Yoga: ध्यान करे कल्याण, अंधविश्वास नहीं विज्ञान!

हमारी आंखों से एकत्रित सूचनाओं की बाहर की दुनिया से मिलने वाली सम्पूर्ण सूचनाओं के करीब दो तिहाई भाग की हिस्सेदारी होती है।

38

-गिरीश्वर मिश्र

Yoga: ध्यान किसी तरह का धार्मिक उपक्रम (religious activities) नहीं है। यह बाहर से हट कर अंदर के अनुभवों को सम्बोधित करने वाला वैचारिक (रिफलेक्टिव) प्रयास है। एकाग्रता तथा अवगत या सचेत होना ही इसका मुख्य आधार है जो वर्तमान में बने रहने और मन की शांति को रेखांकित करता है। दरअसल आंख, कान, नाक, त्वचा आदि हमारे सभी संग्राहक बाहर की दुनिया से लगातार उद्दीपक लाते रहते हैं और उस सारी सामग्री की हमारे मन को व्याख्या करनी पड़ती है।

हमारी आंखों से एकत्रित सूचनाओं की बाहर की दुनिया से मिलने वाली सम्पूर्ण सूचनाओं के करीब दो तिहाई भाग की हिस्सेदारी होती है। ये सारी सूचनाएं हमारे चेतन मन पर असर डालती हैं। तनाव के क्षणों में मन अंदर और बाहर से पैदा होने वाले विचारों से जूझता है। ये विचार ध्यान पाने के लिए आपस में प्रतिद्वांदिता करते हैं और एक-दूसरे से टकराते भी हैं।

यह भी पढ़ें- MahaKumbh 2025 : Sah’AI’yak की यारी से महाकुंभ 2025 की तैयारी!

संतुलन साधने की प्रक्रिया
सूचनाओं की बढ़ती मात्रा से सूचना का अतिभार पैदा होता है। तब अवधान की एकाग्रता घटने लगती है। एक साथ भारी संख्या में आते विचारों की अव्यवस्थित भीड़ का तनाव के अनुभव से बड़ा गहरा रिश्ता है। कहते हैं ध्यान का कार्य एक ब्लैकबोर्ड पर चाक से की गई सारी लिखावट को डस्टर से साफ करने जैसा होता है। ध्यान मानसिक कोलाहल हटा कर संतुलन लाने का काम करता है। सूचना और संचार की शब्दावली में कहें तो ध्यान करने से हमारी चेतना की बैंडविड़्थ बढ़ जाती है।

यह भी पढ़ें- CDSL Share Price: CDSL शेयर की कीमत का अब तक का इतिहास, जानें खरीदें या बेचें

आंतरिक ध्यानाकर्षण
ध्यान कई प्रकार का होता है। इसे सिर्फ विचार या कल्पना मान लेना ठीक न होगा। ध्यान के अंतर्गत आदमी सजग और सचेत होकर अपने भीतर की ओर गहन स्तर पर केंद्रित होता है। इसे आंतरिक ध्यानाकर्षण भी कह सकते हैं। ध्यान को मुख्यतः दो भागों में रखा जाता है। एकाग्र ध्यान तथा सचेत ध्यान इसके दो मुख्य प्रकार पहचाने गए हैं। एकाग्र ध्यान करने में किसी एक विचार पर अवधान (अटेंशन) को केंद्रित किया जाता है। इसके अंतर्गत किसी मंत्र, शब्द या ध्वनि पर अवधान केंद्रित करना सम्मिलित है। एकाग्र होने से मन भटकता नहीं है। ध्यान के फलस्वरूप होने वाले मुख्य अनुभवों में आंतरिक एकाग्रता, प्रशांति और सहज भाव मुख्य होते हैं।

यह भी पढ़ें- Jivdhan Fort: इतिहास, प्रकृति और रोमांच का अद्भुत संगम

वर्तमान का संपूर्ण अनुभव
ध्यान में वर्तमान का सम्पूर्ण अनुभव होता है। भावातीत ध्यान भी इसी तरह का है जो पश्चिम में बड़ा लोकप्रिय हुआ। सचेत ध्यान (माइंडफ़ुलनेस मेडिटेशन) में सभी आ रहे विचारों को स्वीकार किया जाता है और उनको नियंत्रित करने की कोई कोशिश नहीं की जाती है। बिना किसी निर्णय या भावनात्मक लगाव के उनको अनुभव किया जाता है। जेन ध्यान, विपश्यना, प्रेक्षा ध्यान, सहज ध्यान आदि कई प्रकार के ध्यान की परम्पराओं का विकास हुआ है।

यह भी पढ़ें- Uttar Pradesh: तीसरे दिन भी सर्वे में जुटी ASI की टीम, जानिए संभल में अब तक क्या-क्या हुआ

अनेक परिवर्तन आने के अनुभव
वस्तुतः ध्यान से हमारी चेतना की दशा में बदलाव आता है। विस्तार में कहें तो देश और काल के अनुभव, वर्तमान की उन्मुखता, ग्रहणशीलता में वृद्धि और स्वयं को अतिक्रांत करने की वृत्ति जैसे बदलाव प्रमुखता से पाए गए हैं। कई अध्ययनों से पता चलता है कि ध्यान लगाने से जैविक शारीरिक स्तर पर अनेक परिवर्तन आते हैं। इनमें आक्सीजन की खपत में कमी, हृदय गति का धीमा होना तथा रक्तचाप कम प्रमुख हैं। ध्यान करने से मस्तिष्क में अल्फ़ा तरंगें अधिक होती हैं।

यह भी पढ़ें- Maharashtra: खाता आवंटन के तुरंत बाद Deputy CM Ajit Pawar का बड़ा फैसला, इस दिन पेश होगा बजट!

स्थिर बैठने का अभ्यास अनिवार्य
ध्यान के लिए जरूरी है कि शांत स्थान पर आराम से स्थिर बैठने का अभ्यास किया जाए। तब श्वांस को सहज बना कर साक्षी भाव अपनाते हुए मन में आ-जा रहे विचारों की गुणवत्ता का परीक्षण किया जाता है। स्वीकार करने की मनोवृत्ति के साथ केंद्रित और अविचलित बने रहना ध्यान की बड़ी उपलब्धि होती है। कहते हैं कि ध्यान एक मानसिक झाड़ू जैसा होता है, जो मन के सभी कोनों में सफाई कर देता है। ध्यान मन की स्थिति है, जिसके लिए एकाग्रता का अभ्यास जरूरी होता है।

यह भी पढ़ें- Germany: क्रिसमस बाजार में हुए हमले में 7 भारतीय घायल, दूतावास नागरिकों के संपर्क में

हमारी चेतना का अंतरण
वस्तुतः ध्यान हमारी चेतना का अंतरण है। यह एक व्यवस्थित और पद्धतिबद्ध प्रक्रिया है। अभ्यास के साथ शरीर, स्वांस, इंद्रियाँ और मन इन सभी पर हम क्रमश: केंद्रित होते चलते हैं। आमतौर पर योगासन, स्ट्रेचिंग, आराम (रिलैक़्सेशन), श्वांसन अभ्यास के बाद ज्ञान मुद्रा के साथ सुखासन या पद्मासन में बैठ ध्यान किया जाता है। ऐसे में अहं को चेतना के केंद्र की ओर ले जाना सम्भव हो पाता है। शांति, आनंद, स्वतंत्रता ही हमारी मूल प्रकृति है। जीवन और मृत्यु, आगमन-प्रस्थान सरीखे होते हैं। आंतरिक विकास तथा आत्मा और स्व के प्रति जागरूकता ध्यान की श्रेष्ठ उपलब्धि है।

यह भी पढ़ें- MahaKumbh 2025 : Sah’AI’yak की यारी से महाकुंभ 2025 की तैयारी!

मानसिक शांति की अवस्था में वृद्धि
ध्यान के सतत अभ्यास से तनाव का प्रतिरोध संभव होता है और मानसिक शांति की अवस्था में वृद्धि होती है। ध्यान से आनंद में वृद्धि तथा अनुभव में संतुष्टि, स्पष्टता और सजगता आती है। तब शरीर विश्रांत, मन केंद्रित और स्वास्थ्य अच्छा होता है। ध्यान का उपचारात्मक प्रभाव पड़ता है और अभ्यास करने वाला व्यक्ति आत्मनिर्भर और आंतरिक बल से सम्पन्न होता है।

यह भी पढ़ें- Uttar Pradesh: तीसरे दिन भी सर्वे में जुटी ASI की टीम, जानिए संभल में अब तक क्या-क्या हुआ

सभी के लिए लाभकारी
ध्यान का अभ्यास करने के दौरान कई तरह की बाधाएं आती हैं। ध्यान करने वाले को साक्षी भाव अपनाते हुए इन बाधाओं की उपेक्षा करनी चाहिए। चूंकि मन बड़ा चंचल होता है, ध्यान को लेकर अक्सर प्रतिरोध भी अनुभव किया जाता है जो निरंतर अभ्यास से नियंत्रित होता है। धीरे-धीरे ध्यान की अवधि और गहनता बढ़ाई जाती है। इसी जटिलता के कारण गुरु की आवश्यकता पड़ती है। ध्यान समूहों और अन्य साधक जनों से सहायता ली जानी चाहिए। मन में स्वीकार की भावना के साथ अभ्यास लाभप्रद होता है। आधुनिक जीवन शैली जिस तरह सूचनाओं के प्रवाह से आक्रांत हो रही है उसमें हमारा अवधान न केवल खंडित हो रहा बल्कि उसकी अवधि संक्षिप्त और गहनता घट रही है। ऐसे में ध्यान का अभ्यास विद्यार्थियों, व्यवासाय में लगे लोगों सबके लिए महत्वपूर्ण होता जा रहा है। इसकी सहायता से हम जीवन की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं और देश व समाज को योगदान कर सकेंगे।

यह भी पढ़ें- Germany: क्रिसमस बाजार में हुए हमले में 7 भारतीय घायल, दूतावास नागरिकों के संपर्क में

उचित परिवेश जरूरी
जब हमारा मस्तिष्क विचारों के भार से मुक्त या कहें स्वच्छ रहता है तो नए विचारों की स्वीकार्यता बढ़ जाती है। तब नए दृष्टिकोण आते हैं, नई उद्भावनाएं आती हैं और अनसुलझी समस्याओं को सुलझाने के लिए सूझ भी मिलती है। सीखने के लिए उचित परिवेश जरूरी है और ध्यान हमें एकाग्र करके इसे संभव बनाता है। वह हमें आत्मचेतस बनाता है और हम अपने स्व से अवगत होते हैं। यह दुर्भाग्य है कि आज की शिक्षा में आमतौर पर बाहर की दुनिया को देखना तो सिखाया जाता है परंतु अंदर झांकना नहीं हो पाता है। शिक्षित होकर भी हमारे भीतर क्या है, इससे हम अनजान बने रहते हैं। भीतरी आयामों तक जाने की विधा सामान्य रूप से अध्ययन का विषय नहीं है। इस कमी को दूर करने के लिए ध्यान को शिक्षा का अंग बनाना आवश्यक है।

यह वीडियो भी देखें-

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.