भारत में कोरोना संक्रमण को लेकर केंद्र और देश की राज्य सरकारें भी काफी चिंतित हैं। लेकिन भारत में अन्य बीमारियां भी कम खतरनाक नहीं हैं। ये बीमारियां जहां लोगों की मौत का कारण बन रही हैं, वहीं ये हजारों-लाखों लोगों को गरीब बनाने के साथ ही देश की अर्थ व्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं।
इन बीमारियों में कैंसर भी शामिल है। भारत में इसके मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। फिलहाल 2020 की बात करें तो इस बीमारी पर कुल 2,386 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। उपचार पर हुआ यह खर्च केवल निजी और सरकारी क्षेत्र की बीमा योजनाओं की तरफ से किया गया है। व्यक्तिगत रुप से जो पैसे खर्च किए गए, उसका हिसाब उपलब्ध नहीं है। निश्चित रुप से यह खर्च ही हजारों करोड़ रुपए होगा।
अर्थव्यवस्था पर बड़ा बोझ
किसी बीमारी पर किया गया यह खर्च वर्ष 2019-20 के बजट में स्वास्थ्य के लिए किए गए प्रावधान का बड़ा हिस्सा है। बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। बल्कि लागत में वृद्धि नहीं हुई तो भी अगले एक दशक तक इस राशि का बोझ अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।
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रोकने का उपाय
बता दें कि टाटा मेमोरियल सेंटर ने मुंह के कैंसर के उपचापर पर आने वाले खर्च को लेकर पहला अध्ययन किया है। रिपोर्ट के अनुसार मुंह के कैंसर की बीमारी और उपचार के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव से बचने का एक मात्र उपाय इसकी रोकथाम है।
आरंभिक अवस्था में पहचान जरुरी
रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर रोग की आरंभिक अवस्था में पहचान हो जाती है तो इसके उपचार पर 250 करोड़ रुपए की बचत होगी। यह बीमारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से तंबाकू या सुपारी के सेवन से हो रही है। शुरू में ही रोग की पहचान हो जने पर 20 प्रतिशत मामलों को एडवांस स्टेज पर जाने से रोका जा सकता है। इससे हर साल करीब 250 करोड़ रुपए की बचत की जा सकती है।
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पुरुष मरीज ज्यादा
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि विश्व में होने वाली मौतों का दूसरा सबसे बड़ा कारण कैंसर है। 70 प्रतिशत मामलों मे मध्यम वर्गीय लोग इसका शिकार बनते हैं। टाटा मेमोरियल सेंटर के निदेशक आरए बडवे के अनुसार भारत में आने वाले मामलों में सबसे अधिक मुंह के कैंसर के होते हैं। इससे ज्यादातर पुरुष प्रभावित होते हैं। वर्ष 2020 में विश्व के सबसे अधिक कैंसर के मामले भारत में आए।