Chhath Puja 2024: छठ महापर्व का आज समापन, उगते सूर्य को जल अर्पण के साथ शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुई पूजा

आस्था का महापर्व छठ पूजा आज उषा अर्घ्य के साथ संपन्न हो गया। इस बार छठ का महापर्व 5 नवंबर 2024 से शुरू हुआ था।

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चार दिनों तक चलने वाले आस्था के महापर्व छठ पूजा (Mahaparva Chhath Puja) का समापन शुक्रवार उगते सूर्य (Sun) को अर्घ्य (Arghya) देकर शांतिपूर्वक संपन्न हो गया। कोलकाता (Kolkata) सहित पश्चिम बंगाल (West Bengal) के हावड़ा, हुगली, उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिले के गंगा घाटों (Ganga Ghats) पर लाखों श्रद्धालु (Devotees) इस महा अनुष्ठान में शामिल हुए। घाटों पर छठ व्रतियों (Chhath Vratis) और उनके परिवारों की भारी भीड़ देखी गई, जो सूर्य उपासना के इस पर्व को पूरी श्रद्धा और सबूरी के साथ मना रहे थे।

सूर्य की आराधना में जुटे व्रतियों ने गुरुवार डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद आज उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया, जिससे इस महापर्व का समापन हुआ। व्रती महिलाएं शूप में फल, नारियल, और अन्य सामग्री सजा कर गंगा के पवित्र जल में खड़ी हुईं और अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए सूर्य देवता से आशीर्वाद मांगा। रंग-बिरंगी साड़ियों में सजी इन महिलाओं के सिर से नाक तक सिंदूर की लंबी रेखा उनकी श्रद्धा और सांस्कृतिक परंपरा की प्रतीक बनी रही।

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श्रद्धालुओं को कोई असुविधा नहीं होनी चाहिए
छठ महापर्व को सफलतापूर्वक संपन्न कराने के लिए स्थानीय प्रशासन ने घाटों पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे। पुलिस कर्मियों के साथ कोलकाता पुलिस की रिवर पेट्रोलिंग टीम भी नदी में गश्त कर रही थी ताकि किसी तरह की अप्रिय घटना न हो। नगर निगम ने घाटों पर साफ-सफाई, प्रकाश और माइकिंग की व्यवस्था की थी, जिससे श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।

छठ व्रतियों को शुभकामनाएं
गुरुवार की अपराह्न मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी गंगा घाट का दौरा किया था और छठ व्रतियों को शुभकामनाएं दीं। मुख्यमंत्री ने इस पर्व को शांतिपूर्ण तरीके से मनाने की कामना भी की। इस अवसर पर कोलकाता और शिल्पांचल के हिंदी भाषी क्षेत्रों को विशेष रूप से सजाया गया था। स्थानीय क्लब और समाज के लोग भी छठ व्रतियों की सुविधा के लिए समर्पित रहे।

आस्था का महापर्व
उल्लेखनीय है कि छठ महापर्व पूर्वी भारत, विशेषकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मुख्य रूप से मनाया जाता है। सूर्य और उषा को समर्पित इस पर्व में व्रतियों को 36 घंटे से अधिक उपवास करना होता है। इसे आस्था का महापर्व भी कहा जाता है क्योंकि व्रती महिलाएं बिना अन्न और जल ग्रहण किए परिवार की खुशहाली और समृद्धि की कामना करती हैं।

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