Maha Kumbh 2025: सनातन पर प्रहार, आस्था से खिलवाड़

भारत अपनी सनातन संस्कृति के लिए विश्व भर में जाना जाता है। यह कुंभ आत्मा के शुद्धिकरण और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति का माध्यम है।

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-प्रो. मनीषा शर्मा

Maha Kumbh 2025: कुंभ (Kumbh) भारत (India) की सनातन संस्कृति (Sanatan Culture) की अद्वितीय शक्ति, आध्यात्मिकता, सहिष्णुता और एकता का प्रतीक है । यह आत्मा की शुद्धता और सामाजिक समरसता का प्रतीक है।

भारत अपनी सनातन संस्कृति के लिए विश्व भर में जाना जाता है। यह कुंभ आत्मा के शुद्धिकरण और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति का माध्यम है। कुंभ सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है बल्कि यह भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है।

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अनेकता में एकता के दर्शन
कुंभ मेला ‘ वसुधैव कुटुंबकम’ की उस अवधारणा को चरितार्थ करता है, जिसमें संपूर्ण विश्व को स्वयं में समाहित करने की शक्ति है । देश दुनिया से अनेक लोग अपने-अपने आस्था- विश्वास की डोर को हाथों में थाम कर, अपने रीति- रिवाज, संस्कार, आचार- व्यवहार को अपने साथ लेकर भारत भूमि पर आए हैं और यहां का दृश्य देख वे आश्चर्य और विस्मय से भर गए हैं । वे देख रहे हैं कि भारत की सनातन संस्कृति किस तरह से अपनी बांहे खोल उनका स्वागत कर रही है। वे देख रहे है, यहां की सामाजिक समरसता को जहां लिंग, जाति, धर्म, पंथ, संप्रदाय ,मत, अमीर-गरीब, पूरब – पश्चिम के भेद का कोई अर्थ नहीं है। यहां अनेक को एकाकार होते हुए देखा जा सकता है।

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आध्यात्मिकता की जीवंत अभिव्यक्ति
तीर्थराज प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ हमारी सनातन संस्कृति की आस्था और आध्यात्मिकता की जीवंत अभिव्यक्ति है परंतु ऐसे समय में भी हमारे देश का विपक्ष राजनीति करने से,सनातन की मान्यताओं का मखौल उड़ाने से बाज नहीं आ रहा है। कुंभ में भाजपा नेताओं के स्नान को डुबकी कह कर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बता दिया है कि उन्हें सनातन धर्म की, उसकी परंपराओं की कितनी गहरी समझ है। वरना वे करोड़ों लोगों की आस्था को अपने शब्दों से आहत नहीं करते।

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खड़गे ने पहुंचाई भावनाओं को ठेस
उन्होंने कहा कि इस महाकुंभ में हजारों रुपये खर्च कर के कंपटीशन में भाजपा नेता डुबकी लगा रहे हैं और तब तक डुबकी लगाते हैं, जब तक टीवी में अच्छा नहीं आ जाता। उनका मानना है कि धर्म के नाम पर गरीबों का शोषण हो रहा है। उन्होंने कहा कि क्या गंगा में डुबकी लगाने से गरीबी दूर हो सकती है ? क्या इससे पेट भरता है? उनका यह बयान उस दिन आया जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने महाकुंभ में संगम पर पवित्र स्नान किया।

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धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सनातन पर प्रहार
वस्‍तुत: ऐसे ही बयान कांग्रेस और उसके नेताओं ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के समय दिये थे कि राम मंदिर बनने से क्या हो जाएगा? क्या लोगों को रोजगार मिल जाएगा, मंदिर की जगह अस्पताल की देश को जरूरत है आदि? आज उन्होंने गंगा स्नान पर इस तरह का बयान दिया है। बात सिर्फ महाकुंभ या राम मंदिर की नहीं है। हमेशा से विपक्ष और विपक्ष के नेताओं ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सनातन की आस्था पर प्रहार करने का एक भी मौका नहीं छोड़ा है। ये लोग बताए कि क्या महाकुंभ में आने वाला हर एक व्यक्ति बीजेपी का है। हजारों वर्षों की कुंभ की परंपरा क्या बीजेपी ने शुरू की थी? क्या ये कह सकते है कि हज यात्रा करने से क्या हो जाएगा?

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रीति रिवाज को बताते हैं अंधविश्वास
जब बात दूसरे धर्म की धार्मिक मान्यताओं की, परंपराओं की होती है तब यह लोग कुछ नहीं कहते परन्तु जब बात सनातन की होती है तो इनके सामने देश की हर समस्या आ जाती है। इन्हें सनातन संस्कृति की हर एक मान्यता, हर एक प्रथा , प्रत्येक रीति रिवाज अंधविश्वास लगता है। ये अपने बयानों में उसका मजाक उड़ाते हैं। पिछले 15 दिनो में महाकुंभ में 14 करोड़ लोगों ने पवित्र स्ना न किया है। क्या ये सभी 14 करोड़ लोग भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता हैं या योगी ,मोदी सरकार के लोग हैं। इसी के साथ करीब 62 देशों के दो लाख के करीब विदेशी अनुयायियो ने महाकुंभ में स्नान किया जिनमें कई प्रसिद्ध लोग भी है। क्या वह भी बीजेपी के हो गए।

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दुनिया विस्मित
आज संपूर्ण दुनिया महाकुंभ के वैभव, सनातन की आस्था को देखकर विस्मित, नतमस्तक है ।लेकिन हमारे देश के हिंदू धर्म में ही पैदा हुए लोग महाकुंभ में पवित्र स्नान को डुबकी लगाना, अंधविश्वास कहते हैं। इन लोगों को ना देश की सांस्कृतिक विरासत का ज्ञान है, ना परंपरा की समझ है। लेकिन सवाल यही है कि हर बार सनातन पर ही प्रहार क्यों? क्यों हर बार सनातन की परंपरा, मूल्य, नायकों और संस्कृति को निशाना बनाकर प्रहार किया जाता है।

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कुंभ महज मेला भर नहीं
भारत को एक सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में सारा विश्व जानता है, राष्ट्र जिसकी एक संस्कृति, परंपरा, साहित्यिक अवधारणा आचार- विचार, व्यवहार होता है। इस संदर्भ में कुंभ महज एक मेला भर नहीं है। वह हजारों सालों से पोषित भारत की सनातन संस्कृति की वह परंपरा है जिसमें सनातन संस्कृति की आत्मा रची बसी है। अतः धर्मनिरपेक्षता का अर्थ किसी धर्म विशेष की आस्था पर प्रहार नहीं होता है। यह बात बड़े – बड़े बोल बोलने वाले और आस्था का अपमान करने वाले नेता जान लें तभी वे भी देश का और जनता का भला सोच पाएंगे।

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