कोविड-19 महामारी नहीं चीन का जैविक युद्ध! मेजर जनरल जीडी बख्शी ने दिये प्रमाण

स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक द्वारा आयोजित वीर सावरकर कालापानी मुक्ति शताब्दी यात्रा व्याख्यानमाला में मेजर जनरल (रि) जीडी बख्शी ने चीन और सार्स सीओवी-2 (नोवेल कोरोना) वायरस के बीच संंबंधों को लेकर कई अहम खुलासे किये। जो ये बताते हैं कि कैसे जैविक विश्वयुद्ध छेड़कर चीन अपने विकास की कहानी लिख रहा है।

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कोविड-19 कोई नैसर्गिक वायरस नहीं है बल्कि यह गेन ऑफ फंक्शन वायरस है। जिसे प्रयोगशाला में विकसित किया गया है। यह पूरे विश्व पर चीन का जैविक हमला है। यह खुलासा मेजर जनरल जीडी बख्शी ने किया। जो चीन के षड्यंत्रों पर था और इसे प्रमाणित करने के लिए कई प्रमाण भी पेश किये।

16 करोड़ लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। विश्व के देशों की अर्थव्यवस्था बैठ गई है। इसकी शुरुआत में जीव विज्ञानी भी कह रहे थे कि यह चमगादड़ों से उत्पन्न हुआ है। लेकिन सच्चाई ये नहीं है। इसके साक्ष्य इस प्रकार हैं

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  • ये गेन ऑफ फंक्शन वायरस हैं, जो प्रयोगशाला में जिसे विकसित किया गया है।
  • चीन की ऑफिशियल मिलट्री पुस्तक है ‘द साइंस ऑफ मिलिट्री स्ट्रेटेजी’। वर्ष 2017 में इस पुस्तक का नया संस्करण प्रकाशित किया गया। जिसमें एक नया पाठ जैविक युद्ध के विषय पर था। किस तरह हम वायरस को हथियार की तरह उपयोग कर सकते हैं इसमें यह दिया गया है।
  • 1999 में दो चाइनीज कर्नल कियाउ लियांग और वांग शियांगशी ने किताब लिखी ‘अनरिस्ट्रक्टेड वॉरफेयर’। इसमें उन्होंने कहा था कि यदि हमें अमेरिका से लड़ना पड़े तो सब उचित है। उसमें आतंकवाद, जैविक युद्ध, केमिकल युद्ध, रेडियोलॉजिकल युद्ध, साइकोलॉजिकल युद्ध सब योग्य है। इसमें मिलिट्री और नॉन मिलिट्री सबको सम्मिलित करना चाहिए, हमारा एक ही ध्येय है वो है जीत।
  • 2010 में एक किताब लिखी गई ‘वॉरफेयर पॉवर’ चीनी मिलिट्री विशेषज्ञ ने किताब लिखी। उसमे कहा गया कि जैविक हथियार का उपयोग बहुत अनिवार्य हो गया है।
  • 2015 में एक खतरनाक खुलासा किया गया जिसमें जेजे जांग नाम के एक पीएलए एयरफोर्स के वैज्ञानिक ने 18 अन्य पीएलए वैज्ञानिकों के साथ मिलकर पेपर्स लिके। इसमें उनके पेपर्स के कलेक्शन हैं। जिसमें उन्होंने सार्स के विषय में बात की थी। इसमें उन्होंने पूरी योजना बनाई है कि कैसे वे बायोलॉजिकल वॉरफेयर का उपयोग कर सकते हैं। इसे स्मोकिंग गन का नाम उन लोगों ने दिया था, उनको बर्फ पर रखकर लंबे काल तक रखा जा सकता है।
  •                   जब हमला करना हो तो इसके एयरोसॉल बनाया जा सकता है
  •                   सभी मौसम में इसका उपयोग किया जा सकता है
  •                   जैविक हथियारों के माध्यम से दुश्मन देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया जा सकता है
  •                  मानसिक दबाव उस देश की जनसंख्या, सरकार और अर्थव्यवस्था पर दबाव बना सकते हैं जिससे                        सब चौपट हो जाए
  •                   इसका बिल्कुल पता नहीं चलेगा, इसे नकारा जा सकेगा
  • कोरोना के जनक
    वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी का गठन फ्रांस की सहायता से चीन में किया गया था। इसमें लेवल-4 फैसिलिटी है जो विश्व में सबसे उन्नत मानी जाती है सुरक्षा के लिहाज से, जैविक हथियार के परीक्षण के लिए। इसकी जिम्मेदारी पिपल्स लिबेरेशन आर्मी के दो मेजर जनरल पर है। इसमें से एक है शैंग ली जिसे चमगादड़ महिला (बैट वुमन) के नाम से जाना जाता है, इसने पूरा जीवन चमगादड़ों पर रिसर्च में व्यतीत कर दिया है। दूसरे हैं चैन वेई। चैन वेई अफ्रिका में कार्य चुका है, उसे वहां इबोला और जिका वायरस के स्प्रे तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी। इन दोनों ने मिलकर अब वुहान इंस्टिट्यूट में बैट कोरोना वायरस पर काम कर रहे हैं।
  • ये भी हैं साक्ष्य
    कुछ वर्ष पहले मेजर जनरल शैंग ली ने चार पेपर छपवाए थे जिसमें उसने गेन ऑफ फंक्शन वायरस की बात की थी। किस तरह बैट कोरोना वायरस सार्स के हुक मॉलिक्यूल (प्रोटीन मॉलिक्यूल) सेल्स के साथ अपने आपको जो़ड़ लेता है। यह एक जैविक हथियार बन जाता है। इस महिला ने इसका पूरा डिस्क्रिप्शन दिया था। चीन ने पिछले वर्ष इस पेपर को उड़ा दिया है।
  • चीन का झूठ
    चीन के वुहान वेट मार्केट में कोई चमगादड़ नहीं बिकता। चीन का यह कहना झूठ है। चमगादड़ वुहान से पांच सौ किलोमीटर दूर यांगजीन की गुफाओं में मिलती है। वुहान इंस्टिट्यूट के कर्मचारी युन्नान की गुफाओं में भेजे गए थे चमगादड़ पकड़कर लाने के लिए। उसमें तीन बीमार हो गए, ये वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के थे जिसमें एक डॉ.सी जेंग ली भी थे। ये पीएलए के अस्पताल में भर्ती थे।

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पाक संग मिलकर षड्यंत्र
पीएलए ने पाकिस्तान में एक जैविक प्रयोगशाला खोली है। रिसर्च के लिए। पाकिस्तान भी वहां रिसर्च कर रहा है। भारत पर कैसे केमिकल, जैविक, रेडियोलॉजिकल प्रयोग करें इसका रिसर्च कर रहा है।

चीनी सैनिकों में दम नहीं
चीन की सेना को युद्ध लड़े 42 साल हो गए, वियतनाम में उनकी सेना बुरी तरह परास्त हुई और मार खाई। चीन में एक परिवार एक बच्चा पैदा कर सकता है। इसलिए उसे लाड़ प्यार से पाला जाता है। इकलौते बच्चे को कोई युद्ध में झोंकना नहीं चाहता। जब ये बेटे सेना में आते हैं तो वे सेना का रगड़ा सह नहीं पाते। वे रोना शुरू कर देते हैं। उन्हें हमारे जवानों की तरह वॉलंटियर के रूप में जुड़कर तीस वर्ष की सेवा नहीं करनी पड़ती। वे चार साल के लिए आते हैं और उनका प्रयत्न रहता है कि कैसे भी ये चार वर्ष वे पूरा करके घर लौट जाएं।

डब्लूएचओ चीफ चीन के साथ
चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक.डॉ टेड्रोस अदनोम घेब्रेयसस की नियुक्ति में चीन ने पहल की थी। उसने उन्हें खरीद लिया है। इसलिए वे चीन को क्लीन चिट देते रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक दल वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ वायरालॉजी कोरोना वायरस का पता लगाने गया था। उसे पंद्रह दिनों तक निकलने ही नहीं दिया गया। तब तक पूरी प्रयोगशाला को साफ कर दिया गया। इसके बाद भी इन्हें कोई प्रमाण लेने नहीं दिया गया।

चरखे से नहीं वीर सावरकर के सैनिकीकरण की आवश्यकता
भारत को अब प्रत्येक स्कूल में सैनिकीकरण की शिक्षा अनिवार्य कर देनी चाहिए। पूर्व सैनिक को इसमें वॉलंटियर के रूप में जोड़ना चाहिए। अहिंसा और चरखे से देश सुरक्षित नहीं रहनेवाला है। इन विचारों ने पीढ़ियों को नपुंसक बना दिया है।

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