Foreign Policy: भारत से खुश अमेरिका और रूस! यहां जानें क्यों

आज एक ओर क्लाइमेट चेंज के कारण कार्बन रहित विद्युत उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है, वहीं आणविक विद्युत सप्लाई के लिए बड़े संयंत्र की जगह छोटे आणविक संयत्रों की मांग बढ़ रही है। 

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-ललित मोहन बंसल

Foreign Policy: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के पेरिस और वॉशिंगटन दौरे (Paris and Washington tour) के बाद आस बंधी है कि भारत में अनवरत विद्युत और गैस सप्लाई से आर्थिक विकास दर में वृद्धि होगी। एक समय उद्यमी अपने कल-कारखाने में उत्पादन कार्य से पहले अनवरत विद्युत सप्लाई के लिए भागदौड़ में जुटा रहता था।

आज एक ओर क्लाइमेट चेंज के कारण कार्बन रहित विद्युत उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है, वहीं आणविक विद्युत सप्लाई के लिए बड़े संयंत्र की जगह छोटे आणविक संयत्रों की मांग बढ़ रही है।

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मेक इन इंडिया मंत्र को नई दिशा
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने दौरे के पहले पड़ाव में पेरिस में फ्रांस के राष्ट्रपति एमेन्युअल मैक्रो से द्विपक्षीय वार्ता में रिन्युअल एनर्जी के अंतर्गत छोटे आणविक संयंत्रों की सप्लाई पर अहम समझौता कर कार्बन रहित संस्कृति को गति दी है। इससे निःसंदेह मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ मंत्र को नई दिशा मिलेगी, वहीं देश के विभिन्न राज्यों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर खड़े किए जा सकेंगे। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए चौबीसों घंटे अनवरत विद्युत आपूर्ति की जरूरत होगी, जो डाटा सेंटर और विशाल कंप्यूटर सेंटर को सजीव रख सके। भारत के आर्थिक विकास में ऊर्जा के क्षेत्र में कच्चे तेल और गैस की आपूर्ति एक प्राथमिकता है।

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बढ़ेगी कच्चे तेल की मांग
आने वाले दिनों में भारत की ऊर्जा, विशेषकर कच्चे तेल की मांग चीन से ज्यादा होगी। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी की मानें तो निःसंदेह तीन सालों में भारत के कारोबार में वृद्धि होने से परिवहन और उद्योग में कच्चे तेल की मांग बढ़ेगी, एक तेजी से खड़ी होने वाली भारतीय इकॉनमी के लिए परिष्कृत ऊर्जा और और विद्युत ऊर्जा की जरूरत होगी। पेरिस आधारित इस एजेंसी के अनुसार भारत को मौजूदा 15.380 करोड़ बैरल से बढ़ कर 2030 में 16.640 करोड़ बैरल प्रतिदिन की जरूरत होगी। मोदी ने वार्ता के दौरान अगले पांच सालों में विकसित भारत-2047 तक दोगुने व्यापार की उम्मीद जताई है।

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कच्चा तेल खरीदने पर सहमति
बता दें, मोदी और ट्रम्प वार्ता के दौरान व्यापार संधि में भारत ने अमेरिका से कच्चा तेल खरीदने पर सहमति जताई है। भारत अमेरिका से कितना तेल और गैस खरीदेगा, इस पर विचार जारी है। दुनिया में कच्चे तेल के आयात में चीन और अमेरिका के बाद भारत तीसरा बड़ा आयातक देश है।

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मोदी-ट्रम्प वार्ता में ऊर्जा
कच्चे तेल पर आधारित भारतीय इकॉनामी को पांच खरब की इकॉनामी बनने के लिए अमेरिका से होकर क्षितिज पर पहुंचना होगा। दुनिया में तेल के आयात में भारत तीसरा (10.1 %) बड़ा देश है। भारत ने 2023-24 में 88% तेल के आयात पर निर्भर रहा। 2023-24 में कच्चे तेल का बिल 139.3 अरब डॉलर था, जो भारत के कुल आयात मूल्य 678 डॉलर का 21 प्रतिशत कहा जा सकता है। इसमें तेल आधारित उत्पाद नहीं है। भारत खुद तेल आधारित उत्पाद बना कर यूरोपीय देशों को निर्यात करता है और 23.3 अरब डालर अर्जित करता है। इसमें एलपीजी 10.5 अरब डॉलर, 22.1 अरब डॉलर के हाई स्पीड डीजल और 11.2 अरब डॉलर मोटर स्पिरिट है। ऐसे में कच्चे तेल की क़ीमतें गिरती हैं, निश्चित तौर पर भारत लाभान्वित होगा।

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88 प्रतिशत आयात पर निर्भर
अभी तक तेल की कीमतों को प्रभावित करने में खाड़ी में तेल उत्पादक देशों और ओपेक प्लस देशों में रूस, अमेरिका सहित ऐसे आधा दर्जन देश हैं, जो तेल का उत्पादन करते हैं। भारत में कच्चे तेल का उत्पादन अल्प मात्रा में हो पाता है, जबकि उसे अठासी प्रतिशत तक आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। भारत तेल की कीमतों को प्रभावित करने की स्थिति में भले नहीं रहा, वह भू-राजनैतिक कारणों से सऊदी, ईरान, इराक़ और यूनाइटेड अरब अमीरात, वेनेजुएला आदि देशों से कच्चे तेल और गैस की आपूर्ति करता रहा है।

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रूस से संधि के लाभ
रूस-यूक्रेन युद्ध के से उपजी परिस्थितियों के कारण भारत ने राष्ट्रहित में मौजूदा निर्यातक देशों के कोटे में कटौती कर अधिकाधिक तेल रूस से खरीदना शुरू किया। रूस और भारत के रणनीतिक रिश्तों के कारण भारत में कच्चा तेल 15 से 20 डॉलर प्रति बैरल आयात किया जाता रहा है। शुरू में 2023-24 में 33 % इराक़, 21% सऊदी अरब, 16% यूएई, 6.4 % खाड़ी के ओपेक प्लस देशों में रूस और अमेरिका, दो बड़े देश हैं, जो दस लाख बैरल तेल प्रतिदिन निकालते हैं, हालांकि अमेरिकी जरूरतों को पूरा करने के लिए अमेरिका सऊदी अरब जैसे दोस्तों से तेल की आपूर्ति करता है।

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दोस्ती करो और तेल पाओ की नीति
भारत ने यूएस से तेल के आयात पर सहमति देकर एक ओर अमेरिका से मित्रता का धर्म निभाया है, वहीं खाड़ी और रूस से आयात के मौजूदा कोटे में कमी कर देश को चुनौतियों के लिए आमंत्रण दिया है। दरअसल, डोनाल्ड ट्रम्प कच्चे तेल का अधिकाधिक उत्पादन करना चाहते हैं। वह अपने तेल उत्पादकों से कहते हैं, ‘ड्रिल बेबी ड्रिल’ और दूसरी ओर मित्र देशों को उलाहना देते हुए कहते हैं, ‘आओ, हमसे दोस्ती करो और तेल पाओ।‘’ अमेरिका ने 29023 में 19358 हजार बैरल प्रतिदिन उत्पादन किया, जो वैश्विक स्तर पर कुल उत्पादन का 20.1 % है। ओपेक देशों का 35.3 % और ओपेक + देशों रूस और मैक्सिको सहित 54% है। ऐसे समय जब रूस अपनी जर्जर इकॉनामी को सुधारने के लिए भारत को सस्ते में तेल देने का प्रलोभन देता है, तो ग़लत नहीं है। इससे भारत-रूस संबंधों पर आंच आना स्वाभाविक है।

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रिन्यूअल एनर्जी से होगा कार्बन रहित समाज
 इसी रिन्यूवल एनर्जी परिकल्पना की दृष्टि से फ़्रांस के राष्ट्रपति एमेन्युअल मैक्रो और भारत के बीच छोटे आणविक संयंत्रों के आयात पर जो समझौता हुआ है, उससे देशभर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के नए द्वार खुल सकेंगे। इन आणविक संयंत्रों से एआई ही नहीं सेमीकंडक्टर चिप निर्माण में अनवरत विद्युत ऊर्जा से प्रौद्योगिकी को बल मिलेगा। उल्लेखनीय है कि रिन्यूवल एनर्जी आधारित ऊर्जा के लिए उत्तम कोटि के मिनरल की जरूरत होती है। इस क्षेत्र में चीन कहीं आगे है, संभव है भारत को चीन से ऐसे मिनरल के आयात में कठिनाई हो सकती है, जो उसके ऊर्जा सुरक्षा में बाधक बने।

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एलन मस्क और मोदी वार्ता में विद्युत वाहन
क्लाइमेट चेंज से अत्यधिक प्रभावित भारत एक तो खनन कोयले पर अत्यधिक गर्मी से पीड़ित है। इसके लिए भारत की कोशिश है कि वह परिवहन तेल और गैस पर निर्भर रहने की बजाए विधुत चालित वाहनों का सहारा ले। इस संदर्भ में मोदी ने अपने दौरे के पहले ही दिन ऐलान मस्क से बातचीत में विद्युत चालित वाहनों के लिए सहयोग मांगा। मस्क भारत में विद्युत चालित वाहनों की फैक्ट्री लगाते हैं, तो भारत ने उन्हें सिंगल विंडो के तहत सभी सुविधाएँ दिए जाने की पेशकश की है। परिवहन क्षेत्र को कार्बन रहित बनाने के लिए भारत में 2023 में 15.3 लाख विद्युत वाहन थे, जो एक साल में बढ़ कर 19.5 लाख विद्युत वाहन हो गए जो मात्र 7.44 % वृद्धि है। कार्बन रहित परिवहन के लक्ष्य में बायो फ्यूल और हाइड्रोजन एक विकल्प है। भारत ने चालू बजट में साल 2047 तक सौ मेगावाट आणविक विद्युत निर्माण का लक्ष्य रखा है।

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