Bhagavad Gita: दृश्यमान जगत को प्रभु की माया कहा गया है। आम बोलचाल की भाषा में माया का अर्थ है धोखा, भ्रान्ति या झूठी दिखावट। इसलिए, कुछ लोगों का मानना है कि दुनिया केवल एक भ्रमजाल है। भगवद् गीता इस विचार को स्वीकार नहीं करती। वह नहीं मानती कि संसार के सभी प्राणी, वस्तुएं और घटनाएँ अवास्तविक हैं।
माया ईश्वर की वह शक्ति है जो उसे ब्रह्मंड का सर्जन करने में सक्षम बनाती है। यह वह ऊर्जा है जिसके द्वारा ईश्वर हरदम परिवर्तनशील संसार का निर्माण और पालन-पोषण करता है। इसलिए निर्मित ब्रह्मंड को माया भी कहा गया है।
यह भी पढ़ें- West Bengal: वोट की राजनीति, मुस्लिमों की ममता
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् |
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया || 6||
भगवान श्रीकृष्ण श्लोक संख्या 4.6 में कहते हैं कि यद्यपि वे अजन्में, अविनाशी और समस्त जीवों के स्वामी हैं; तो भी वे अपनी प्रकृति में स्थित होकर अपनी ही आंतरिक शक्ति (आत्म-माया) के द्वारा प्रकट होते हैं। दूसरे शब्दों में परमात्मा माया के माध्यम से अपना रूप धारण करते हैं।
यह भी पढ़ें- Murshidabad Violence: दास पिता-पुत्र के हत्या के आरोप में मुख्य आरोपी गिरफ्तार, जानें कौन है वो
भूमिरापोऽनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च |
अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा || 4||एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय |
अहं कृत्स्नस्य जगत: प्रभव: प्रलयस्तथा || 6||
7.4 से 7.6 के श्लोकों में ब्रह्मंड की उत्पत्ति की व्याख्या की गई है। यह बताया गया है कि ईश्वर के दो प्रकार के स्वभाव हैं, पहला भौतिक प्रकृति (लौकिक स्वभाव) और दूसरा चेतन प्रकृति (अलौकिक स्वभाव)। पहले स्वभाव में शामिल हैं पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि एवं अहं-भाव; और दूसरा स्वभाव है आत्मा। जबकि भौतिक प्रकृति नाशवान है, आत्मा अमर और अविनाशी है। समस्त प्राणी इन दो स्वभावों से ही उत्पन्न होते हैं। ईश्वर सम्पूर्ण जगत को पैदा करने वाला और उसका विनाश करने वाला है। इस प्रकार सम्पूर्ण ब्रह्ममंड ईश्वर के इन दो स्वरूपों के द्वारा ही बनाया गया है।
यह भी पढ़ें- Naxalism: खात्मे के कगार पर ‘नक्सलवाद’, जानें कब तक होगा अंत?
यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्वं स्थावरजङ्गमम् |
क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ || 27||मम योनिर्महद् ब्रह्म तस्मिन्गर्भं दधाम्यहम् |
सम्भव: सर्वभूतानां ततो भवति भारत || 3||सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तय: सम्भवन्ति या: |
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रद: पिता || 4||
यही विषय कि सभी प्राणी भौतिक और चेतन प्रकृति के संयोग से ही पैदा होते हैं, श्लोक संख्या 13.27, 14.3 और 14.4 में भी दोहराया गया है। चूंकि भौतिक प्रकृति और चेतना दोनों ईश्वर के ही स्वभाव हैं, वे ही पूरे ब्रह्मंड की माता और उसका पिता भी है।
यह भी पढ़ें- Murshidabad Violence: दास पिता-पुत्र के हत्या के आरोप में मुख्य आरोपी गिरफ्तार, जानें कौन है वो
मत्त: परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय |
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव || 7||ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति |
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया || 61||
श्लोक संख्या 7.7 में कहा गया है कि यह सम्पूर्ण जगत ईश्वर में ऐसे ही गुथा रहता है जैसे कि माला के मोती धागे में गुँथे रहते हैं। इसके अलावा श्लोक संख्या 18.61 में कहा गया है कि ईश्वर समस्त प्राणियों के हृदय में निवास करते हुए, उन्हें अपनी माया के द्वारा, इस जगत में ऐसे धुमाता रहता है जैसे कि वह किसी यन्त्र पर आरूढ़ हों।
यह वीडियो भी देखें-
Join Our WhatsApp Community