370 समाप्त पर चल रहा मुस्लिम ब्रदरहुड का इस्लामीकरण! अंकुर शर्मा

स्वातंत्र्यवीर सावरकर कालापानी मुक्ति शताब्दी के अवसर पर चल रही व्याख्यानमाला की श्रृंखला में जम्मू के अधिवक्ता अंकुर शर्मा सम्मिलित हुए। वे हिंदू रक्षा के लिए राजनीतिक और सामाजिक पटल पर कार्य करनेवाले संगठन इक्कजुट्ट जम्मू के अध्यक्ष हैं। उन्होंने 'जम्मू: अब हिंदू अस्तित्व की आर पार की लड़ाई' के विषय पर अपने विचार और संघर्षों को वैश्विक पटल पर दूरदृष्टि के माध्यम से रखा।

386

हिंदू 1400 वर्षों से इस्लामी समस्या से जूझ रहा है। इस कालखण्ड में हिंदूओं ने उन्हीं के मानदंडों को अपना लिया। इसके पीछे सोची समझी साजिश है। जिसमें इस्लामीकरण करने के लिए हिमायलयन संस्कृति को नष्ट करना प्रमुख उद्देश्य है। इसके लिए पिछले सत्तर वर्षों में मुस्लिम ब्रदरहुड नामक षड्यंत्र सक्रिय है।

विश्व में इस्लामी विचारों को प्रसारित करने के तीन आधार स्तंभ हैं। एक सऊदी, दूसरा ईरान और तीसरा है मुस्लिम ब्रदरहुड। भारत में मुस्लिम ब्रदरहुड सक्रिय है जिसका उद्देश्य ही है कि भारत की संवैधानिक प्रक्रिया, प्रशासनिक प्रक्रियाओं में प्रवेश करें, उसे कानूनी रूप दें और इस्लामिक स्टेट के योग्य बना दें। इसके अंतर्गत ही संविधान में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए जैसे विशेषाधिकारों को स्वीकार्य करवाया गया और मुस्लिम धर्म पर आधारित एक राज्य बनाया गया जिसमें वहां का हिंदू दोय्यम दर्जे का नागरिक बन गया।

ये भी पढ़ें – पश्चिम बंगाल: हिंसा पर प्रधानमंत्री भी हुए सख्त, जानें राज्यपाल से क्या बोले?

अनुच्छेद 370 समाप्त पर राह वही

भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35ए को समाप्त कर दिया है। लेकिन वस्तुस्थिति ये है कि वर्तमान में भी इस्लामिक स्टेट के अनुकूल नियम कानून अब भी पिछले दरवाजे से लागू हैं। इसके कई उदाहरण भी हैं।

  • हिंदुओं के नरसंहार को नहीं मिली मान्यता
    1990 में कश्मीर घाटी में हिंदुओं का नरसंहार हुआ। इस पर हिंदुओं की हमेशा से मांग रही है कि इसे भारत सरकार नरसंहार घोषित कर दे। यदि ऐसा होता तो संयुक्त राष्ट्र संघ के कानूनों के अंतर्गत हिंदूओं को वह सुरक्षा और संरक्षण प्राप्त हो जाता जिसे प्रदान करने के लिए भारत ने भी हस्ताक्षर किया है। वर्ष 1990 से 2000 के मध्य जम्मू संभाग में भी हिंदुओं का नरसंहार हुआ। इसे लेकर हमेशा मांग उठती रही कि इन हमलों को आधिकारिक रूप से नरसंहार मान लिया जाए, लेकिन भारत सरकार पर इस्लामीकरण के नीति निर्धारकों ने ऐसा दबाव बनाया कि वह हो नहीं पाया। भारत सरकार ने इन नरसंहारों को पलायन और स्थानांतरण बता दिया और जो आपराधी थे उन्हीं के हाथ सत्ता सौंप दी।
  • जम्मू को पॉवर विहीन करने का षड्यंत्र
    एक मुद्दा उठा कि जम्मू और कश्मीर में पॉवर शेयरिंग कैसे होगी। इस पर सरकार ने निर्णय किया कि इसके लिए जम्मू और कश्मीर का परिसीमन कराया जाए। लेकिन इसके लिए 2011 की जनगणना को बेस मानने की चर्चा शुरू हो गई। इस जनगणना में इस्लामिक स्टेट के एंजेंडे को चलाया गया था। भाजपा भी इस जनगणना को फर्जी मानती है। हमारी मांग थी कि इसके लिए ताजा जनगणना को बेस माना जाए। लेकिन स्थितियां अब भी वही हैं। भारतीय संविधान को माननेवालों को यह समझना होगा कि 1400 वर्षों से यह लड़ाई चल रही है। इसलिए क्या इस सत्ता को उनके हाथ वे सौंप देंगे जो इस्लामीकरण को मजबूत करेंगे और वो भी उनके हाथों से छीनकर जो हिंदू राष्ट्र के लिए लड़ रहे हैं।
  • जमीन की लूट
    जम्मू कश्मीर में एक कानून है रौशनी एक्ट (जम्मू और कश्मीर राज्य भूमि एक्ट) इसके अंतर्गत जम्मू कश्मीर की दस लाख कनाल भूमि पर कब्जा किया गया है। इसके अंतर्गत सरकारी जमीन, वन क्षेत्र, नदियों के पाट और हिंदुओं की जमीनों पर कब्जा करनेवालों को उस अतिक्रमण से न हटाते हुए उसका पैसा लेकर उनके नाम कर दिया जाए। इस भूमि पर कब्जा करनेवालों में 90 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम थे। इसके अंतर्गत उच्च न्यायालय से इस भूमि का सर्वेक्षण करके नाम घोषित करने और उसे कब्जा मुक्त कराने का आदेश भी न्यायालय से लिया गया। लेकिन 14 फरवरी 2018 को तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने उस पर कार्रवाई न करने के लिए एक लीगल इम्यूनिटी दे दी। जिसके अंतर्गत ऐसी किसी भूमि के अधिग्रहण या निर्माणों को तोड़ने के लिए एसएसपी सुरक्षा प्रदान नहीं करेंगे। वर्तमान में भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।

ये भी पढ़ें – नंदीग्रामः सुवेंदु ही जीत के अधिकारी! ममता को झटका

  • जम्मू में रोहिंग्या
    जम्मू के हिंदू बहुल क्षेत्रों, वन क्षेत्र व सरकारी भूखंडों पर रोहिंग्या को बसाया गया। यह बहुत ही सोच समझकर किया गया। इसमें उन्हें सहायता दी गई। शरणार्थी और उत्पीड़न के नाम पर उन्हें सुविधाएं दी गईं। आगे उनके बच्चियों के विवाह यहां के लोगों से कराए गए जिससे वे यहां के समाज में रच बस जाएं। इन लोगों को तवी नदी के पाटों पर बसाया गया था। जिस पर दायर याचिका में जो 668 लोगों की सूची न्यायालय में सौंपी गई, उसमें से 667 मुसलमान थे। इसमें अब भी कुछ भी नहीं बदला और न ही भूमि वापस ली गई।
  • बहुसंख्यक अब भी ले रहे अल्पसंख्यकों का लाभ
    2016 में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई कि जम्मू कश्मीर में मुसलमानों को अल्पसंख्यक न माना जाए। इसे न्यायालय ने मान्य कर लिया। इसके अंतर्गत न्यायालय ने आदेश भी दिया लेकिन जम्मू कश्मीर सरकार ने इसे लागू नहीं किया। परिस्थिति यह है कि वर्तमान प्रशासन भी सर्वोच्च न्यायालय के उस निर्णय को न मानते हुए अल्पसंख्यकों को दी जानेवाली लगभग 60 से 70 सरकारी योजनाओं का लाभ मुसलमानों को देना जारी रखे हुए है।
  • आज हम लड़ रहे, कल आपकी बारी
    स्वातंत्र्यवीर सावरकर कालापानी मुक्ति शताब्दी के अवसर पर चल रही व्याख्यानमाला की श्रृंखला में जम्मू के अधिवक्ता अंकुर शर्मा सम्मिलित हुए। वे हिंदू रक्षा के लिए राजनीतिक और सामाजिक पटल पर कार्य करनेवाले संगठन इक्कजुट्ट जम्मू के अध्यक्ष हैं। उन्होंने ‘जम्मू: अब हिंदू अस्तित्व की आर पार की लड़ाई’ के विषय पर अपने विचार और संघर्षों को वैश्विक पटल पर दूरदृष्टि के माध्यम से रखा। उन्होंने कहा कि जम्मू में हिंदू अपने अधिकारों, अत्याचारों और इतिहास की अनदेखी करने की साजिश के विरुद्ध लड़ रहा है। पाकिस्तान की लड़ाई मात्र जम्मू कश्मीर की लड़ाई नहीं है। बल्कि ये मुस्लिम ब्रदरहुड की हिमालयन सभ्यता और संस्कृति को समाप्त करने की साजिश है। जिस दिन वह इसमें सफल होगा उसी दिन वह देश के और अंदर प्रवेश करेगा। इसलिए आज इस लड़ाई में हमारे साथ पूरे भारतवर्ष के हिंदूओं को आने की आवश्यकता है। यह लड़ाई आज हमारी है कल आपकी की भी होगी।
Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.