कोरोना काल में दुनिया के रीति रिवाजों और परंपराओं में बहुत बदलाव आए हैं। इन्हीं में से एक बदलाव यह भी आता दिख रहा है कि पहले जहां जीवन की चौथी अवस्था में वसीयत तैयार करवाते थे, वहीं अब कम उम्र में ही यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
कोरोना ने जीवन को इतना अनिश्चित बना दिया है कि अब लोग 40-45 साल की उम्र में ही अपने परिवार के भविष्य को सुरक्षित कर देना चाहते हैं। इसलिए युवा कारोबारी और नौकरीपेशा कई लोग वसीयत बनवाने के लिए वकीलों के पास पहुंच रहे हैं।
जिंदगी का भरोसा नहीं
लोगों के मन में कोरोना का डर इस तरह समा गया है कि पिछले करीब डेढ़ साल में वकीलों और लॉ फर्मों के पास वसीयत बनाने वाले लोगों की अचानक भीड़ बढ़नी शुरू हो गई है। ये अपनी चल-अचल संपत्ति के लिए वसीयत तैयार करवा रहे हैं, ताकि उनके न रहने पर परिवार को बिना किसी विवाद के आसानी से सपंत्ति का मालिकाना हक मिल जाए।
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क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
एमपी के ग्वालियर जिला न्यायालय के अधिवक्ता नरेंद्र कंसाना बताते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर में कई युवाओं की भी मौत हो गई है। इसलिए अब 40 से 45 साल के लोग भी वसीयत बनवाने आ रहे हैं। कई ऐसे लोग भी उनमें शामिल हैं, जिनके पति या पत्नी की कोरोना की मृत्यु हो चुकी है। उप महानिरीक्षक पंजीयन वाजपेई ने भी माना कि कोरोना के कारण युवाओं में वसीयत का चलन बढ़ा है। पहले 60-65 साल की उम्र में लोग वसीयत तैयार करवाते थे,उनमें भी वे लोग ज्यादा होते थे, जो किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त होते थे। उन्होंने बताया कि सिर्फ ग्वालियर जिले में ही जनवरी 2021 से अब तक 575 वसीयत पंजीकृत हुई हैं। कोरोनो से पहले सलाना 400 वसीयत पंजीकृत हुआ करती थीं।
ऐसे तैयार की जाती है वसीयत
वसीयत का पंजीयन अनिवार्य नहीं है, इसलिए ज्यादातर लोग सादा कागज पर भी वसीयत बनवाकर अपने घर में रख लेते हैं या अपने किसी विश्वसनीय को दे देते हैं। हालांकि सादा कागज की अपेक्षा पंजीकृत वसीयत को न्यायालय में अधिक मान्यता है। वसीयत पंजीयन में स्टांप नहीं लगता, कितनी ही संपत्ति हो, केवल एक हजार रुपए इसके लिए शुल्क लगता है। हर दस्तावेज की तरह वसीयत को पंजीकृत कराने के लिए भी स्लॉट होता है। वसीयत घर में बनी हो या पंजीकृत हो, उसमें दो स्वतंत्र गवाहों का होना अनिवार्य है।