प्राकृतिक आपदा आने पर मदद के नाम पर राजनैतिक श्रेय लेने के लिए आपाधापी मच जाती है। महाराष्ट्र में भी इन दिनों ऐसा ही अनुभव हो रहा है। बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए सहायता की घोषणा में राजनैतिक प्रतिस्पर्धा देखी जा रही है। फिलहाल इस मामले में भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने बाजी मार ली है।
राकांपा ने बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए 39 लाख रुपये, जबकि भाजपा ने 20 लाख 75 हजार रुपये की घोषणा की है। मूसलाधार बारिश से कोंकण और पश्चिमी महाराष्ट्र को हुए नुकसान की तुलना में इन राजनीतिक दलों द्वारा घोषित सहायता राशि नगण्य है।
200 लोगों की मौत
बता दें कि राज्य में 19 जुलाई से लगातार पांच दिनों तक मूसलाधार बारिश हुई। परिणामस्वरूप, कोंकण के चिपलून और महाड तालुका जलमग्न हो गए। उधर, सांगली, सतारा और कोल्हापुर जिला भी बाढ़ की चपेट में आ गया। राज्य में 7 जगहों पर चट्टान खिसकने से दिल दहला देने वाली घटना घटी। इन दुर्घटनाओं में लगभग 200 लोग मारे गए। इसका एक कारण यह रहा कि बचाव दल दो दिन तक मौके पर नहीं पहुंचा।
निरीक्षण यात्रा का दौर जारी
अब बाढ़ थमने के बाद निरीक्षण यात्रा शुरू है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, उपमुख्यमंत्री अजित पवार कोंकण और पश्चिमी महाराष्ट्र के निरीक्षण दौरे पर गए। उसके बाद विधानसभा में विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस, विधान परिषद में विपक्ष के नेता प्रवीण दरेकर, केंद्रीय मंत्री नारायण राणे और शिवसेना विधायक भास्कर जाधव ने भी प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया।
भाजपा ने की मदद की घोषणा
अब बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए एक प्रतियोगिता शुरू हो गई है। मुंबई महानगरपालिका में भाजपा के 83 पार्षदों ने बाढ़ पीड़ितों को एक महीने का मानदेय देने की घोषणा की है। प्रत्यके नगरसेवक के 25 हजार रुपये मानदेय मिलाकर यह रकम 20 लाख 75 हजार रुपये होती है।
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रांकापा की मदद ऊंट के मुंह में जीरा
राकांपा ने घोषणा की है कि पार्टी के 54 विधायक और 5 सांसद बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए अपने एक महीने का वेतन देंगे। विधायक का 67,000 रुपये और सांसद का 70,000 रुपये वेतन को ध्यान में रखें तो यह राशि 39 लाख 68 हजार रुपए होती है।
मदद कम, पब्लिसिटी ज्यादा
दरअसल, बाढ़ से हुए नुकसान को देखते हुए भाजपा और राकांपा द्वारा की गई मदद की घोषणा नगण्य है। इसके अलावा मनसे और भाजपा ने आवश्यक वस्तुओं से लदे ट्रकों को भी बाढ़ प्रभावित इलाकों में भेजा है। इसकी भी खबू पब्लिसिटी की गई है। कुल मिलाकर बाढ़ पीड़ितों की मदद कम और पब्लिसिटी ज्यादा की जा रही है।