Holika Dahan 2025: भारत (India) में होली (Holi) का त्योहार रंगों (festival of colours) और खुशी का प्रतीक माना जाता है, लेकिन इससे पहले एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान होता है, जिसे होलिका दहन (Holika Dahan) कहा जाता है।
यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और हिंदू धर्म में इसकी गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वता है।
यह भी पढ़ें- Champions Trophy Final: सुनील गावस्कर ने रोहित की बैटिंग को लेकर कही यह बात, जानें क्या कहा
धार्मिक महत्व
होलिका दहन का संबंध हिंदू पुराणों और विशेष रूप से पृथलाद और होलिका की कथा से जुड़ा हुआ है। कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप नामक राक्षस राजा को ब्रह्मा से एक वरदान प्राप्त था, जिसके कारण वह अजेय और अमर हो गया था। इस वरदान के बाद वह अहंकारी हो गया और उसने यह आदेश दिया कि सभी लोग उसकी पूजा करें, न कि भगवान विष्णु की।
Burning the past, you gear up for a new beginning. Holika Dahan Celebration at The Art of Living International Center, Bengaluru this evening. #Holi pic.twitter.com/XsMyHWLRU0
— Art of Living International Center (@BangaloreAshram) March 9, 2020
लेकिन उसके बेटे प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की पूजा करना जारी रखा, जिससे हिरण्यकश्यप बहुत क्रोधित हुआ। उसने अपनी बहन होलिका, जो आग से अजेय थी, को प्रह्लाद को मारने के लिए भेजा। होलिका ने प्रह्लाद को अपने साथ आग में बैठने के लिए कहा, क्योंकि उसके पास एक चादर थी, जो उसे आग से बचाती थी। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका आग में जलकर राख हो गई। इस घटना को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है और इसी को याद करते हुए होलिका दहन की परंपरा शुरू हुई।
यह भी पढ़ें- Champions Trophy Ind vs NZ Final: ICC फाइनल मैच में भारत का क्या है रिकॉर्ड? यहां जानें
होलिका दहन का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व
होलिका दहन सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमें बुराई, नकारात्मकता और बुरी आदतों से मुक्ति का संदेश भी देता है। लोग इस दिन अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं, पुराने और बेकार सामान को जलाकर नष्ट करते हैं, ताकि उनके जीवन से भी नकारात्मक ऊर्जा दूर हो सके। होलिका दहन के समय लोग एकत्र होकर अग्नि के चारों ओर घूमते हैं, गायन और नृत्य करते हैं, और एक दूसरे से मिलकर इस पर्व की खुशी मनाते हैं। यह सामूहिकता, भाईचारे और प्रेम को बढ़ावा देने का एक अवसर है।
होलिका दहन के विविध रूप
होलिका दहन का आयोजन भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रूपों में किया जाता है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और हरियाणा जैसे राज्यों में बड़े-बड़े अलाव जलाए जाते हैं, और लोग उसके चारों ओर पूजा और भजन करते हैं। गुजरात में भी इस दिन विशेष पूजा की जाती है और लोग होलिका की प्रतिमा को जलाते हैं। यह पर्व केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि विदेशों में भी भारतीय समुदाय इसे धूमधाम से मनाता है। दुनिया भर में फैले भारतीय समुदाय होलिका दहन को सामूहिक रूप से मनाते हैं, जहां वे पारंपरिक गीत गाते हैं, और एक दूसरे के साथ प्रेम और सद्भावना का आदान-प्रदान करते हैं।
यह भी पढ़ें- Holi 2025: होली से पहले रेलवे ने उठाया यह कदम, वेटिंग टिकट को लेकर बड़ा फैसला
आशा और नवीनीकरण का प्रतीक
होलिका दहन सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह आशा, नवीनीकरण और अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह हमें यह सिखाता है कि चाहे जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ और बुराईयाँ क्यों न हों, अंततः सत्य और धर्म की जीत होती है। इस दिन को मनाकर हम अपने अंदर की नकारात्मकता और बुराई को जलाकर, अपने जीवन में सकारात्मकता और अच्छाई का स्वागत करते हैं।
जब होलिका दहन की अग्नि जलती है, तो यह न केवल बुराई को नष्ट करने का प्रतीक होती है, बल्कि यह हमें एक नए और उज्जवल भविष्य की ओर प्रेरित करती है। होलिका दहन हमें यह याद दिलाता है कि अच्छाई हमेशा बुराई पर विजय प्राप्त करती है और हमें अपने जीवन में सद्गुणों को अपनाना चाहिए। इस प्रकार, होलिका दहन न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का एक अवसर भी है।
यह वीडियो भी देखें-
Join Our WhatsApp Community