देशभर में वक्फ संशोधन कानून (Wakf Amendment Act) प्रभावित हो गया है। लेकिन विपक्षी दल (Opposition Parties) इस मुद्दे को लेकर आंदोलन (Movement) कर रहे हैं। इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में चुनौती दे दी गई है। अभी तक कई याचिकाएं दाखिल हो चुकी है। जिनमें से संविधान के विरुद्ध और धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया गया है।
किसी भी कानून को अदालत तीन आधारों पर जिसमें विधायी सक्षमता, संविधान का उल्लंघन और मनमाना होने के आधार पर देखा जाता है। इस संदर्भ में देखा जाए तो अदालत से इसे खारिज करना आसान नहीं होगा। जाने-माने कानूनी विशेषज्ञ और पूर्व सांसद सत्यपाल जैन का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय किसी भी कानून की वैधानिकता पर मुख्य रूप से तीन आधारों पर विचार करता है। पहले की जिस व्यक्ति या संस्था ने कानून पास किया है। वह उसके अधिकार क्षेत्र में है या नहीं, दूसरा विधायी सक्षमता यानी कानून के दायरे में है। यह कानून किसी के मौलिक अधिकारों का तो उल्लंघन नहीं करता अथवा संविधान की मूल भावना के विरुद्ध तो नही है। तीसरा कानून को मनमाने तरीके से तो नहीं बनाया गया है। वक्फ संशोधन कानून संसद से घंटों बहस के बाद पारित हुआ है।
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विरोधी पक्ष की दलील
सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिकाओं में वक्फ बोर्ड के सदस्यों में गैर मुसलमानों को शामिल करने का भी विरोध किया गया है। याचिकाओं में मुसलमान से भेदभाव का आरोप लगाते हुए कानून को समानता के अधिकार अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन बताया गया है।
सरकार की दलील
मोदी सरकार का कहना है कि कानून में मुस्लिम महिलाओं के हित संरक्षित किए गए हैं और अनुच्छेद 15 के तहत सरकार को महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान बनाने का अधिकार है। वक्फ प्रबंधन में चुनौतियों का समाधान करने को सुधार जरूरी थे।जिसके लिए वक्फ संशोधन कानून 2025 लाया गया।
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