संपादकीय

पत्रकारिता एक हथियार है और इस हथियार का उपयोग किस कार्य के लिए होता है, यह महत्वपूर्ण है| ऐसा कहते हैं कि आज पत्रकारिता पूर्णत: व्यावसाय बन गई है। मुझे लगता है कि इसमें कोई गलत बात नहीं है क्योंकि व्यवसाय और धंधा दोनों पूर्णत: अलग हैं। व्यवसायी का अंग्रेजी अर्थ है प्रोफेशनल और प्रोफेशनल बनने के लिए आवश्यक है, सम्पूर्ण प्रतिबद्धता यानी 100 % dedication. मेरे सभी साथी इस कार्य के लिए सम्पूर्ण रूप से सक्षम हैं, प्रतिबद्ध हैं|

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हिंदुस्तान पोस्ट का प्रथम सम्पादकीय लिखते हुए आज मुझे गर्व महसूस हो रहा है। गर्व इसलिए कि आज मैं अपने दादाजी, क्रांतिवीर डॉ.नारायण दामोदर सावरकर तथा अपने पिताजी स्व.विक्रम नारायण सावरकर के बताए मार्ग पर चल रहा हूं| डॉ. नारायणराव सावरकर एक क्रांतिकारी तो थे ही, इसके साथ ही एक प्रखर पत्रकार भी थे और उन्होंने पत्रकारिता का उपयोग ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लड़ने के लिए किया था। जब वीर सावरकर रत्नागिरी में स्थानबद्ध थे, तब डॉ.नारायणराव ने मुंबई में श्रद्धानंद वृत्तपत्र शुरू किया। अल्प समय में ही वह एक प्रमुख मराठी वृत्तपत्र बन गया था| इसी पत्र में स्वा.सावरकरजी अपने प्रखर विचार प्रकट करते थे। लेकिन बाद में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ सदैव संघर्ष करने के कारण प्रेस एक्ट के तहत सरकार ने इस पत्र को बंद करा दिया। उन्हीं के मार्ग पर चलते हुए, मेरे पिता विक्रमजी ने अपना साप्ताहिक पचीस साल से भी ज्यादा समय तक प्रकाशित किया। काफी आर्थिक संकट का सामना करते हुए विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने अपनी राष्ट्रवादी पत्रकारिता जारी रखी। ना वे किसी दबाव के आगे झुके और ना ही किसी प्रलोभन में आए। इसीलिए मैं आज अपनी पारिवारिक परंपरा का पालन करने में गर्व के साथ एक दायित्व भी महसूस कर रहा हूं| मुझे अपने हिंदुस्थान पोस्ट के सभी सहयोगियों को साथ लेकर इसी मार्ग पर चलना है, तथ्यों को उजागर करना है और झूठ को बेनकाब करना है।
पत्रकारिता एक हथियार है और इस हथियार का उपयोग किस कार्य के लिए होता है, यह महत्वपूर्ण है| ऐसा कहते हैं कि आज पत्रकारिता पूर्णत: व्यावसाय बन गई है। मुझे लगता है कि इसमें कोई गलत बात नहीं है क्योंकि व्यवसाय और धंधा दोनों पूर्णत: अलग हैं। व्यवसायी का अंग्रेजी अर्थ है प्रोफेशनल और प्रोफेशनल बनने के लिए आवश्यक है, सम्पूर्ण प्रतिबद्धता यानी 100 % dedication. मेरे सभी साथी इस कार्य के लिए सम्पूर्ण रूप से सक्षम हैं, प्रतिबद्ध हैं| हां, और पत्रकार के लिए इस प्रतिबद्धता में एक बात अंतर्भूत है वह ये कि वो किसी तथ्य को न छुपाए और ना ही कोई भ्रम को फैलाए।
हिटलर के प्रचार मंत्री गोबेल्स का कहना था कि अगर झूठ बार-बार दोहराते रहो तो लोग उसे सत्य मानने लगते हैं। सत्य को दबाकर झूठ का प्रचार यही गोबेल्स नीति का सार है। और आज का बहुतांश मीडिया इसी मार्ग पर चलता है। ऐसे लोगों ने ही आज पत्रकारिता को एक धंधा बना दिया है। यह आज की बात नहीं है| जैसे ही कांग्रेस ने सत्ता हासिल की, इस नीति पर अमल करना शुरू कर दिया। १९४७ में जब भारत का विभाजन हुआ, तब दिल्ली का एक पत्र हिंदुस्तान टाइम्स सरकार की हिंसा रोकने में अपयश के लिए कड़ी आलोचना करता था। लार्ड माउन्टबेटन, ब्रिटिश शासन के आखिरी वायसराय तथा स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल इस बात से काफी नाराज थे| उन्होंने गांधीजी से कहा कि क्या वे इस मामले में कुछ मदद कर सकते हैं? गांधीजीने, हां, उसी सत्य के पुजारी महात्मा गांधी ने कहा “हां मै देवदास से कह दूंगा और बिरला सेठ से भी” और तुरंत  सरकार की आलोचना बंद हो गई। तब देवदास, गांधी के पुत्र, हिंदुस्तान टाइम्स के सम्पादक थे और बिरला सेठ मालिक। आज वो गांधी तो नहीं रहे, मगर उनके जैसे अनेक गांधी मौजूद हैं, जो सत्य को दबाकर अपना झूठा नेरेटीव चलाना चाहते हैं। गांधीजी ने तो हिंदुस्तान टाइम्स को सत्य छापने से रोका, मगर मैं आज आपको वचन देता हूं कि कोई भी ताकत हिंदुस्थान पोस्ट की आवाज नहीं दबा सकती। हिंदुस्थान पोस्ट उस हर तथ्य को उजागर करेगा, जो देश के हित में है। हिंदुस्थान पोस्ट हर उस झूठ को बेनकाब करेगा, जो देश वे विरुद्ध है।
इस देश को समर्थ और संपन्न बनाना है तो हर एक को अपना योगदान देना होगा। हर व्यक्ति अपने-अपने क्षेत्र में प्रामाणिकता से काम करे तो देश का समर्थ और संपन्न बनना तय है। इसलिए हम वचन देते हैं कि हम अपना कार्य  पूरी प्रामाणिकता से करेंगे। खेलकूद से संरक्षण क्षेत्र तक खबरें आप को पहुचाएंगे। बुराई को बेनकाब करेंगे और अच्छाई का सम्मान करेंगे।
एक और क्षेत्र है इतिहास। कहते हैं, वृत्तपत्र समाज का दर्पण है| सही है, मगर मुझे लगता है, वृत्तपत्र अतीत का भी दर्पण हो। क्योंकि इतिहास दोहराता है। सौ साल पहले, १९१९ में स्पेनिश फ्लू की महामारी आई थी। मात्र भारत में ही इस महामारी से पौने दो करोड़ लोग, यानी जनसंख्या के करीब पांच प्रतिशत लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी। आज २०१९ में कोविड-१९ की महामारी का प्रकोप है। इतिहास दोहराता है। १९१९ में और एक ऐसी घटना घटी, जो २०१९ में पुन: घटित हुई। मैं आज वह इतिहास आपके सामने रखना चाहता हूं।
१९१९ में मुस्लिम जनसंख्या करीब २२% थी, जितनी आज है| उस समय मुसलमानों ने पूरे देश में एक ऐसा हिंसक आन्दोलन चलाया, जिसमें हजारो हिन्दू मारे गए। उसी आन्दोलन की परिणति अंत में मलबार के मोपला दंगों में हुई| हजारों लोगों की, हजारों महिलाओं से बलात्कार के साथ हिन्दुओं का सामूहिक धर्मान्तरण हुआ| यह आन्दोलन कांग्रेस तथा महात्मा गांधी की छत्रछाया में हुआ था। इस का नाम था खिलाफत आन्दोलन| तुर्की की मुस्लिम जनता ने वाका के खलीफा को हटाकर लोकतंत्र की स्थापना की और कमल पाशा को राष्ट्राध्यक्ष बनाया था जिसमें भारत के हिन्दुओं का कोई दोष नहीं था| भारत के मुसलमानों का इस बात से कोई सम्बन्ध नहीं था फिर भी अली बंधुओं ने मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को भड़काया और इस काम में गांधी ने उन्हें पूरा सहयोग दिया। मोपला गुंडों के बारे में गांधी ने कहा “My brave Mopla Brothers”! और सौ साल बाद फिर इतिहास दोहराया। जिस बात से भारत के मुसलमानों का कोई भी लेना-देना नहीं है, उस बात के लिए देशभर में हिंसक आन्दोलन खड़ा हुआ, वह भी पुन: कांग्रेस के सहयोग से। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ इस बार केरला में तो दंगे हुए ही, साथ ही साथ दिल्ली में ऐसी हिंसा भड़की, जिसे कोई भुला नहीं सकता।
मगर हमारे समाज में एक गन्दी आदत है, हम बहुत जल्दी चीजें भूल जाते हैं। इसलिए मैं यह याद दिलाना चाहता हूं कि १९१९ की परिणति १९४७ के देश विभाजन के रुप में हुई। और हम यह कत्तई नहीं होने देंगे कि १९४७ की पुनरावृत्ति २०४७ में हो| इतिहास दोहराता है, मगर गल्तियां नहीं। इसलिए इतिहास से सीख लेकर वर्तमान की चुनौतियों का सामना करने में ही देश की भलाई है| हमारा काम है, तथ्यों को पूर्णत: आपके सामने रखना और वो हम करेंगे। हमारा एक ही घोषवाक्य है ‘भ्रम से वास्तव तक!’ हिंदुस्थान पोस्ट यही करेगा! हिन्द की बात और हिन्द का साथ! जय हिन्द! वन्देमातरम!!
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