Dholavira: धोलावीरा का हड़प्पा सभ्यता से क्या है संबंध? यहां जानें

धोलावीरा के खंडहर हमें दुनिया की एक सबसे पुरानी और उन्नत सभ्यता की झलक दिखाते हैं।

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Dholavira: धोलावीरा (Dholavira), गुजरात (Gujarat) राज्य के कच्छ जिले के खडीर द्वीप पर स्थित एक प्राचीन शहर है, जो विश्वभर में एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।

यह स्थल हड़प्पा सभ्यता (Harappan Civilization) के समय से जुड़ा हुआ है और यहाँ मिली प्राचीन सभ्यता की अद्वितीय खोजें इसे वैश्विक धरोहर स्थल के रूप में प्रतिष्ठित करती हैं। धोलावीरा के खंडहर हमें दुनिया की एक सबसे पुरानी और उन्नत सभ्यता की झलक दिखाते हैं।

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हड़प्पा सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र
धोलावीरा का अस्तित्व लगभग 3000 ईसा पूर्व से लेकर 1500 ईसा पूर्व तक था, जो हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख नगरों में से एक था। यह शहर प्राचीन व्यापार मार्गों पर स्थित था, जो इंडस घाटी को मेसोपोटामिया और अन्य क्षेत्रों से जोड़ते थे। पुरातत्वविदों का मानना है कि यह स्थल व्यापार, संस्कृति और नवाचार का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। यहाँ की योजना और निर्माण शैली दर्शाती है कि यह समाज अत्यधिक व्यवस्थित और उन्नत था।

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जल प्रबंधन प्रणाली
धोलावीरा की सबसे विशेष बात इसकी अद्वितीय जल प्रबंधन प्रणाली है। हरप्पा काल में यहाँ जल संचयन के लिए विशाल जलाशय, कुएं और नहरें बनायीं गई थीं। इस क्षेत्र के शुष्क जलवायु में वर्षा के पानी का संचयन और संरक्षण बहुत महत्वपूर्ण था। यह जल प्रबंधन प्रणाली आज भी दर्शाती है कि उस समय के लोग जल संरक्षण के महत्व को भली-भांति समझते थे और अत्यधिक उन्नत तकनीक का उपयोग करते थे।

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महान स्नानगृह और स्थापत्य कला
धोलावीरा में एक विशाल “महान स्नानगृह” (Great Bath) भी पाया गया है, जो मोहनजोदड़ो में पाए गए स्नानगृह के समान है। इस संरचना का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों या सामूहिक आयोजनों के लिए किया जाता था, ऐसा माना जाता है। यहाँ की स्थापत्य कला भी अत्यंत अद्वितीय है, क्योंकि अन्य हरप्पा स्थलों की तुलना में यहाँ पत्थर के ब्लॉकों का उपयोग किया गया था। यह निर्माण शैली बताती है कि इस नगर के लोग स्थापत्य और निर्माण कला में अत्यधिक पारंगत थे।

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प्राचीन लिपि और लेख
धोलावीरा में कुछ अद्वितीय लिपियाँ और लेख भी पाए गए हैं, जो हरप्पा लिपि के रूप में माने जाते हैं। ये लेख पत्थर पर खुदे हुए हैं और अभी तक पूरी तरह से समझे नहीं गए हैं। इन लेखों का पता लगने से यह सिद्ध होता है कि धोलावीरा में लिपि का प्रारंभिक रूप मौजूद था, जो प्राचीन भारतीय लिपि के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

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UNESCO विश्व धरोहर स्थल
2021 में धोलावीरा को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई, जो इसके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को स्वीकार करता है। यह मान्यता इस स्थल को संरक्षित करने और दुनिया भर में इसके महत्व को उजागर करने में मदद करती है। अब यह स्थल इतिहासकारों, शोधकर्ताओं और पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण बन चुका है।

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प्राचीन नगरीय जीवन का एक दर्पण
धोलावीरा, हरप्पा सभ्यता के अद्वितीय शहरी जीवन, जल प्रबंधन और लेखन प्रणाली का उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह स्थल न केवल भारतीय इतिहास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मानव सभ्यता के विकास में एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित होता है। जैसे-जैसे नई खोजें होती हैं, धोलावीरा प्राचीन सभ्यताओं की समझ में और अधिक योगदान दे सकता है।

आज, धोलावीरा के खंडहर हमें एक ऐसी सभ्यता की कहानी सुनाते हैं जो अपने समय से कहीं आगे थी। यह स्थल भविष्य में और अधिक रहस्यों को उजागर करने की संभावना रखता है और मानव इतिहास के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण स्थल बनेगा।

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