जानिये, ममता बनर्जी के बचपन से तीसरी बार सीएम बनने तक के संघर्ष की कहानी!

5 जनवरी 1955 को कोलकाता के एक बहुत ही सामान्य परिवार में जन्मीं ममता बनर्जी 2011 से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। इससे पहले वह देश की सबसे युवा सांसद और भरत सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रही हैं। उन्होंने शादी नहीं की है और अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और राजनीति को समर्पित कर दिया है।

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तृणमूल कांग्रेस पार्टी की प्रमुख ममता बनर्जी ने 5 मई 2021 को शपथ ग्रहण के साथ ही पश्चिम बंगाल में तीसरी बार मुख्यमंत्री की कमान संभाल ली है। 5 जनवरी 1955 को कोलकाता के एक बहुत ही सामान्य परिवार में जन्मीं ममता बनर्जी 2011 से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। इससे पहले वह देश की सबसे युवा सांसद और भरत सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रही हैं।

प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री
ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री हैं। उनकी पहचान देश के उन नेताओं में है, जो अपने फैसले और आक्रामक रवैये के लिए मशहूर रहे हैं। एक समय में कांग्रेस पार्टी में राजीव गांधी जैसे नेताओं की सहयोगी रहीं ममता बनर्जी अब बंगाल की सुपर सीएम के रुप में जानी जाती हैं।

1975 में बनीं प्रदेश महिला कांग्रेस की महासचिव
1975 में पश्चिम बंगाल में महिला कांग्रेस की महासचिव बनकर राजनीति में पदार्पण करने वाली ममता बनर्जी अब तृणमूल कांग्रेस पार्टी प्रमुख हैं। 1997 में कांग्रेस से अलग होने के बाद ममता ने इस पार्टी की स्थापना की थी। उसके बाद करीब 13 वर्ष की यात्रा के बाद उनकी पार्टी की 2011 में सरकार बनी और वे प्रदेश की पहली मुख्यमंत्री बनीं। बड़ी बात यह है कि इस पार्टी की प्रमुख ममता बनर्जी ने जिस सीपीएम को यहां सत्ता से बेदखल किया,वह पिछले 34 सालों से सत्ता में थी।

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बचपन और शिक्षा
5 जनवरी 1955 में कोलकाता में जन्मीं ममता बनर्जी ने यहां से अपनी प्रारंभिक पढ़ाई की है। मात्र 9 साल की उम्र में ममता बनर्जी के पिता प्रोमिलश्वर बनर्जी का निधन हो गया। इसके बाद ममता ने कोलकाता के जोगोमाया देवी कॉलेज से स्नातक की शिक्षा पूरी की। उसके बाद कलकता यूनिवर्सिटी से इस्लामिक हिस्ट्री में पोस्ट ग्रेज्यूशन किया। इसके आलावा उन्होंने जोगेश सी चौधरी लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री भी हासिल की।

केवल 15 साल की उम्र में कांग्रेस से जुड़ीं
70 के दशक में मात्र 15 साल की उम्र में कांग्रेस पार्टी से जुड़ने वाली ममता ने सबसे पहले एक पदाधिकारी के रुप में 1976 में अपना काम संभाला। इस दौरान वो 1975 में पश्चिम बंगाल में महिला कांग्रेस की महासचिव नियुक्त की गईं। इसके बाद 1978 में ममता  कलकत्ता दक्षिण की जिला कांग्रेस कमेटी की सचिव बनीं।

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1984 में पहली बार सांसद बनीं
1984 में ममता बनर्जी को पहली बार लोकसभा चुनाव का टिकट कांग्रेस की ओर से दिया गया। इस चुनाव मे वो दक्षिण कोलकाता की सांसद चुनी गईं। इसके बाद 1991 में वो दोबारा लोकसभा की सांसद बनीं। इस बार उन्हें केंद्र सरकार में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री बनाया गया।

1997 में बनाई अपनी पार्टी
1996 में ममता एक बार फिर सांसद चुनी गईं। लेकिन 1997 में उन्होंने कांग्रेस को छोड़कर अपनी पार्टी का गठन किया। पार्टी गठन के शुरुआती दिनों में ममता बनर्जी भाजपा के सबसे बड़े नेता रहे अटल बिहारी वाजपेयी की करीबी रहीं। इसके आलावा वो वाजपेयी सरकार में रेल मंत्री भी रहीं। 2002 में ममता ने रेलवे के नवीनीकरण की दिशा में बड़े फैसले लिए। इसके अलावा एक्सप्रेस ट्रेनों में सर्विसेज बढ़ाने से लेकर एईआरसीटीसी तक की स्थापना में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाईं।

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जबरन भूमि अधिग्रहण का उग्र विरोध 
संसद से राज्य की सत्ता तक का सफर करने की दिशा में ममता बनर्जी लगतार तब की वामपंथी सरकार का पश्चिम बंगाल में खुला विरोध करती रहीं। सीपीएम के नेतृत्व वाली इस सरकार के प्रमुख ज्योति बसु और फिर बड़े वामपंथी नेता बुद्धदेव भट्टाचार्या थे। उन्होंने 2005 में भट्टाचार्य सरकार के जबरन भूमि अधिग्रहण के निर्णय का विरोध शुरू किया।

सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन में मिला भाजपा का साथ
इसके बाद सिंगूर और नंदीग्राम में ममता बनर्जी ने सरकार की नीतियों के खिलाफ जमकर आंदोलन किया। इस आंदोलन का भारतीय जनता पार्टी ने परोक्ष रुप से उनका समर्थन किया।

वामपंथी सरकार को उखााड़ फेंका
भूमि अधिग्रहण कानून के विरोध का प्रभाव और व्यापक जन समर्थन को देखते हुए ममता ने एक प्रमुख राजनैतिक दल के रुप में पश्चिम बंगाल के 2011 के विधानसभा चुनाव में सक्रिय भूमिका निभाते हुए अपनी पार्टी को चुनाव में उतारा। गठन के 13 साल बाद टीमसी ने पहली बार 34 वर्षीय सत्ता वाली वामपंथी सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया।

2011 और 2016 में मिली बड़ी जीत
2011 के चुनाव में ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल की 184 सीटों पर जीत मिली थी। इसके बाद 2016 में ममता पहले से अधिक 2011 सीटों पर जीत दर्ज कर दूसरी बार मुख्यमंत्री बनीं।

मोदी लहर में भी टिकी रहीं दीदी
ममता बनर्जी इन चुनावों के बाद देश के एक प्रमुख राजनीतिक दल की मुखिया के रुप में स्थापित हो गईं। 2014 में जब देश में प्रचंड मोदी लहर थीं, तब भी भाजापा को पश्चिम बंगाल में ममता ने कड़ी चुनौती दी और बंगाल की 42 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल हुईं। इस चुनाव में कांग्रेस जैसे बड़े दल को 44 सीटों पर जीत प्राप्त हुई थीं।

2019 में बनी सबसे बड़ी पार्टी
2019 के आम चुनाव में भी ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी 42 सीटों पर जीत हासिल कर पश्चिम बंगाल की सबसे बड़ी पार्टी के रुप में स्थापित हो गई। भाजपा को इस चुनाव में 18 सीटों पर जीत प्राप्त हुई। ममता बनर्जी भले ही कभी एनडीए की सहयोगी रही थीं, लेकिन उन्होंने मोदी सरकार के हर बड़े फैसले का विरोध किया। सीएए, एनआरसी, जीएसटी, नोटबंदी और किसान आंदोलन तक ममता ने मोदी सरकार के निर्णयों का खुलकर विरोध किया।

तीसरी बार बनीं मुख्यमंत्री
2021 के विधानसभा चुनाव में वे भाजपा द्वारा एड़ी चोटी एक करने के बावजूद पहले से ज्यादा सीटों (2013) पर जीत हासिल कर तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं हैं। भाजपा लाख कोशिशों के बावजूद 100 के आंकड़े को पार नहीं कर पाई और 77 सीटों पर सिमट गई। लेकिन एक बात तय है कि ममता बनर्जी के लिए आगे की राह आसान नहीं होगा। उसे भाजापा जैसे मजबूत पार्टी विपक्ष के रुप में मिली है।

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