आपकी हमारी लाल परी! परेशानी कोई भी, एसटी की लाल परी( बस) हमेशा सेवा में हाजिर रहती है। कोरोना महामारी के समय जब लॉकडाउन में हर तरह का ट्रांसपोर्टेशन बंद पड़ा था, तब भी मुंबई में लाल परी अपनी सेवा दे रही थी और जरुरतमंदों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने का काम कर रही थी। वह मुंबई की सड़कों पर पूरी रफ्तार से दौड़ रही थी, लेकिन ऐसी लाल परी को दौड़ाने वाले एसटी कर्मचारी हमेशा से उपेक्षा के शिकार रहे हैं।
एसटी कर्मियो को कभी वेतन के लिए इंतजार करना पड़ता है तो कभी बोनस के लिए सड़कों पर उतरना पड़ता है। कोरोना काल में उन्हें वैक्सीन के लिए भी संघर्ष करना पड़ा। राज्य और देश में जहां आपातकालीन सेवा कर्मियों का टीकाकरण किया गया, वहीं जान की परवाह किए बिना सेवाएं प्रदान करने वाले एसटी के कर्मचारियों की उपेक्षा की जा रही है।
फ्रंटलाइन वर्कर का दर्जा नहीं
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जहां नर्सों और डॉक्टरों को फ्रंट लाइन वर्कर का दर्जा दिया गया है, वहीं एसटी कर्मचारियों को इससे वंचित कर दिया गया है। इस कारण कोरोना काल में सेवा देने वाले कई एसटी कर्मचारियों की जान चली गई। महामंडल की ओर स आरटीआई में दी गई जानकारी चौंकाने वाली है। एसटी कर्मचारी गणेश शेंडगे कुछ महीने पहले अस्पताल में टीका लगवाने गए थे। लेकिन, उस समय अस्पताल ने उन्हें टीका लगाने से मना कर दिया था। उन्हें बताया गया कि आप आवश्यक सेवा में नहीं हैं। इस दौरान उन्होंने पोर्टल पर शिकायत की। एसटी महामंडल ने हाल ही में उनकी शिकायत का जवाब देते हुए कहा है कि महामंडल के कर्मचारी आवश्यक सेवा अधिनियम, 1955 के तहत नहीं आते हैं।
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क्या कहते हैं संगठन के नेता?
इस बारे में महाराष्ट्र एसटी स्टाफ कांग्रेस के महासचिव श्रीरंग बरगे का कहना है कि जब लाल परी के कर्मचारी आंदोलन करना चाहते हैं तो महामंडल की ओर से सर्कुलर जारी कर कहा जाता है कि एसटी कर्मचारी अत्यावश्यक सेवा के अंतर्गत आते हैं और जब सुविधा-सम्मान देने की बात होती है तो कहा जाता है कि आप अत्यावश्यक सेवा के अंतर्गत नहीं आते। यह महामंडल की दोहरी नीति है।