Cancer: कैंसर रोधी वैक्सीन कितनी कारगर? जानने के लिए पढ़ें ये खबर

गमालेया नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर एपिडेमोलोजी एंड माइक्रोबायोलॉजी के निदेशक एलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग के अनुसार, इस वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल्स से मालूम हुआ है कि यह रसौली को बढ़ने से रोकती है और उसके आशिंक रूप-परिवर्तन को भी।

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Cancer: राकेश दुबेरूस ने घोषणा की है कि उसने कैंसर की रोकथाम के लिए एक नई एमआरएनए-आधारित वैक्सीन विकसित की है, जो जल्द ही रोगियों को मुफ्त उपलब्ध करायी जाएगी। गमालेया नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर एपिडेमोलोजी एंड माइक्रोबायोलॉजी के निदेशक एलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग के अनुसार, इस वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल्स से मालूम हुआ है कि यह रसौली को बढ़ने से रोकती है और उसके आशिंक रूप-परिवर्तन को भी। एमआरएनए या मैसेंजर आरएनए वैक्सीन वह जेनेटिक सूचना उपलब्ध कराती है, जो शरीर की कोशिकाओं को एंटीजन (प्रोटीन या अन्य पदार्थ, जो प्रतिरोधात्मक प्रतिक्रिया आरंभ करता है) उत्पादन करना सिखाती है। जब यह एंटीजन कैंसर कोशिकाओं पर पहचान लिए जाते हैं तो इम्यून सिस्टम उनके खिलाफ हमला शुरू कर देता है।

कैसे काम करती है वैक्सीन?
प्रश्न यह है कि यह वैक्सीन किस तरह से काम करती है? दरअसल, एमआरएनए कैंसर वैक्सीन इम्यूनोथेरेपी का एक रूप है। कैंसर कोशिकाएं अक्सर ऐसा तरीका विकसित कर लेती हैं कि वह पहचान में आने से बच जायें फलस्वरूप प्रतिरोधात्मक क्षमता उन्हें नष्ट नहीं कर पाती। इस बचाव के तरीके को अब समझ लिया गया है और इम्यूनोथेरेपी का विचार यह है कि शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता को इस प्रकार मज़बूत कर दिया जाये कि वह कैंसर कोशिकाओं को तलाश करके उन्हें नष्ट कर दे तथा फैलने से रोके।

कीमोथेरेपी के विपरीत करता है काम
इस उपचार में कीमोथेरेपी के विपरीत केवल कैंसर कोशिकाओं को ही नष्ट किया जाता है, नतीजतन साइड-इफेक्ट्स कम हो जाते हैं।वैक्सीन के अतिरिक्त भी इम्यूनोथेरेपी के अन्य अनेक तरीके हैं जैसे कार टी सेल थेरेपी, इम्यून चेकपॉइंट इन्हिबिटर्स आदि। अन्य वैक्सीनों की तरह एमआरएनए कैंसर वैक्सीन रोग को रोकने के लिए स्वस्थ व्यक्तियों के लिए नहीं है कि टीकाकरण करा लिया और रोग होगा ही नहीं। इन्हें उन रोगियों पर इस्तेमाल किया जाता है, जिन्हें पहले से ही कैंसर है ताकि रसौली को निशाना बनाकर उसका उपचार किया जा सके।

यह उपचार विधि इस तरह से तैयार की गई है कि हर रोगी की रसौली में जो विशिष्ट एंटीजन होते हैं, उन्हें निशाना बनाया जाये, जिससे यह वैक्सीन व्यक्तिगत हो जाती है और अधिक प्रभावी भी। कैंसर एमआरएनए वैक्सीन को इस तरह से भी डिज़ाइन किया जा सकता है कि अनेक प्रकार के एंटीजन को निशाना बनाया जा सके।

कैंसर की वैक्सीन का शोध केवल रूस में ही नहीं हुआ है। पिछले साल इंग्लैंड की नेशनल हेल्थ सर्विस ने कैंसर वैक्सीन लांच पैड स्थापित किया, जो एक ट्रायल कार्यक्रम है ताकि एमआरएनए व्यक्तिगत कैंसर वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल्स में उन लोगों के लिए तेज़ी लायी जा सके, जिनको कैंसर होने की पुष्टि हो चुकी है और साथ ही कैंसर का उपचार करने के लिए कैंसर वैक्सीन के विकास को गति प्रदान की जा सके।

अमेरिका में ग्लोबल बायोफर्मास्यूटिकल कंपनी क्योरवैक ने पिछले सितम्बर में घोषणा की कि सीवीजीबीएम कैंसर वैक्सीन ने ग्लिओबलस्टोमा (ब्रेन कैंसर) रोगियों पर पहले चरण के अध्ययन में उत्सावर्धक प्रतिरोधात्मक (इम्यून) प्रतिक्रियाएं प्रदर्शित की हैं।

120 से अधिक क्लिनिकल ट्रायल्स जारी
वर्तमान में कैंसर वैक्सीन को लेकर संसार के विभिन्न हिस्सों में 120 से अधिक क्लिनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं। हालांकि डॉक्टरों का कहना है कि कैंसर की रोकथाम के लिए ‘वैक्सीन’ शब्द का प्रयोग भ्रामक है।जहां तक कैंसर के रोकथाम की बात है तो ह्यूमन पपीलोमा वायरस (एचपीवी) वैक्सीन से सर्वाइकल कैंसर को होने से रोका जा सकता है, क्योंकि इस सिलसिले में 90 प्रतिशत से अधिक केस इस वायरस के कारण होते हैं।

इसके अतिरिक्त हेपेटाइटिस बी वैक्सीन जो हेपेटाइटिस बी वायरल संक्रमण को रोकने के लिए दी जाती है, उसकी भी जिगर के कैंसर को रोकने में सुरक्षात्मक भूमिका हो सकती है। डॉक्टर इस बात पर बल देते हैं, ” इम्यूनोथेरेपी उपचार से कैंसर को होने से नहीं रोका जा सकता। यह रोग होने के बाद का इलाज है।”

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क्लिनिकल ट्रायल्स में लग सकता है काफी समय
कोई भी नई ड्रग क्लिनिकल ट्रायल्स के अनेक चरणों से गुजरती है। इस प्रक्रिया में सालों लग जाते हैं। जब तक यह सब डाटा सार्वजनिक तौरपर उपलब्ध नहीं होता है, तब तक यह कहना कठिन है कि रूस की उपचार विधि किस स्तर पर है और वह कितनी सुरक्षित व प्रभावी है।

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