Upper caste vs Backward class: कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व पार्टी को मजबूत करने के लिए जिला अध्यक्षों को ताकत देने की रणनीति पर काम कर रहा है। राहुल गांधी खुले तौर पर पिछड़ों को आगे लाने की बात कहते हैं, लेकिन कांग्रेस के पुराने नेताओं के मन में कई सवाल खड़े हो रहे हैं । मसलन राहुल गांधी को अपने पुराने सवर्ण वोट बैंक की चिंता क्यों नहीं है? पार्टी के पास पिछड़े वर्ग के मजबूत नेता भी नहीं हैं तो पार्टी आगे बढ़ेगी कैसे?
पार्टी में असमंजस
राहुल गांधी ने अहमदाबाद अधिवेशन में पिछड़ों ,दलित और अल्पसंख्यकों के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं को खुलकर राजनीति करने की सलाह दी है। लेकिन इस रणनीति पर अमल कैसे होगा? यह सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है। मसलन प्रदेश के प्रमुख पद जो एक-एक ही है, प्रदेश अध्यक्ष प्रदेश के प्रभारी ,महासचिव, विधान मंडल दल नेता, प्रदेश कोषाध्यक्ष और प्रदेश कांग्रेस सेवा दल प्रमुख जैसे पद हैं। इन पदों पर सवर्ण जाति के ही पदाधिकारी हैं। इनमें एक भी दलित, पिछड़ा या अल्पसंख्यक नहीं हैं। सवाल उठ रहा है कि राहुल गांधी सवर्ण की बात नहीं करना चाहते तो यह नेता अपने वर्गों के वोट को आकर्षित भी नहीं कर सकते। पिछड़ों में से पार्टी के पास प्रदेश स्तर का एक भी प्रमुख नेता नहीं है, जिसे कांग्रेस पार्टी अपना चेहरा बना सके।
इंडी गठबंधन के अपने सहयोगी दलों से तकरार
कांग्रेस ने इंडी गठबंधन के अपने सहयोगी दलों से भी पंगा ले लिया है। दिल्ली और हरियाणा में केजरीवाल को निपटा दिया। अब कांग्रेस पार्टी बिहार में तेजस्वी यादव को आंखें दिखा रही है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के साथ नूरा -कुश्ती चल रही है। कांग्रेस अपने सहयोगी दलों के मुसलमान वोट बैंक को अपने पाले में करना चाहती है। दलितों और पिछड़ों को अपने पक्ष में खड़ा करना चाहती है। लेकिन ऐसा करने से कांग्रेस पार्टी में ही पिछड़ा बनाम सवर्ण युद्ध शुरू हो गया है और सहयोगी दल भी कांग्रेस की मंशा को भाप चुके हैं। ऐसे में ना खुद ही मिला…. ना विसाले सनम….