Maharashtra: अजित पवार ने बिगाड़ा शिंदे का गणित, महायुति में नहीं सबकुछ ठीक!

राजनीतिक जानकारों के अनुसार, चुनाव नतीजे घोषित होते ही महायुति में अजित पवार की ताकत बढ़ गई है, वहीं महायुति में एकनाथ शिंदे की सौदेबाजी की ताकत कम हो गई है।

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महाराष्ट्र (Maharashtra) का मुख्यमंत्री (Chief Minister) कौन होगा? ये अब लगभग तय है। अब नई सरकार में मुख्यमंत्री और दो उपमुख्यमंत्री का फॉर्मूला है। अगर मुख्यमंत्री भाजपा (BJP) का होगा तो उपमुख्यमंत्री (Deputy Chief Minister) कौन होगा, इस पर भी चर्चा चल रही है। इसमें कोई शक नहीं कि अजित पवार उपमुख्यमंत्री होंगे। लेकिन मुख्यमंत्री रह चुके एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) उपमुख्यमंत्री बनेंगे या नहीं यह फिलहाल राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय है।

राजनीतिक जानकारों के अनुसार, चुनाव नतीजे घोषित होते ही महायुति में अजित पवार (Ajit Pawar) की ताकत बढ़ गई है, वहीं महायुति में एकनाथ शिंदे की सौदेबाजी की ताकत कम हो गई है। नतीजों के बाद अजित पवार की देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) से नजदीकियां बढ़ती दिख रही हैं। इसलिए ऐसा लगता है कि एकनाथ शिंदे का शक्ति संतुलन का गणित टूट गया है।

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भाजपा के सामने पवार सरेंडर
महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा विधायक भाजपा के चुने गए हैं। इसलिए मुख्यमंत्री कौन होगा इसका फैसला भाजपा के वरिष्ठ नेता लेंगे। एनसीपी प्रमुख अजित पवार ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि हम उनके फैसले का समर्थन करेंगे। ऐसा नहीं लगा कि उन्होंने इस संबंध में मीडिया के सामने कोई शर्त रखी हो। वहीं अजित पवार ने भी भाजपा के साथ जाने को लेकर पूरी तरह से सकारात्मक रुख अपनाया। लेकिन इसके उलट मीडिया में सूत्रों के हवाले से खबरें चलीं कि एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने कुछ शर्तें लगाई हैं। नतीजे आने के दूसरे दिन से ही मीडिया में खबरें चला दी गईं कि एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए उनकी पार्टी और उनके परिवार के लोग अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा कर रहे हैं।

दबाव तकनीक का हिस्सा
दिल्ली में अमित शाह से मुलाकात के बाद एकनाथ शिंदे ने कहा था कि मुंबई लौटने के बाद वह शुक्रवार को महागठबंधन नेताओं की बैठक करेंगे। इसके बावजूद शिंदे महायुति की बैठक से बचते हुए अपने पैतृक गांव के लिए रवाना हो गए। यह भी एक दबाव तकनीक का हिस्सा है। लेकिन अजित पवार की पार्टी एनसीपी का भाजपा को दिया गया समर्थन शिंदे के लिए परेशानी का सबब बन गया है। राजनीतिक जानकारों का मानना ​​है कि इससे उनकी सौदेबाजी की ताकत भी कम हो गई है। आने वाला वक्त ही बता सकता है कि भाजपा पार्टी के नेता शिंदे की इस दबाव तकनीक को कितना महत्व देते हैं।

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