कोविड 19 संक्रमण और उसक पश्चात लगे लॉकडाउन ने लोगों के लिए कार्यों को वर्चुअल रूप से निपटाने को बाध्य कर दिया। ऐसे में कुछ लोग आर्टिफीशियल इन्टेलीजेंस के उपयोग से वर्चुअल बैठकों में चोरी छुपके शामिल होते रहे हैं। ऐसे साइबर अटैकर्स पर लगाम लगाने के लिए आईआईटी रोपड़ और ऑस्ट्रेलियन यूनिवर्सिटी ने एक डिटेक्टर का विकास किया है, जो ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाएगा।
इस डिटेक्टर का लाभ ये होगा कि इससे बैठकों के संचालनकार्ता को तुरंत ऐसे किसी भी फर्जी घुसपैठिये के शामिल होते ही पता चल जाएगा। इसका लाभ यह होगा कि दूसरे के वेबिनार और बैठकों में गुप्त रूप से शामिल होकर मजाक उड़ाने या बैठकों की जानकारी चोरी से प्राप्त करनेवाले पकड़े जाएंगे।
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कोविड काल में बढ़ी घटनाएं
कोविड 19 संक्रमण काल में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस तकनीकी की सहायता से मीडिया सामग्रियों में घूसपैठ की घटनाएं बढ़ा दी हैं। फेक बस्टर नाम के टूल को विकसित करनेवाले चार सदस्यीय दल के सदस्य डॉ. अभिनव ढाल ने बताया कि,
आसान आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस तकनीकी ने मीडिया में चोरी छुपके की घुसपैठ बढ़ा दी है। उन्नत तकनीकी के कारण ऐसे घुसपैठियों पर नजर रखना भी संभव नहीं था। जिसका परिणाम सुरक्षा की दृष्टि से जोखिम भरा था। यह टूल परीक्षण में 90 प्रतिशत सटीक रहा है।
इस दल में सम्मिलित अन्य तीन सदस्यों में असोशिएट प्रोफेसर रामनाथन सुब्रामण्यम और दो छात्र विनीत मेहता और पारुल मेहता का नाम शामिल है। इस संदर्भ में एक पेपर 26वें एंटरनेशनल कॉन्फ्रेन्स ऑन इंटेलीजेन्ट यूजर इंटरफेस अमेरिका में प्रस्तुत किया गया था।
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जांचा परखा प्लेटफार्म
डॉ ढाल कहते हैं कि मीडिया कन्टेंट में छेड़छाड़ करके झूठी खबरें, अश्लील वीडियो या अन्य ऑनलाइन कन्टेंट घुसपैठ के माध्यम डाल देने से उसके दुष्परिणाम बहुत होते हैं। इस प्रकार की हेरफेर चेहरे के हावभाव पर आधारित ऑनलाइन प्लेटफार्म पर स्पूफिंग के माध्यम से आसानी से संभव हो जाता है। इसी प्रकार ऑनलाइन परीक्षाओं में डीप फेक्स नामक आर्टिफीशियल इंटेलीजेंन्स तकनीकी का उपयोग भी किया जाता रहा है। लेकिन फेक बस्टर स्वतंत्र वीडियों कॉन्फ्रेन्सिंग सोल्यूशन है, जिसे जूम और स्काइप पर सफलतापूर्वक परखा गया है।