Rafale Fighter Jet: भारतीय वायु सेना के 36 राफेल फाइटर जेट में से 10 विमान जल्द ही हवा में ही ईंधन भरने की तकनीक से लैस हो जाएंगे। इस तकनीक के हासिल होने पर विमानों की रेंज भी बढ़ जाएगी और उन्हें ज्यादा दूर तक तैनात किया जा सकेगा। ईंधन भरने की क्षमता के लिए वायु सेना को ग्राउंड-आधारित उपकरण और सॉफ्टवेयर अपग्रेड प्राप्त होंगे। भारतीय नौसेना भी फ्रांस से 26 राफेल मरीन जेट खरीद रही है, जो हवा से जमीन पर और हवा से हवा में हमला करने में भी सक्षम हैं।
फ्रांस से खरीदे गए हैं 36 राफेल फाइटर जेट
भारत ने वायु सेना के लिए फ्रांस से 36 राफेल फाइटर जेट हासिल किये हैं, जिनके लिए अंबाला एयरबेस पर और पश्चिम बंगाल के हाशिमारा एयरबेस पर दो स्क्वाड्रन बनाई गई हैं। एलएसी पर चीन से तनातनी के बीच भारत ने राफेल लड़ाकू विमानों को लद्दाख के फ्रंट-लाइन एयरबेस पर तैनात किया गया है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल के हाशिमारा एयरबेस स्क्वाड्रन को सिक्किम से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की जिम्मेदारी सौंपी गई है। हाशिमारा बेस उसी विवादित डोकलाम इलाके के बेहद करीब है, जहां वर्ष 2017 में भारत और चीन की सेनाओं के बीच 75 दिन लंबा टकराव हुआ था।
हवा के मध्य ईंधन भरने की तकनीक नहीं
भारत के सभी 36 राफेल ऑपरेशनल होने के बावजूद इनमें हवा के मध्य ईंधन भरने की तकनीक नहीं थी। अब भारतीय नौसेना स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए 26 राफेल मरीन विमान खरीद रही है। फ्रांस के साथ 60 हजार करोड़ रुपये से अधिक का राफेल मरीन जेट सौदा भारतीय वायु सेना के 36 राफेल बेड़े की ईंधन भरने और अन्य क्षमताओं को उन्नत करने में भी मदद करेगा। इसके बाद वायु सेना के 36 राफेल फाइटर जेट में से 10 विमान जल्द ही हवा में ही ईंधन भरने की तकनीक से लैस हो जाएंगे। भारतीय वायु सेना इस तकनीक का उपयोग करके अपने राफेल जेट विमानों को हवा में ईंधन भरने में सक्षम हो जाएगी।
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सहायता के लिए मिलेंगे जमीनी उपकरण
रक्षा सूत्रों ने बताया कि नौसेना के लिए इस सौदे से भारतीय वायुसेना को अपने राफेल बेड़े के सॉफ्टवेयर को उन्नत करने और संचालन में सहायता के लिए बहुत सारे जमीनी उपकरण मिलेंगे। सरकार से सरकार के बीच होने वाले इस सौदे के तहत नौसेना को 22 सिंगल-सीटर और चार ट्विन-सीटर राफेल मरीन जेट मिलेंगे और 4.5 प्लस जनरेशन राफेल को अपने डेक से संचालित करने के लिए वाहक पर बहुत सारे उपकरण लगाने की आवश्यकता होगी। नौसेना वर्तमान में मिग-29के का संचालन करती है, जिसे निकट भविष्य में केवल आईएनएस विक्रमादित्य से संचालित किया जाना है।