महाराष्ट्र कैबिनेट की बैठक में निर्णय लिया गया है कि एसटी कर्मचारियों के लिए सातवां वेतन आयोग लागू नहीं किया जाएगा क्योंकि एसटी महामंडल घाटे में है। कैबिनेट की बैठक में लिए गए इस निर्णय के बाद एसटी कामगार संगठन आक्रामक हो गए हैं। इस निर्णय के विरोध में राज्य भर के 22 एसटी कर्मचारी संगठनों के सदस्यों ने संगठन की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। इसमें सत्ताधारी पार्टी की एसटी कामगार सेना के साथ ही मान्यता प्राप्त राज्य एसटी कामगार संगठन के सदस्य भी शामिल हैं।
इस्तीफा सत्र शुरू
राज्य सरकार ने हाल ही में एसटी महामंडल के कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की घोषणा की थी। लेकिन अब यह कहते हुए कि एसटी महामंडल घाटे में है, महामंडल के कर्मचारियों को ठेंगा दिखा दिया गया है। परिणामस्वरुप राज्य भर के एसटी कर्मचारियों में संभ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। इससे नाराज एसटी कर्मचारियों ने संगठनों की सदस्यता से त्याग पत्र देना शुरू कर दिया है।
सातवें वेतन आयोग को लागू करना संभव नहीं
राज्य परिवहन महामंडल यात्री सेवा नो-प्रॉफिट, नो-लॉस के आधार पर प्रदान करती है। इसलिए कैबिनेट ने सातवें वेतन आयोग को लागू करने से इनकार कर दिया है। कैबिनेट के इस निर्णय को लेकर एसटी कर्मचारियों का गुस्सा सातवें आसमान पर है। उनक कहना है कि वे हर स्थिति में, अपनी जान की परवाह किए बिना, लोगों की सेवा करते हैं, लेकिन अब उन्हें सातवें वेतन आयोग से वंचित रखकर उनके साथ अन्याय किया जा रहा है।
परिवहन मंत्री ने कही यह बात
परिवहन मंत्री अनिल परब ने कहा कि वर्तमान में एसटी महामंडल की आय को देखते हुए कर्मचारियों के लिए सातवां वेतन लागू करना संभव नहीं है। परब ने कहा कि एसटी पिछले डेढ़ साल से घाटे में चल रहा है। इस नुकसान को कम करने के लिए आय बढ़ाने के विकल्प तलाशे जा रहे हैं।
संगठन का कड़ा रुख
स्टेट एसटी वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष संदीप शिंदे ने कहा कि घाटे का बहाना बनाकर एसटी कर्मचारियों के लिए 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू नहीं किया जा रहा है। लेकिन हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। एसटी उद्योग लाभ का साधन नहीं है, यह एक सेवा है। देश में किसी भी परिवहन सेवा को लाभ नहीं हो रहा है। इसके बावजूद 10 राज्यों में एसटी श्रमिकों के लिए सातवां वेतन लागू किया गया है। यहां भी कर्मचारियों की वरिष्ठता के अनुसार रैंक वार वेतनमान लागू करना चाहिए अन्यथा कड़ा संघर्ष होगा।