जानें कब और कैसे हुआ ‘चिपको’ आंदोलन का उदय?

चिपको का अर्थ होता है किसी भी चीज से गले लग जाना। सत्तर के दशक में प्रारंभ हुआ चिपको आंदोलन भी ऐसा ही आंदोलन था जिसमें आंदोलनकारी पेड़ों से लिपट जाते थे।

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वृक्षों की कटाई रोककर प्रकृति की रक्षा करने के लिए 1970 में चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई। इस आंदोलन का मूल 1963 से जुड़ा हुआ है, जब भारत-चीन युद्ध के पश्चात उत्तर प्रदेश सरकार को हिमालय की तराई के क्षेत्रों में विकास की आवश्यकता महसूस होने लगी।

इस काल में सड़कों के विकास को प्राथमिकता दी गई, प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण क्षेत्र को ठेकेदारों को दिया जाने लगा। इससे स्थानीय ग्रामीणों का वन क्षेत्र में प्रभाव नियंत्रित होने लगा। ग्रामीण जन भोजन, ईंधन और अन्य संसधानों के लिए जंगलों पर निर्भर थे, लेकिन वह थमने लगा। लकड़ियों की अंधाधुंध कटाई से क्षेत्र की कृषि प्रभावित होने लगी, मिट्टी का कटाव तेज हो गया, जलस्तर नीचे जाने लगा और बाढ़ की घटनाएं बढ़ने लगी।

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1964 में चंडी प्रसाद भट्ट ने एक सहकारिता आंदोलन की नींव रखी, जिसका नाम पड़ा दशोली ग्राम स्वराज्य संस्था (डीजीएसएम)। इस संस्था ने स्थानीय संसाधनों की सहायता से कुटिर उद्योगों को बढ़ावा दिया। परंतु, पर्वतीय क्षेत्र में बड़े स्तर पर शुरू हो चुकी लकड़ी की कटाई ने क्षेत्र में बाढ़ के संकट को बढ़ा दिया। 1970 में ऐसी ही एक बाढ़ में 200 लोगों को अपने प्राण गंवाने पड़े। इसके बाद दशोली ग्राम स्वराज्य संस्था ने विरोध का बीड़ा उठाया।

इसी काल में सुंदरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट और गौरा देवी ने अन्य सहयोगियों संग मिलकर चिपको आंदोलन की शुरूआत की। अप्रैल 1973 में अलकनंदा घाटी के मंडल में पहला चिपको आंदोलन हुआ। इस आंदोलन की सफलता को देखते हुए पर्यावरणवादियों नें इसे अन्य जिलों में प्रसारित किया। 1974 में रेनी गांव में एक आंदोलन हुआ, यहां दो हजार वृक्षों को काटा जाना था। इस आंदोलन की एक और विशेषता यह थी कि इसमें महिलाओं का सहभाग बहुत अधिक था। आंदोलन के स्वर को देखते हुए सरकार ने अलकनंदा घाटी में जंगलों की कटाई पर जांच के आदेश दे दिये। जिसकी परिणति ये हुई कि इस क्षेत्र में दस वर्ष के लिए जंगल कटाई पर रोक लगा दी गई। इन विरोध प्रदर्शनों ने चिपको आंदोलन को किसानों का आंदोलन बना दिया।

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सफलताओं को स्वर

  • 1974 में सुदरलाल बहुगुणा ने वन नीति के लिए दो सप्ताह का उपवास आंदोलन किया।
  • 1972 से 1974 के मध्यकाल में लगभग 150 गावों ने चिपको आंदोलन में सहभागिता दी और 12 बड़े आंदोलन उस काल में हुए।
  • 1980 में सुंदरलाल बहुगुणा की अपील के पश्चात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उतराखण्ड और हिमालयी क्षेत्र में वन कटाई पर 15 का प्रतिबंध लगा दिया।
  • उत्तराखण्ड की देखादेखी हिमाचल प्रदेश में भी प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • समय के साथ चिपको आंदोलन परियोजना लक्ष्यित होता गया
  • 1981 से 1983 के मध्य हिमालय बचाओ अभियान के अंतर्गत सुंदरलाल बहुगुणा ने हिमालयी क्षेत्र में 5000 किलोमीटर की पैदल यात्रा की।
  • 1980 में टिहरी बांध और भागीरथी नदी के आसपास चल रहे खनन कार्यों के विरोध में प्रदर्शन हुए।
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