वरिष्ठ लेखक और बॉम्बे उच्च न्यायालय (Bombay High Court) के सेवानिवृत्त न्यायाधीश नरेंद्र चपलगांवकर (Retired Judge Narendra Chapalgaonkar) का शनिवार (25 जनवरी) सुबह 88 वर्ष की आयु में निधन (Demise) हो गया। वह पिछले कुछ दिनों से बीमार थे। उन्होंने छत्रपति संभाजीनगर के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। मराठी साहित्य जगत (Marathi Literary World) और न्यायपालिका (Judiciary) की एक महान हस्ती का निधन हो गया है। उनके परिवार में पत्नी, बेटा, तीन विवाहित बेटियां, दामाद और पोते-पोतियां हैं।
हैदराबाद राज्य के मराठवाड़ा समेत देश के राजनीतिक हालात को समझने वाले और इस क्षेत्र के इतिहास, सामाजिक और राजनीतिक यथार्थ को अपने लेखन के माध्यम से प्रस्तुत करने वाले चपलगांवकर पिछले कुछ महीनों से कैंसर से जूझ रहे थे।
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कौन थे नरेंद्र चपलगांवकर?
बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने से पहले, वह 1961 से 1962 तक दयानंद विज्ञान महाविद्यालय, लातूर के मराठी विभाग के पहले प्रमुख थे। उन्होंने वर्धा में आयोजित 96वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता भी की। नरेंद्र चपलगांवकर ने मराठवाड़ा की सामाजिक वास्तविकता को शेष महाराष्ट्र तक पहुंचाने में प्रमुख भूमिका निभाई। न्यायाधीश नरेंद्र चपलगांवकर का पैतृक गांव सोलापुर जिले का चपलगांव है, लेकिन वे मूलतः बीड के हैं, क्योंकि उनके परिवार की पिछली कुछ पीढ़ियां बीड में ही रहीं। उन्होंने केसरी, सकाळ, मराठवाड़ा और लोकसत्ता जैसे बीड के कई समाचार पत्रों के लिए लिखा है। 16 वर्षों तक वकालत करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक मुंबई में वकालत की। जब औरंगाबाद में बॉम्बे उच्च न्यायालय की पीठ स्थापित हुई, तो उन्हें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में काम करने का अवसर मिला।
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