फ्रांस में कट्टरपंथियों के खिलाफ सेना और लोगों में क्यों बढ़ रहा है आक्रोश? जानने के लिए पढें ये खबर

फ्रांस इस्लामिक कट्टरवाद और आतंकवाद के खिलाफ सबसे बड़ी लड़ाई का चेहरा बन गया है। यहां के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रो दुनिया के कई देशों में विरोध प्रदर्शन और देश पर हो रहे आतंकवादी हमलों के बावजूद झुकने को तैयार नहीं हैं।

133

फ्रांस में गृह युद्ध की आशंका बढ़ती जा रही है। कट्टरपंथी मुसलमानों को लेकर सेना के साथ ही देश की जनता में भी आक्रोश इस हद तक बढ़ गया है कि जहां सेना के जवान गृह युद्ध की चेतावनी दे रहे हैं, वहीं बहुसंख्यक लोगों का भी उनको समर्थन मिल रहा है।

हाल ही में वहां के एक दक्षिणपंथी पत्रिका में प्रकाशित एक पत्र इन दिनों सुर्खियों में है। इस पर 1 लाख 30 हजार लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं। पत्र में चेतावनी दी गई है कि देश में गृह युद्ध का खतरा बढ़ रहा है।

कट्टरपंथी मुसलमानों को रियायत देने का आरोप
पत्र में फ्रांस सरकार पर कट्टरपंथी मुसलमानों को रियायत देने का आरोप लगाया गया है। पत्र में लिखा गया है कि यह हमारे देश के अस्तित्व के लिए है। इसके साथ ही कहा गया है कि यह पत्र उन अनाम जवानों के लिए लिखा गया है, जिन्होंने जन समर्थन मांगा है। हालांकि फ्रांस सरकार ने इस पत्र पर आपत्ति जताते हुए इसकी कड़ी निंदा की है।

गृह मंत्री ने की नींदा
फ्रांस के गृह मंत्री गोराल्ड डार्मानिन ने पत्र को लेकर बयान दिया है। उन्होंने इसे पैंतरेबाजी बताते हुए इसकी नींदा की है। उन्होंने  इस पर हस्ताक्षर करने वाले लोगों को कहा है कि उनमें साहस की कमी है। दूसरी ओर फ्रांसीसी सशस्त्र बल के प्रभारी मंत्री फ्लोरेंस पार्ले ने कहा है कि सेना को तटस्थ और वफादार होना चाहिए।

ये भी पढ़ेंः जानिये, दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म यूट्यूब को एक युवक ने कैसे लगाया 23 लाख का चूना!

बनाया गया है कड़ा कानून
15 अप्रैल को फ्रांस की सीनेट ने कट्टरपंथी इस्लाम पर रोक लगाने के लिए लाए गए बिल यानी विधेयक को मंजूरी दे दी है। फ्रांस सरकार का कहना है कि इसका उद्देश्य फ्रांस को इस्लामिक कट्टरपंथ से बचाना है। फ्रांस की सीनेट यानी संसद में इस विधेयक के पक्ष में 208 वोट डाले गए, जबकि खिलाफ में मात्र 109 वोट पड़े। इस बिल को पास करने के समय काफी हंगामा भी हुआ, लेकिन आखिर में बिल को मंजूरी मिल गई और इसी के साथ कट्टरपंथी मुसलमानों पर नकेल कसने के लिए यह कानून बन गया।

कानून बनाने का उद्देश्य
सरकार का कहना है कि यह कानून बनाने का उद्देश्य धार्मिक संगठनों की अभद्र भाषा और उसके कार्यों पर नकेल कसना है। यह कानून फ्रांसीसी गणतंत्र के मूल्यों की रक्षा करने के लिए बनाया गया है।

खास बातें

  • बिल में ऐसे सभी प्रावधान किए गए हैं, जिससे कट्टपंथियों पर लगाम कसा जा सके
  • स्कूल ट्रिप के दौरान बच्चों के माता-पिता पर धार्मिक पोशाक पहनने पर रोक
  • नाबालिग बच्चियों के चेहरे छिपाने या सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक प्रतीकों को धारण करने पर रोक
  • यूनिवर्सिटी परिसर में प्रार्थना करने पर पाबंदी
  • शादी समारोह में विदेशी झंडे लहराने पर पूरी तरह से रोक
  • सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का पहनने पर रोक

मुसलमानों ने किया विरोध

  • इस कानून के विरोध में फ्रांस में कई स्थानों पर प्रदर्शन किए गए
  • कानून को इस्लाम विरोधी बताया गया
  • मुसलमानों को अलग-थलग करने का आरोप लगाया गया

फरवरी में निचले सदन में पेश किया था बिल
इससे पहले इस्लामिक कट्टरपंथियों पर शिकंजा कसने के लिए फ्रांस के निचले सदन में यह बिल पेश किया गया था। 16 फरवरी को पेश किए गए इस बिल में मस्जिदों के साथ ही मदरसों पर भी सरकारी दखलंदाजी बढ़ने का प्रावधान किया गया था। इसके साथ ही कट्टरपंथियों पर लगाम लगाने के लिए बहु विवाह और जबरन शादी पर भी रोक लगाने का प्रावधान था।

इसलिए पड़ी कानून बनाने की जरुरत
पिछले दिनों फ्रांस ने देश में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व करने वाले 8 संगठनों से एक चार्टर पर हस्ताक्षर करने को कहा था। चार्टर में आतंकवाद और धार्मिक कट्टरपंथ को खत्म करने जैसे प्रावधान शामिल थे। लेकिन कानून नहीं होने के कारण तीन संगठनों ने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था, उसके बाद फ्रांसीसी सरकार ने यह कानून बनाया है।

इस्लामिक कट्टरवाद के खिलाफ फ्रांस सबसे बड़ा चेहरा
फ्रांस इस्लामिक कट्टरवाद और आतंकवाद के खिलाफ सबसे बड़ी लड़ाई का चेहरा बन चुका है। यहां के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रो दुनिया भर में विरोध प्रदर्शन और देश पर हो रहे आतंकवादी हमलों के बावजूद झुकने को तैयार नहीं हैं। मैक्रो ने स्पष्ट किया है कि इस्लामिक हमले के बावजूद फ्रांस अपने मूल्यों को नहीं छोड़ेगा।

यहां से बढ़ा टकराव
16 अक्टूबर 2020 को फ्रांस में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाते समय छात्रों को मोहम्मद साहब का कार्टून दिखाने पर शिक्षक की इस्लामी आतंकी ने गला काटकर हत्या कर दी थी। दावा किया जाता है कि हमले के समय उसने अल्लाहू-अकबर का नारा भी लगाया था। हमलावर आतंकी की उम्र मात्र 18 साल थी। इसके साथ ही चार्ली हेब्दो के ऑफिस के बाहर भी गोलीबारी की गई थी। पिछले साल फ्रांस में छोटे-बड़े 10 से ज्यादा आतंकी हमले हुए थे।

नीस में बड़ा आतंकी हमला
इस बीच पेरिस में टीचर की गला काटकर हत्या के बाद फ्रांस के नीस शहर में एक बार इस्लामिक आतंकी हमला हुआ था। हाथ में कुरान और चाकू लिए एक कट्टरपंथी ने पहले मजहबी नारे लगाए, उसके बाद उसने लोगों पर हमला कर दिया था। इस वारदात में तीन लोगों की जान चली गई थी। यह आरोपी सिंतबर 2020 में ट्यूनिया से आया था और उसकी उम्र मात्र 12 वर्ष थी।

फ्रांस के राष्ट्रपति ने ट्विट कर दी थी जानकारी
इस घटना के बाद फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रो ने कहा था, “सर और मैडम, एक बार फिर हमारा देश इस्लामी आतंकवाद का शिकार हुआ है। इस सुबह हमारे तीन नागरिकों की नीस में हत्या कर दी गई है।”

क्यों जल रहा है फ्रांस?
इस्लामिक आतंकवाद को लेकर दुनिया दो धड़ों में बंटती नजर आ रही है। 2019 के अक्टूबर में पेरिस में टीचर का सिर धड़ से अलग करने को लेकर जहां फ्रांस में इस्लामिक कट्टरवादियों पर कार्रवाई के खिलाफ मुस्लिम देशों में बड़े पैमाने प्रदर्शन हुए, वहीं इस्लामिक आतंकवाद के मुद्दे पर फ्रांस को भारत,अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसी बड़ी शक्तियों का समर्थन मिला। इस वजह से इस मुद्दे पर टकरवा बढ़ा और वो आगे भी जारी रहने की आशंका है।

महातिर मोहम्मद ने उगली थी आग
फ्रांस के खिलाफ मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री और कट्टर मुस्लिम नेता महातिर मोहम्मद ने इस पर आग उगली थी। उन्होंने अपना भड़ास निकालते हुए ट्विट किया था,” हालांकि धर्म से परे, गुस्साए लोग हत्या करते हैं। फ्रांस ने अपने इतिहास में लाखों लोगों की हत्या की है। उनमें से कई मुस्लिम थे। मुसलमानों को गुस्सा आने और इतिहा में किए गए नरसंहारों के लिए फ्रांस के लाखों लोगों की हत्या करने का हक है।”

ट्विटर ने कर दी थी डिलीट
ट्विटर ने महातिर के इस ट्वीट को नियमों का उल्लंघन बताते हुए डिलीट कर दिया था। इसके बाद महातिर ने फिर से ट्विट किया था, “अभी तक मुसलमानों ने आंख के बदले आंख निकालना शुरू नहीं किया है। मुस्लिम ऐसा नहीं करते हैं और फ्रांसीसियों को भी नहीं करना चाहिए। फ्रांसीसियों को अपनी तरह ही दूसरे लोगों की भावनाओं का भी सम्मान करना सिखना चाहिए।”

पाक ने इस्लामिक हिंसा को ठहराया था सही
पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान ने इस्लाम के नाम पर हो रही हिंसा को सही ठहराया था। उन्होंने कहा था, “मुसलमान देख रहे हैं कि उनके विश्वास और सबसे अजीज पैगंबर मोहम्मद साहब को निशाना बनाकर मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव किया ज रहा है और उनको प्रभावहीन बनाया जा रहा है तो उनकी ओर से क्रोध में ऐसे खतरनाक कदम उठाए जा रहे हैं।”

तुर्की के राष्ट्रपति ने किया था भड़काऊ ट्वीट
दरअस्ल तुर्की के राष्ट्रपति रजब अर्दोगान ने फ्रांस के खिलाफ दुनिया भर के मुसलमानों को भड़काने की शुरुआत की। उन्होंने कहा,”मैं अपने सभी नागरिकों और दुनिया भर के मुसलमानों से आह्वान कर रहा हूं। जैसे वे कहते हैं कि फ्रांस में तुर्की के ब्रांडों की खरीद मत करो। मैं यहां से अपने सभी नागरिकों से फ्रांसीसी ब्रांडों को नहीं खरीदने की अपील कर रहा हूं।”

भारत को फ्रांस का समर्थन
मुस्लिम कट्टरपंथ के मुद्दे पर भारत हमेशा से फ्रांस के समर्थन में रहा है। दोनों देशों के संबंध कोरोना काल में और मजबूत हुए हैं। उस समय भी इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ फ्रांस को भारत का साथ मिला था। पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्विट किया था, “मैं आज नीस में चर्च के भीतर हुए नृशंस हमले समेत फ्रांस मे हुए हालिया आतंकी हमलों की कड़ी निंदा करता हूं। पीड़ितों के परिजनों और फ्रांस के नागरिकों के साथ हमारी संवेदना। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत फ्रांस के साथ है।”

अमेरिका का भी समर्थन
अमेरिका के तत्कालीन प्रधानमंत्री डोनाल्ड ट्रंप ने भी इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। ट्रंप ने कहा था, “हमारा दिल फ्रांस के लोगों के साथ है। अमेरिका इस लड़ाई में अपने सबसे पुराने सहयोगी के साथ खड़ा है। इन कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवादी हमलों को तुरंत रोकना चाहिए।”

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.