे छोड़ने में लगी रहती है। यह भी गौर करने वाली बात है कि मुसलमानों का वोट पाकर ही समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में सरकार बनाती रही है।

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सपा के लिए कारगर माई फॉर्मूला
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का मजबूत आधार मुस्लिम और यादव रहे हैं । दलितों के बीच भी समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में अच्छी पैठ बना ली है। लेकिन कांग्रेस हमेशा से समाजवादी पार्टी को एक क्षेत्रीय पार्टी मानती है। यह बात कई बार देखने में आ चुकी है। हरियाणा और मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव इसके उदाहरण हैं। दोनो राज्यों के चुनावों के समय कांग्रेस के कई नेताओं ने अखिलेश यादव के लिए जिस शब्दावली का इस्तेमाल किया, उससे यह साफ हो जाता है कि कांग्रेस समाजवादी पार्टी का उत्तर प्रदेश में तो फायदा उठाना चाहती है लेकिन अपने आधार वाले राज्यों में वह उसे महत्व नहीं देती है। आपको याद होगा कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने और छत्तीसगढ़ के मंत्री सिंह देव ने अखिलेश के बारे में कहा था, कौन अखिलेश? एक कांग्रेस नेता ने तो अखिलेश को छुटभैया तक कह दिया था।

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नौ सीटों पर उपचुनाव
उत्तर प्रदेश की जिन 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उनमें मैनपुरी की करहल,प्रयागराज की फूलपुर, मिर्जापुर की मझवां, अंबेडकर नगर की कटेहरी, मुरादाबाद की कुंदरकी, मुजफ्फरनगर की मीरापुर, कानपुर की सीसामऊ, अलीगढ़ की खैर और गाजियाबाद सीट शामिल हैं।

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अखिलेश यादव ने कांग्रेस को दिखाया आईना
उत्तर प्रदेश उपचुनाव में 9 सीटों में से समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को एक भी सीट नहीं दी। क्या अखिलेश यादव कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में खत्म करना चाहते हैं? अखिलेश यादव को राहुल गांधी की लोकप्रियता से खतरा हो गया है? या समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव को ये समझ आ गया है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अगर बढ़ती है तो समाजवादी पार्टी को ही नुकसान होगा। कहा तो यह भी जा रहा है कि अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ जानबूझकर यह सब किया है। अखिलेश यादव को अगर कांग्रेस को कुछ सीटें देने का मन होता तो अखिलेश यादव अपने प्रत्याशियों की घोषणा  कांग्रेस के साथ चर्चा किए बिना नहीं करते। लेकिन क्या कांग्रेस उत्तर प्रदेश में इतनी छोटी पार्टी हो गई है? या फिर अखिलेश यादव ने इंडी गठबंधन धर्म नहीं निभाया?

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महाराष्ट्र में भी हो गया खेला
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में महाविकास अघाड़ी गठबंधन में सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस का हुआ है ।कांग्रेस जो कि इस गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका निभाना चाहती थी, वह अब बराबर की सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है। इससे पहले कांग्रेस ने कभी भी इतनी कम सीटों पर चुनाव नहीं लड़ा है। हालांकि अंतिम फैसला होना अभी भी बाकी है। लेकिन सवाल यह है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी की ऐसी हालत क्यों हुई है? कांग्रेस की आखिर क्या मजबूरी है कि उसने इतनी कम सीटों पर समझौता करना पड़ रहा है?

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