Purandara Dasa: भारतीय भक्ति आंदोलन के एक स्तम्भ हैं पुरंदर दास

उनका योगदान न केवल कर्नाटका के धार्मिक जीवन में था, बल्कि पूरे भारत में उनकी भक्ति रचनाएं और संगीत ने एक अभूतपूर्व प्रभाव डाला।

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Purandara Dasa: भारत (India) की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर में कुछ नाम ऐसे हैं जो सदियों तक जीवित रहते हैं, और उनमें से एक महान नाम है पुरंदर दास (Purandara Dasa) का।

पुरंदर दास कर्नाटका (Karnataka) के प्रसिद्ध भक्त, कवि, संगीतज्ञ और संत थे, जिन्होंने भक्ति, संगीत और साहित्य के माध्यम से भारतीय समाज को एक नई दिशा दी। उनका योगदान न केवल कर्नाटका के धार्मिक जीवन में था, बल्कि पूरे भारत में उनकी भक्ति रचनाएं और संगीत ने एक अभूतपूर्व प्रभाव डाला।

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जीवन परिचय
पुरंदर दास का जन्म 1484 ईस्वी में कर्नाटका राज्य के तल्लुर गांव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम श्रीकृष्ण राय था, और वे एक समृद्ध व्यापारी परिवार से ताल्लुक रखते थे। हालांकि, उन्होंने अपनी सांसारिक संपत्ति और ऐश्वर्य को त्याग दिया और भगवान विष्णु की भक्ति में अपने जीवन को समर्पित कर दिया। यह निर्णय उनके जीवन का एक अहम मोड़ था, जिसके बाद उन्होंने भक्ति गीतों की रचना शुरू की।

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भक्ति और संगीत का संगम
पुरंदर दास का मानना था कि भगवान की भक्ति सबसे महत्वपूर्ण है, और इसका सबसे सुंदर और प्रभावी माध्यम संगीत है। उन्होंने कर्नाटका संगीत के क्षेत्र में अपनी अमूल्य धरोहर छोड़ी। वे भक्ति और संगीत को जोड़ने वाले पहले संतों में से थे, जिन्होंने “कीर्तन” और “पद्य” के माध्यम से भगवान के प्रति समर्पण को व्यक्त किया। उनके रचित भजन आज भी कर्नाटका और अन्य भारतीय भाषाओं में गाए जाते हैं। उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में “पदगोट” और “कीर्तन” शामिल हैं, जिनमें उन्होंने भगवान के गुणों का विस्तार से वर्णन किया। उनकी संगीत रचनाओं में एक सरलता और सहजता थी, जो आम आदमी तक भक्ति का संदेश पहुंचाने में मदद करती थी।

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पुरंदर दास के उपदेश और जीवन दर्शन
पुरंदर दास का जीवन दर्शन बहुत सरल था। उनका मानना था कि भगवान की भक्ति जीवन का सर्वोत्तम उद्देश्य है। उन्होंने अपने जीवन को भगवान की सेवा में समर्पित कर दिया और लोगों को यह सिखाया कि भक्ति और साधना के बिना जीवन अधूरा है। वे यह मानते थे कि भक्ति का सबसे अच्छा रूप है “नाम स्मरण”, अर्थात भगवान का नाम लेकर जीवन में शांति और समृद्धि प्राप्त की जा सकती है।

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पुरंदर दास का संगीत
पुरंदर दास को कर्नाटका संगीत के पिता के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने संगीत की शिक्षा दी और संगीत के विभिन्न रागों का इस्तेमाल कर भक्ति गीतों को जीवनदान दिया। उनके द्वारा रचित गीत और भजन आज भी कर्नाटका संगीत के आधार माने जाते हैं। उनकी रचनाओं ने न केवल कर्नाटका के संगीत को समृद्ध किया, बल्कि पूरे भारतीय संगीत जगत में एक नया आयाम जोड़ा।

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भारतीय भक्ति आंदोलन
पुरंदर दास का योगदान भारतीय भक्ति आंदोलन और संगीत के क्षेत्र में अविस्मरणीय है। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से यह दिखाया कि भक्ति, संगीत और साहित्य एक साथ मिलकर जीवन को संपूर्णता प्रदान कर सकते हैं। उनकी रचनाओं और भजनों में आज भी वही प्रभाव है, जो उनके जीवन के समय था। उनका जीवन और कार्य हमें यह सिखाता है कि अगर हम भगवान की भक्ति में पूरी तरह से समर्पित हो जाएं, तो जीवन का हर पहलू दिव्य और समृद्ध हो सकता है।

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