-अंकित तिवारी
Delhi Assembly Polls: दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार ने राष्ट्रीय राजधानी में राजनीतिक माहौल को और गरमा दिया है। 5 फरवरी को मतदान और 8 फरवरी को परिणाम घोषित होने के साथ ही सभी राजनीतिक दल चुनावी जीत के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं। इस प्रक्रिया में, नैतिक मूल्यों को ताक पर रखते हुए, पार्टियां अल्पसंख्यक समुदाय से समर्थन पाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही हैं।
राजनीति में आपराधिक तत्वों का बढ़ता प्रभाव
एक प्रमुख उदाहरण ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) का है। यह पार्टी, जो अल्पसंख्यकों के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है, अक्सर हिंदू विरोधी और विभाजनकारी एजेंडे को बढ़ावा देती है। इसी सिलसिले में, पूर्व आम आदमी पार्टी (आप) पार्षद ताहिर हुसैन को, जो 2020 के दिल्ली दंगों में प्रमुख आरोपी हैं, उम्मीदवार के रूप में पेश किया गया।
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हत्या, दंगा और धनशोधन मामले में आरोपी
ताहिर हुसैन पर हिंसा भड़काने का आरोप है। उनकी संपत्ति का उपयोग दंगाइयों के लिए शरणस्थली और हथियारों, जैसे पेट्रोल बम, के भंडारण के लिए किया गया था। हत्या, दंगा और धनशोधन जैसे आरोपों का सामना कर रहे हुसैन को दिल्ली उच्च न्यायालय ने मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र से नामांकन दाखिल करने के लिए पैरोल दी।
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लोकतंत्र के लिए खतरनाक
यह स्थिति भारतीय लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है, लेकिन दुर्भाग्य से यह अपवाद नहीं बल्कि एक सामान्य प्रवृत्ति बन चुकी है। राजनीतिक दल, खासकर वे जो अल्पसंख्यक वोटों पर निर्भर करते हैं, चुनावी लाभ के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को टिकट देने से हिचकते नहीं।
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लोकतंत्र का गलत इस्तेमाल
लोकसभा चुनावों में ऐसी ही घटनाएं सामने आईं। खडूर साहिब सीट से अमृतपाल सिंह की जीत ने व्यापक चर्चा पैदा की। वह पंजाब को भारत से अलग करने और खालिस्तान आंदोलन का समर्थन करने के लिए जाने जाते हैं। उनकी पार्टी “वारिस पंजाब दे” के सदस्यों ने अजनाला पुलिस स्टेशन पर हमला किया और एक साथी को रिहा करवाया था।
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खाते में 40 करोड़ की संदिग्ध रकम
अमृतपाल सिंह के खातों में विदेशों से भेजी गई लगभग ₹40 करोड़ की संदिग्ध जमा राशि पाई गई। उनके करीबी सहयोगियों के पास खालिस्तानी झंडे, हथियार और अन्य आपत्तिजनक सबूत मिले। इसके बावजूद, उन्हें सांसद बनने की अनुमति दी गई और उन्होंने संविधान की शपथ ली, जिसे वह खुद कमजोर करना चाहते हैं।
राजनीति और अपराध का गठजोड़
जम्मू – कश्मीर से अब्दुल राशिद शेख (इंजीनियर राशिद) का उदाहरण भी गौर करने लायक है। वह आतंक वित्तपोषण के आरोपों में तिहाड़ जेल में बंद हैं। बावजूद इसके, उन्होंने बारामुला सीट से चुनाव जीत लिया। उन्होंने जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी संगठनों के साथ गठजोड़ किया और खुले तौर पर भारत विरोधी बयान दिए।
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राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा
इस प्रकार के व्यक्तियों का लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेना कानून-व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है।
कानून की मौजूदा स्थिति
भारतीय संविधान और कानून मतदान और चुनाव लड़ने के अधिकार को नियंत्रित करते हैं। 1951 के जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RP Act) की धारा 8 के तहत, कुछ अपराधों में दोषी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जाता है। हालांकि, यह अयोग्यता उनकी सजा के दौरान और रिहाई के छह साल बाद तक लागू रहती है।
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सजा को चुनौती, चुनाव लड़ने की अनुमति
हालांकि, इस प्रावधान के बावजूद, दोषी व्यक्ति अदालत में सजा को चुनौती देकर चुनाव लड़ने की अनुमति प्राप्त कर सकते हैं। इसका उदाहरण 2020 में बहुजन समाज पार्टी के पूर्व सांसद धनंजय सिंह का मामला है, जिन्हें अपहरण के आरोप में दोषी ठहराया गया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनके सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि “राजनीति में शुद्धता समय की मांग है।”
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मतदान पर प्रतिबंध
इसके अलावा, आरपी अधिनियम की धारा 62(5) के तहत, जेल में बंद व्यक्ति चुनावों में मतदान नहीं कर सकते। हालांकि, यह प्रतिबंध केवल सजा काट रहे व्यक्तियों पर लागू होता है, न कि आरोपित और जमानत पर रिहा व्यक्तियों पर। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2023 में सभी उच्च न्यायालयों को सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए दिशा-निर्देश जारी करने का निर्देश दिया। हालांकि, अप्रैल 2024 तक, 4,472 ऐसे मामले लंबित थे।
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राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा
अलगाववादियों और अपराधियों का राजनीति में प्रवेश राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक सामंजस्य को कमजोर करता है। वे संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग कर अपने आपराधिक एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं। “बाहुबली” संस्कृति और इसके राजनीति पर प्रभाव इसका जीता-जागता उदाहरण है। अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे गैंगस्टरों ने सत्ता का दुरुपयोग कर अपने आपराधिक साम्राज्य को मजबूत किया।
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अलगाववादी तत्वों की भागीदारी
भारतीय लोकतंत्र में आपराधिक और अलगाववादी तत्वों की भागीदारी कानून व्यवस्था ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता के लिए भी गंभीर खतरा है। यह समय की मांग है कि इस समस्या का समाधान करने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं और राजनीति को शुद्ध किया जाए।
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